CAA के ख़िलाफ आंदोलन करने के ‘जुर्म’ में NSA झेल रहे मऊ को 6 नौजवानों को हाईकोर्ट से मिली राहत, हटाया गया NSA

लखनऊ: नागरिकता क़ानून के विरोध में प्रदर्शन करने पर यूपी पुलिस ने मऊ के जिन छः लोगों पर रासुका लगाया था, बीते शुक्रवार को उन्हें बड़ी राहत मिली है। शुक्रवार को हाईकोर्ट ने इन नौजवानो के ऊपर लगाए गए रासुका को हटा दिया है। इस बाबत मऊ के पूर्व चेयरमैन और समाजवादी पार्टी के नेता अरशद जमाल ने जानकारी देते हुए बताया कि मऊ के छः नौजवानों पर गलत तरीके से मऊ के जिला प्रशासन और पुलिस ने रासुका लगाके एक साल तक जेल में बंद रखा था। इनमें से दो लोगों के पिता का देहांत भी हो गया और उनके बच्चे बाप की जनाजे में भी शरीक नहीं हो सके थे।

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क्यों लगाया था रासुका

दिसंबर 2019 में नागरिकता कानूनों में संशोधन के खिलाफ असम में विरोध शुरु हुआ। इसके बाद जामिया मिलिया विश्वविद्यालय, दिल्ली में हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान छात्र-छात्राओं पर पुलिसिया दमन हुआ। इसके खिलाफ 15 दिसंबर को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भी विरोध हुआ। इसी कड़ी में 16 दिसंबर को मऊ शहर में भी व्यापक तौर पर विरोध दर्ज किया गया। यूपी में मऊ पहला जिला था जहां से आम जनता इस असंवैधानिक नागरिकता कानून के खिलाफ बड़े पैमाने पर सड़कों पर उतरी जिसके बाद देखते-देखते पूरा सूबा आंदोलन में शामिल हो गया। आन्दोलन की बढ़ती व्यापकता देखकर प्रदेश सरकार ने गैंगेस्टर, गुंडा एक्ट, जिलाबदर, रासुका जैसे हथियार इस्तेमाल किए।

मऊ के थाना दक्षिण टोला में 17 दिसंबर 2019 को एफआईआर नंबर 246 में 24 धाराओं में 61 लोगों, एफआईआर नंबर 247 में 20 धाराओं में 72 लोगों के खिलाफ नामजद एफआईआर हुई। एफआईआर नंबर 249 और 250 के तहत भी मुकदमा दर्ज किया गया। थाना कोतवाली में 17 दिसंबर को एफआईआर नंबर 590 के तहत 11 धाराओं में 90 लोगों के खिलाफ नामजद और एक अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया। थाना दक्षिण टोला में एफआईआर नंबर 106 में उ0प्र0 गिरोहबंद समाज विरोधी क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, (गैंगेस्टर एक्ट) 1986 के तहत 22 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया। मऊ में छह व्यक्तियों के विरुद्ध रासुका की कार्रवाई की गई। मऊ के मिर्जाहादीपुरा में चिरैयाकोट रोड के निवासी एमआईएम के जिलाध्यक्ष आसिफ चंदन पर भी गैंगेस्टर एक्ट, गुण्डा एक्ट और रासुका के तहत कार्रवाई हुई।

क्या कहते हैं अरशद जमाल

मऊ के पूर्व चेयरमैन अरशद जमाल सवाल करते हुए कहते हैं कि उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने सभी छः लोगों का NSA गलत ठहराते हुए सभी रासुका खारिज कर दिया। अब सवाल ये पैदा होता है एक साल बिना गलती के उनको जेल में बंद रखा उसका हिसाब कौन देगा। मेरी राय में जिला प्रशासन और पुलिस के खिलाफ मान हानि का मुकदमा होना चाहिए। हम लोग बनारस जा रहे थे के रास्ते में ये खुशखबरी मिली तो हम लोगो ने एक दूसरे को मिठाई खिलाई और अल्लाह का शुक्र अदा किया।