कुछ दिन पहले एक पुराने समाजवादी टकरा गए। चुनावी मौसम है सो राजनीति की बात होने लगी। उनको पता नहीं क्या सुझा, अचानक कहानी सुनाने लगे। कहानी यूं थी: “एक पत्रकार ने पूछा, आप इमरजेंसी में जेल गए थे, फिर भी कांग्रेस को अच्छा क्यों कहते हैं?” “नेता जी ने जवाब दिया- इंदिरा जी प्रधानमंत्री थीं। बहुत ताकतवर नेता थीं ही। वे रायबरेली के दौरे पर थीं। मैंने अपने साथियों के साथ उनके काफिले को काला झंडा दिखाया। तुरंत पुलिस वाले आये और पकड़कर मुझे पीटने लगे। अभी पुलिस वाले पीट ही रहे थे, तब तक इंदिरा जी की गाड़ी बगल में रुकी। काला चश्मा लगाए हुए उतरीं और पुलिस वालों को इशारा करते हुए बोलीं- “मारो मत, जाने दो। ये युवा कल के नेता हैं।” इसके बाद पुलिस वालों ने मारना बंद कर दिया और जाने दिया।”
युवा नेता के लिए ये बात छोटी हो गई कि पुलिस ने पीटा। ये बात महत्वपूर्ण हो गई कि प्रधानमंत्री ने हमारे विरोध का सम्मान किया। क्या आज यह सम्भव है? यूपी में अमित शाह और योगी को काला झंडा दिखाने के लिए लड़कियों तक को कई महीने जेल में रखा गया। प्रधानमंत्री मोदी की हर सभा में वही जा सकता है जिसके तन पर एक काला धागा भी न हो। मोदी लखनऊ आये तो एक इलाके के लोगों को आदेश दिया गया कि बालकनी में कपड़े सुखाने पर प्रतिबंध है। उन्हें डर था कि कोई अपनी बालकनी में काली चड्ढी सूखने के लिए डाल देगा तो मोदी जी अपमानित हो जाएंगे। ओ हो हो हो!
जनता से वही नेता डरता है जो जानता है कि वह जनता के साथ गलत कर रहा है। डरपोक, बेईमान और भ्रष्ट नेता अपनी ही जनता से डरते हैं। तानाशाह अपनी ही जनता का विरोध नहीं सह पाते। बौखला जाते हैं। अपने ही कार्यकर्ताओं से अपनी गाड़ी के सामने प्रदर्शन करवा कर चोंचले करते हैं कि मेरी जान को खतरा है।
आज की राजनीति में विरोध का सम्मान और असहमति का विवेक खत्म किया जा रहा है। यह स्वस्थ लोकतंत्र का लक्षण नहीं है। भारतीय लोकतंत्र का पुरोधा तो वह कृशकाय महात्मा है जो ताउम्र निहत्था रहा और विश्व के सबसे बड़े और क्रूर साम्राज्य से भी नहीं डरा। लोकतंत्र को चलाना डरपोक लोगों के बस की बात नहीं है।
(लेखक पत्रकार एंव कथाकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)