“तालिबान आ गया, तालिबान आ गया” कहने वाले लोगों को ये भी बताना चाहिए कि वहां पर और कौन आता?

दिलीप ख़ान

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तालिबान के अलावा अफ़ग़ानिस्तान के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था। US-NATO की वापसी के बाद एकमात्र यही परिणति होनी थी। जो लोग आश्चर्य में डूबे हैं, उन लोगों ने बीते कई साल से अफ़ग़ानिस्तान को ऊपर-ऊपर से भी फ़ॉलो नहीं किया होगा। वरना, चौंकते नहीं। ज़्यादातर लोगों ने अफ़ग़ानिस्तान के पांच शहरों का नाम पहली बार अभी सुना होगा। तालिबान के टॉप चार नेताओं का नाम नहीं पता होगा। फ़तह कैसे मिली, उसकी कहानी तक मालूम नहीं होगी।

तालिबान सिर्फ़ पश्तो लड़ाकों का गुट भर नहीं है। दो-चार साल से लगातार रिपोर्ट्स आ रही थीं कि तालिबान को किस तरह अफ़ग़ानिस्तान में व्यापक समर्थन मिल रहा है। ख़ासकर बड़े शहरों के बाहर के इलाक़े में। इस बार पूरे मुल्क पर जिस तरह तालिबान ने कंट्रोल किया है, वह उसकी पॉपुलर शैली के उलट है। न्यूनतम हिंसा के साथ तालिबानियों ने एक हफ़्ते में हेरात से लेकर काबुल को मुट्ठी में ले लिया।

बेशक, तालिबान एक उजड्ड, कट्टर और मज़हबी उग्रपंथी संगठन है, लेकिन मौजूदा अफ़ग़ान स्टेट उससे सिर्फ़ 19 है। कई लोग लिख रहे हैं कि अफ़ग़ानिस्तान में शरिया लागू होगा। उन्हें नहीं मालूम है कि वहां के मौजूदा संविधान का अधिकांश हिस्सा शरिया से ही बना है। शरिया वहां ऑलरेडी लागू है। अशरफ़ ग़नी पर लोगों को भरोसा नहीं था। रत्ती भर नहीं। सबको पता था कि ये आदमी भागेगा। अब्दुल्ला अब्दुल्ला और ग़नी को वहां लोग अमेरिकी पिट्ठू बुलाते थे। ख़ुद अफ़ग़ानी सेना का बड़ा हिस्सा तालिबान समर्थक था/है। उसने तालिबान की मौजूदा बढ़त में उसका साथ दिया है।

तालिबान आने से अफ़ग़ानिस्तान ग़ुलाम नहीं बना है। उग्र धार्मिक समूह के पास स्टेट की लगाम है। यह समूह बुरा है, लेकिन विदेशी नहीं है। लोग इसलिए तालिबानियों के साथ है। चुनाव हुआ तो पता चल जाएगा।  तालिबान पहला काम शांति बहाली का करेगा। उसके पास दूसरा कोई रास्ता नहीं है। चीन, ईरान, पाकिस्तान के साथ संबंध बढ़ाएगा।  बुर्क़े को लेकर वहां व्यापक सहमति बनी हुई है। उसे तालिबान कड़ाई से लागू करेगा, लेकिन महिलाओं की नौकरी जारी रहेगी। यह उसका दूसरे मुल्कों से निगोसिएशन का पार्ट होगा।

“तालिबान आ गया, तालिबान आ गया” कहने वाले लोगों को ये भी बताना चाहिए कि वहां पर और कौन आता? अफ़ग़ान अपना स्पेस बनाएंगे। उन्हें बम-बारूद से शांति मिल गई है। तालिबान को पता है कि अगर हिंसा जारी रही तो फिर कोई फूफा वहां घुस जाएगा! तालिबान अब सत्ता में है और वह वहां टिकना चाहेगा।

(ये लेखक के निजी विचार हैं)