लक्ष्मीप्रताप सिंह
प्रधानमंत्री मोदी ने आठवीं बार लाल किले की प्राचीर से भाषण दिया है। हर बार की तरह उनका भाषण खोखले दावों के अलावा कुछ और नहीं है। 26 जून 2019 को प्रधानमंत्री ने कहा था कि “ताउम्र ग़ालिब ये भूल करता रहा, ताउम्र ग़ालिब ये भूल करता रहा, धूल चेहरे पर थी और मैं आइना साफ़ करता रहा” यहां भी बताना जरूरी है कि यह शेर ग़ालिब का नहीं है। खैर आगे बढ़ते हैं और प्रधानमंत्री ने लाल क़िले से जो कहा है उसे बिंदुवार समझने और समझाने का प्रयास करते हैं।
सात साल पहले 8 बिलियन डॉलर मोबाईल का आयत, अब 3 बिलियन का : मोबाईल बनाने के क्षेत्र में भारत में एक मात्र सैमसंग का प्लांट एक्टिव हुआ है जो नोएडा उत्तरप्रदेश में है। जिसे पिछली सपा सरकार में अखिलेश यादव ने निर्मित कराया था, इसके बनते-बनते सरकार बदली जिसका फीता पीएम मोदी ने काटा। इसके साथ ही यूपी की पिछली सरकार में ऑप्पो, लावा व अन्य ब्रांड की फैक्ट्री भी शुरू हुईं थी, बल्कि पतंजलि का फ़ूड पार्क तैयार खड़ा है लेकिन अभी तक सरकार की NOC में फंसा हुआ है।
रोजगार के लिए 100 लाख करोड़ की योजनाः रोजगार को लेकर कहा जाने वाला यह वाक्य सुनने में अच्छा है लेकिन जिस तरह स्टार्ट अप इंडिया में नए उद्योगों से एक पीएचडी स्कॉलर की सिफारिश और एक अविष्कार माँगा जा रहा है उस तरह सिर्फ बड़ी कंपनियां ही इसका लाभ ले पाईं जिनके पास अपनी करोड़ों की RnD हैं।
हाइड्रोजन मिशन की शुरुआत: पहली बात ये शुरुआत नहीं है। भारत 2010 से इसका उत्पाद कर रहा है। हाइड्रोजन फ्यूल पर भी काम हो चुका है और फरीदाबाद और गुड़गांव में इसके दो रिफिलिंग स्टेशन तक स्थापित है और चाल रहें हैं।
80 प्रतिशत किसानों के पास 2 हेक्टेयर से कम जमीन: भारत में 5% उधोगपतियों के पास 90% संसाधन हैं उनकी बात नहीं की गई। भारत के बैंको के कुल बट्टे खाते वाले ऋण का 95% सिर्फ 5% उद्योगपतियों के पास है उसकी बात भी नहीं की गई। 80% किसानों के ऋण माफ़ करने की बात नहीं की, प्रधानमंत्री को कृषि क़ानून पास करवाने की दलील देने के लिए दो हेक्टेयर वाले किसानों की याद आई है। जब आपको पता है ज्यादातर किसानों के पास 2 हेक्टेयर से कम जमीन है फिर सिंचाई के डीजल पर 65 रुपया का टैक्स उनके खून से क्यों वसूला जाता है?
गांव की जमीन का डाटा तैयार हो चुका है: इस डाटा के आधार पर खाद-बीज की सब्सिडी देने की घोषणा नहीं की? बिजली सस्ती करने, ट्रेक्टर, और दूसरे कृषियंत्र के लिए ब्याज मुक्त ऋण की घोषणा नहीं की गई।
ड्रोन के जरिये जमीन की मेपिंग हो रही है: भारत के न्यायालयों में चार लाख से ज्यादा मामले लंबित हैं जिनमें से अधिकतर भूमि विवाद के हैं. इस मेपिंग के बाद क्या उनका निपटारा किया जाएगा इसकी कोई बात नहीं की।
भाषा की वजह से टेलेंट पिंजरे में बंद था: भारत में हर तीसरी लड़की स्कूल में शौचालय ना होने की वजह से पढ़ाई छोड़ रही है और दोष भाषा को दिया जा रहा है। PSU बेच कर नौकरियां ख़त्म की जा रहीं हैं और दोष भाषा को?
