पटनाः बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आज कहा कि कानून से नहीं बल्कि महिलाओं को शिक्षित कर ही जनसंख्या नियंत्रण संभव है। नीतीश कुमार ने सोमवार को ‘जनता के दरबार में मुख्यमंत्री’ कार्यक्रम के बाद पत्रकारों से बातचीत में कहा,“जो राज्य जो करना चाहे अपना करे लेकिन मेरा बहुत साफ मत है कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए सिर्फ कानून बनाकर कोई उपाय करेंगे तो भारत जैसे देश के लिए यह संभव नहीं है। चीन का उदाहरण सामने है और देश की भी क्या स्थिति है हमसब देख लें।” उन्होंने कहा कि जब महिलाएं पूरे तौर पर पढ़ी-लिखी होती हैं तब उनमें इतनी चेतना और जागृति आती है कि इसके कारण अपने आप प्रजनन दर घट जाती है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि बिहार में शुरू से इसके लिए काम किया गया है। इस पर इतना ज्यादा शोध और सर्वे किया गया है जिसमें देखा गया कि जब पति-पत्नी में पत्नी मैट्रिक पास है तो देश की औसत प्रजनन दर दो थी बिहार में भी दो ही थी लेकिन जब पत्नी जमा दो (इंटर) पास है तब राष्ट्रीय स्तर पर औसत प्रजनन दर 1.7 और बिहार में 1.6 थी । उन्होंने कहा कि इसी से उनके मन में यूरेका की भावना आई। उन्हें लगा कि यह कितनी बड़ी चीज है जन्म दर को कम करने के लिए।
शराब बंदी पर क्या बोले
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि संविधान के अनुच्छेदों का हवाला देकर सिर्फ समान नागरिक संहिता ही क्यों पूरे देश में नशाबंदी को भी लागू किया जाना चाहिए। नीतीश कुमार से सोमवार को ‘जनता के दरबार में मुख्यमंत्री’ कार्यक्रम के बाद जब पत्रकारों ने समान नागरिक संहिता के संबंध में दिल्ली उच्च न्यायालय की टिप्पणियों को लेकर सवाल किया तब उन्होंने कहा, “कॉमन सिविल कोड किस नंबर पर है। अनुच्छेद 44 की बात हो रही है न, जरा 47 भी देख लीजिए। बिहार में तो हम लोगों ने नशाबंदी लागू कर दी है।”
मुख्यमंत्री ने कहा कि कॉमन सिविल कोड पर उन्हें कुछ नहीं कहना है । संविधान का एक हिस्सा है, जिसमें कहा गया है कि इन सब चीजों पर ध्यान देना है इसलिए जब एक को लागू करने की बात होती है तो सब पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि जब कॉमन सिविल कोड की बात हो रही है तो पूरे देश में शराबबंदी भी तो होनी चाहिए।
‘जनता दरबार’ के अनुभवों से ही बिहार में बने कई अधिकार कानून
बिहार की नीतीश सरकार में लोगों से संवाद स्थापित कर समस्याओं के समाधान करने के उद्देश्य से पंद्रह वर्ष पूर्व शुरू हुए ‘जनता के दरबार में मुख्यमंत्री’ कार्यक्रम से प्राप्त अनुभवों के आधार पर लोक शिकायत निवारण अधिकार अधिनियम अस्तित्व में आया और ऐसा करने वाला बिहार पहला राज्य भी बना।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जनता से जुड़ने की संवाद आधारित शैली न केवल लोकप्रिय हुई बल्कि इससे राज्य में कई तरह की समस्याओं का समाधान भी हुआ और लोगों को उनके अधिकार भी मिले। पांच साल के अंतराल के बाद सोमवार को एक बार फिर ‘जनता के दरबार में मुख्यमंत्री’ कार्यक्रम शुरू हुआ और मुख्यमंत्री श्री कुमार ने लोगों से उनकी समस्याएं सुनी और उनके निराकरण के लिए अधिकारियों को निर्देश भी दिए।
श्री कुमार स्वयं मानते हैं कि वर्ष 2006 में शुरू हुए इस कार्यक्रम के अनुभवों से उन्होंने राज्य में लोक शिकायत निवारण अधिकार कानून लागू किया। साथ ही इस कार्यक्रम से प्राप्त अनुभव का ही प्रतिफल है कि राज्य में अपराध का एक प्रमुख कारण भूमि विवाद को समाप्त करने के लिए सर्वे का काम शुरू किया गया। आज से फिर शुरू हुए इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने 28 महिला समेत कुल 146 लोगों की समस्याएं सुनी।
इसके बाद मुख्यमंत्री ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि वर्ष 2006 में ही इस कार्यक्रम की शुरुआत करायी थी। प्रत्येक महीने तीन सोमवार को अलग-अलग विभागों की सुनवाई तय कर दी और वह निरंतर चलता रहा। शिकायतों के समाधान करने के दौरान विश्लेषण करते हुए वर्ष 2015 में मन में बात आई कि क्यों नही इसके लिए एक कानून बना दिया जाए। लोगों की शिकायत के निवारण के लिए लोक शिकायत निवारण अधिकार कानून वर्ष 2016 में लागू किया। इस कार्यक्रम के अनुभव के आधार पर कई और भी नियम बनाये गये। इस दौरान देखा गया कि भूमि विवाद और आपसी संपत्ति को लेकर सबसे ज्यादा हिंसा के मामले हुआ करते हैं। फिर जमीन का नया सर्वे कराने का काम तय किया गया जो अभी चल ही रहा है।