जब तक इस देश में मुस्लिम भाइयों के आंगन से हिंदू बेटियां विदा होती रहेंगी, तब तक इसकी सामाजिक अस्मिता को कोई खतरा नहीं है।
यह कहानी आज़मगढ़ की है। पूजा के पिता की कोरोना से मौत हो गई। परिवार का सहारा चला गया। पूजा को लगता था कि अब उसकी शादी नहीं हो पाएगी। अकेली मां के पास कोई आमदनी नहीं, कोई आसरा नहीं। पूजा के मामा राजेश चौरसिया पान की दुकान चलाते हैं। उन्होंने भांजी की शादी करने की योजना बनाई। लेकिन मुसीबत यह रही कि खुद राजेश की माली हालत कुछ खास नहीं है।
राजेश ने भांजी की शादी करने की ठानी और इंतजाम करने में लग गए। शादी तय हुई और इंतजाम शुरू हो गया। मुसीबत यह थी कि राजेश के पास एक छोटा सा घर था जिसमे मंडप नहीं बन सकता था। राजेश ने यह बात पड़ोसी परवेज को बताई। परवेज ने बड़ी खुशी से अपने घर के आंगन में न सिर्फ मंडप सजवाया बल्कि कन्यादान भी किया।
परवेज के आंगन में ही गांव के लोग जुटे। वही द्वारपूजा हुई। मंत्रोच्चार के बीच वर-वधु ने फेरे लिए। हिंदू और मुस्लिम- दोनों समाज की औरतों ने मिलकर मंगल गीत गाए। सुबह बारात विदा होने से पहले दुलहा खिचड़ी खाने गया तो परवेज भाई ने दूल्हे को सोने की चेन पहनाई।
देश में आजकल हिंदू-मुस्लिम रक्षा का घटिया कारोबार चल रहा है। हिंदुओं से कहा जा रहा है कि मस्जिद पर अजान रोक दो तो हिंदू धर्म बच जाएगा। लोग झुंड बनाकर मस्जिद के सामने उपद्रव करते हैं और फिर दंगा-फसाद होता है। एकतरफा कार्रवाई करके भाजपा की सरकारें इसे और बढ़ावा दे रही हैं। ऐसा करके हिंदुओं का कोई फायदा नहीं हो रहा है, बल्कि हिंदुओं को बदनाम करके, उन्हें दंगाई बनाकर उनका राजनीतिक फायदा उठाया जा रहा है।
ऐसे उन्मादी माहौल के बीच भी समाज अलग तरह से चल रहा है। लोग मिलजुल कर अपनी रोजमर्रा की परेशानियों से निपट रहे हैं।
इस देश के करोड़पति फर्जी फकीर, जो कपड़ों से पहचान लेते हैं, वे धूर्त लोग हैं। उनके पास जनता को आपस मे लड़ाने के बहुत तरीके हैं, लेकिन जनता को और देश को मजबूत करने का कोई मंत्र नहीं है।
आपको कुछ सीखना हो तो परवेज और राजेश से सीखिए। फर्जी फकीरों के पास आपको सिखाने के लिए कुछ भी नहीं है।
(लेखक पत्रकार एंव कथाकार हैं)