दुनियां के बाजारों में छा जाने का सपना पालना है: भारत में एयरपोर्ट से लेकर रेल तक आप सिर्फ अम्बानी को बेच रहें हैं। उद्योगों का एकीकरण कर रहे हैं। मंगोलिया से ऑस्ट्रेलिया तक अम्बानी को साथ ले जाकर काम दिलाते हैं फिर छोटे व्यापारी को बढ़त कैसे मिलेगी? नोटबंदी, GST जैसे निर्णयों ने व्यापार की कमर तोड़ दी उसके लिए क्या उपाय है। पहले कोरोना लॉकडाउन में व्यापार संघ ने मात्र तीन महीने देरी से टैक्स भरने की मोहलत मांगी थी की टैक्स इन्स्पेक्टर उन्हें परेशान ना करें। तब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहलवा दिया कि भले कम्पनी बंद हो जाए लेकिन टैक्स भरने में एक दिन कि देरी नहीं बर्दाश्त होंगी। लेकिन प्रधानमंत्री कहते हैं कि सपना दुनियां में छाने का पालो?
डेढ़ लाख करोड़ से ज्यादा रकम किसानों को दी गयी: विश्व बैंक से लेकर अमेरिका, यूरोप और अफ्रीका तक से भारत सरकार ने कोरोना के नाम पर मदद ले ली, कर्ज ले लिया। जनता व उद्योगपतियों से हज़ारों करोड़ का चंदा पीएम केयर फंड में लेकर किसानों को 2019 चुनाव में 500 रुपया दिया जिसमें से ज्यादातर को अगली बार पैसा नहीं पहुंचा। चुनाव के समय पैसा आता है और चुनाव ख़त्म होते ही पैसा बंद।
मातृभाषा में पढ़ाई से आत्मविश्वास बढ़ेगा : फिजिक्स एवं केमिस्ट्री के जो भी नोबेल प्राइज भारतीय मूल के लोगों को मिले उनकी भाषा हिंदी नहीं बल्कि तमिल या तेलगू थी। ऑस्कर विनर ए.आर रहमान भी हिंदी पट्टी से नहीं बल्कि दक्षिण से आते हैं। जब सरकार की शिक्षा नीति में RSS और विश्व हिंदु परिषद के नेताओं ने जबरिया हिंदी को अनिवार्य करने की कोशिश की तो भाजपा शासित राज्यों ने ही विरोध किया। फिर भी सरकार 24 भाषाओं वाले देश में जबरिया हिंदी थोपने में लगी है।
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्याय और जामिया मिल्लिया इस्लामिया जैसे विश्वस्तरीय विश्वविद्यालयों को सरकार के मुखिया ख़त्म करने की बात करते हैं। आईआईटी की अध्यापक एससी, एसटी के छात्रों को अपशब्द कहती हैं, फैज की नज़्म “लाज़िम है कि हम भी देखेंगे” पढ़ने पर आईआईटी में जांच होती है, उद्योगपतियों द्वारा छात्रों को रिसर्च करने को दिया जाने वाला CSR का फंड यूपी सरकार राम मूर्ति में लगी रही है. दोष देना है मातृभाषा में पढ़ाई को ?
आंखे खोलिये प्रधानमंत्री महोदय क्षेत्रों के विशेषज्ञों से सलाह मशविरा करके नीति बनाइये, हर क्षेत्र में अपना बादलों में प्लेन छिपाने का “Raw Wisdom” सिर्फ भाषणों तक सीमित रखिए। नाले की गैस से पकौड़े बनते तो वड़नगर में आपके पिता अंगीठी पर चाय नहीं बनाते। देश की खातिर इतिहास बदलने की हठधार्मिता छोड़ दीजिये वर्ना आपके बाद भी लोग आपका इतिहास बदलेंगे और ये भी इतिहास में दर्ज करेंगे।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)