नोआखली में एक बूढ़ा महात्मा अकेला घूम रहा है. देश पागल हो चुकी भीड़ में तब्दील हो गया है. वह बूढ़ा पागल भीड़ को समझा रहा है. भीड़ में यह नहीं पता है कि कौन किसके खून का प्यासा है लेकिन धरती खून से लाल हो रही है. उस बूढ़े व्यक्ति का जर्जर शरीर अपने को उस खून से लथपथ महसूस कर रहा है. वह पूछ रहा है कि जिन इंसानों के लिए हमने आजादी चाही थी, जिनके लिए सब त्याग दिया था, जिनकी स्वतंत्रता हमारे जीवन का अंतिम लक्ष्य थी, वे पाशविकता के गुलाम कैसे हो गए?
कोई किसी की नहीं सुन रहा है. लोग वहशी हो गए हैं. बूढ़ा महात्मा लाठी लिए पहुंचता है. उन्हें समझाता है. भीड़ ईंट पत्थर और शीशे फेंक रही है. बूढ़ा अचानक भीड़ की तरफ बढ़ा और एकदम सामने आ गया. भीड़ इस साहस से स्तब्ध हो गई. बूढ़े ने कहा, मैं अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर हूं. अगर आप अपने होश-हवास खो बैठे हैं, तो यह देखने के लिए मैं जिंदा नहीं रहना चाहता हूं. भीड़ शांत हो गई.
दिल्ली में ताजपोशी हो रही थी. बूढ़ा अकेले नोआखली की पगडंडियों, गलियों, कूचों, सड़कों पर लोगों से मनुष्य बने रहने की मांग कर रहा था. यह सिलसिला यहीं नहीं रुका.
नोआखली से कलकत्ता, कलकत्ता से बिहार, बिहार से दिल्ली, दिल्ली से पंजाब, पंजाब से दिल्ली… वह महात्मा अकेला बदहवास भाग रहा था. नेहरू, पटेल, माउंटबेटन… सब हथियार डाल चुके थे. महात्मा के जीवन भर के सत्य और अहिंसा के आदर्श इस आग में जला दिए गए थे. जिन्ना दूर से इस धधकती आग में अपना हाथ सेंक रहे थे.
महात्मा अनवरत सफर में था. वह गाड़ी रोककर सड़क पर उतरता, गीता के कुछ श्लोक पढ़ता, ईश्वर से प्रार्थना करता कि प्रभु हमारे देश को बचा लीजिए और फिर आगे बढ़ जाता.
खून खराबे की निराशा के बीच एक उम्मीद की किरण फिर भी थी कि लोगों की आत्मा जाग सकती है. वह महात्मा दिल्ली में हिंसक जानवरों को रोकने के लिए अनशन पर बैठ गया. जो लोग इंसानों का खून बहाने में सबसे आगे थे, अब वे महात्मा के खून के ही प्यासे हो गए. छह हमलों के बाद अंतत: उन्हें सफलता भी मिल गई.
हिंसक और घृणास्पद लोग ऐसे ही कायर होते हैं. एक निहत्थे बूढ़े को मारने के लिए उन्हें भगीरथ प्रयास करना पड़ा. महात्मा का अशक्त और अकेला शरीर मर गया. भारत से लेकर पाकिस्तान तक स्तब्धता छा गई. लेकिन असली चमत्कार उसके बाद हुआ. महात्मा अमर हो गया.
जिस पाकिस्तान का बहाना लेकर महात्मा को मारा गया, वह पाकिस्तान भी रो पड़ा और हिंदुस्तान के पगलाए हिंदू भी. दंगे शांत हो गए. दुनिया एक सुर में बोल पड़ी, यह किसी शरीर की क्षति नहीं है. यह तो मानवता की क्षति है. हत्यारे सुन्न हो गए कि हमने जिसे मारा, वह अमर कैसे हो गया?
हिंसा और घृणा मनुष्य को मानवता की समझ से बहुत दूर कर देती है. इसीलिए महात्मा उनके लिए आज भी अनसुलझी पहेली है. वे अंदर से घृणा करते हैं, बाहर से महात्मा के सामने सिर झुकाए खड़े रहते हैं. महात्मा पहले की तरह बस मुस्कराता रहता है.
टैगोर का वह महात्मा जो अपने आखिरी दिनों में इस दुनिया की हिंसा से निराश, बदहवास, विक्षिप्त और अकेला था, मौत के बाद पूरी दुनिया का महात्मा हो गया. जब भारत के लोग सत्ता का स्वागत कर रहे थे, उस महात्मा ने अकेलापन चुना था और नोआखली से दिल्ली तक भागकर मनुष्यता को बचा लिया था.
अब वह हमारा, हमारे देश का महात्मा है, वह हमारा राष्ट्रपिता है, हम उससे हर दिन सीखते हैं और अपनी जिंदगी को छोटा महसूस करते हैं. वह हमारा प्यारा बापू है, हमारे भारत का विश्वपुरुष महात्मा गांधी. गांधी की हत्या पर मिठाइयां बांटने वाले नरपिशाच आज दुनिया में कहीं भी चले जाएं, गांधी वहां पहले से मौजूद रहता है, हिंसा के नायकों की छाती पर मूंग दलते हुए भारत के प्रतिनिधि पुरुष के रूप में.
गांधी मानवता का नाम है. गांधी दुनिया के लिए दुख उठाने का नाम है. गांधी त्याग का नाम है, गांधी प्रेम का नाम है, गांधी एकता और अखंडता का नाम है. गांधी मानव जीवन के मूल्यों का नाम है.
आज जो इन मूल्यों पर हमला कर रहे हैं, वे एक दिन फिर से हार जाएंगे. गांधी इन मूल्यों का नाम है, मानवता जब तक जिंदा रहेगी, गांधी जिंदा रहेगा. हत्याओं के आकांक्षियों को यह दुनिया अब भी पशुओं की श्रेणी में रखती है, आगे भी रखेगी. गांधी मानवता का महानायक है, वह फिर जीत जाएगा.
आज मुझे सबसे ज्यादा तकलीफ इस बात की है कि हमारे दौर में कोई गांधी नहीं है जो सर्वोच्च आत्मबल के साथ पागल हो चुके लोगों का सामना करे. लोग तब भी वहशी बनते थे और दुखद सत्य ये है कि आज उससे आगे निकल जाना चाहते हैं. कोई नहीं है जो आसमान के बराबर साहस बटोरकर उनके सामने पहुंच जाए और कहे कि अगर तुम खून के प्यासे हो तो सबसे पहले मुझे मार दो.