उर्मिलेश
दुनिया के दो महत्वपूर्ण देशों की सरकारों की कोविड-19 को लेकर आधिकारिक प्रेस-ब्रीफिंग न्यूज चैनलों पर देखी. पहली ब्रीफिंग रही, अपने मुल्क की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की और दूसरी थी ब्रिटिश वाणिज्य सेक्रेटरी (मंत्री) आलोक शर्मा की. इन दिनों दोनों देशों में दक्षिणपंथी सोच की सरकारें हैं.पर ब्रिटिश कंजरवेटिव पार्टी को अपने देश की सत्ताधारी पार्टी-भाजपा का समतुल्य नहीं कहा जा सकता. इसका प्रमाण आज की ब्रिफिंग में भी मिल गया.
डाउनिंग स्ट्रीट की ब्रीफिंग में ब्रिटिश सरकार के वाणिज्य मंत्री का पूरा जोर कोविड-19 से निपटने की रणनीति पर था. उन्होंने BBC पर लाइव प्रसारित अपने संबोधन और पत्रकारों के सवालों के जवाब में कहा: ‘ अगर आक्सफोर्ड के प्रयोग कामयाब होते हैं तो सितम्बर महीने तक हमें बड़े पैमाने पर कोरोना के टीके मिलने शुरू हो जायेंगे. ब्रिटिश अवाम को सबसे पहले मिलेंगे.इसके साथ ही हम विकासशील देशों को भी ये टीके सस्ते दर पर उपलब्ध करायेंगे. एक सवाल के जवाब में मंत्री ने यह भी माना कि संभव है, हमें कोरोनावायरस के टीके कभी न मिलें. कामयाबी नहीं मिले.
ब्रिटिश सरकार की संडे ब्रीफिंग पूरी तरह कोरोनावायरस और उससे अपने देश और फिर पूरी दुनिया के लोगों को बचाने की उसकी इच्छा पर केंद्रित थी. लेकिन अपने देश की वित्त मंत्री की प्रेस कॉन्फ्रेंस में कोरोनावायरस जैसी भयावह महामारी से लोगों को बचाने के उपायों पर चर्चा के बजाय देश के सार्वजनिक क्षेत्र के तमाम उपक्रमों को निजी क्षेत्र के लिए खोलने या फिर विपक्षी नेताओं के पलायन पर मजबूर मजदूरों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रवैये पर केंद्रित दिखा. मंत्री जी ने विपक्षी नेता पर खूब क्रोध बरसाया.
अब आप ही तय कीजिए हमारी सरकार की प्राथमिकता इस समय कोरोना से देश की जनता को बचाने की है या देश के सरकारी क्षेत्र को उद्योगपतियों और बड़ी कारपोरेट कंपनियों को बेचने की है!
ब्रिटिश सरकार अपने देश में बंद पड़े सरकारी या गैरसरकारी दफ्तरों-उपक्रमों आदि के कर्मचारियों और अन्य लोगों के अगले कई महीनों के वेतन और मानदेय आदि का भुगतान पहले ही सुनिश्चित करा चुकी है जबकि अपने यहां के हालात से अब पूरी दुनिया वाकिफ हैं कि बेरोजगार कर दिए गए मजदूरों को कैसी अमानवीय यंत्रणा से गुजरना पड़ रहा है! ‘महारानी’ वाले देश की डेमोक्रेसी और सेक्युलर-डेमोक्रेटिक संविधान वाले अपने मुल्क की ‘छद्म-डेमोक्रेसी’ का फ़र्क मामूली नहीं!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)