कृष्णकांत
निर्मला सीतारमण का कहना है कि राहुल गांधी अगर मजदूरों की मदद करना चाहते थे तो मजदूरों का सामान उठाकर उनके साथ पैदल कुछ दूर तक चलना चाहिए. तब उनकी मदद होती, सड़क किनारे बैठकर बातें करके केवल उनका वक्त बर्बाद किया’. निर्मला जी ने सोनिया और राहुल से अपील की है कि मजदूरों के लिए ट्रेन चलवाएं.
उनकी बातों से ऐसा लगता है कि सरकार मजदूरों का वक्त बर्बाद नहीं करना चाहती, इसलिए उनकी जिंदगियां बर्बाद कर रही है. ऐसा कह रही हैं कि जैसे सरकार के सारे मंत्री और वे खुद दिल्ली के मजदूरों की गठरी लादकर ओडिशा और झारखंड छोड़कर अभी ही लौटी हैं.
सोनिया और राहुल रेल चलवाएं तो सरकार क्या करेगी? खाली एक एक करके संपत्तियां बेचेगी और गाल बजाएगी? रेल चलवाने का काम केंद्र सरकार और रेल मंत्रालय का है या सोनिया गांधी का है? मतलब यह क्या बयान हुआ? कल को कह देंगी कि नेहरू, सोनिया और राहुल ने मिलकर मजदूरों की मदद नहीं करने दी. इन्होंने ही तीन महीने तक पूरी सरकार को बंधक बनाए रखा, वरना हम मजदूरों और गरीबों की बड़ी सेवा करते.
ऐसे बयान अहंकार का नतीजा होते हैं. सत्ता जब सिर चढ़कर बोलती है तो आंख से दिखाई देना, कान से सुनाई देना बंद हो जाता है. दिमाग काम नहीं करता. आंख में मांस उग आता है, मरते हुए लोग भी दिखाई नहीं देते. जबान से सिर्फ और सिर्फ अहंकार टपकता है.
लेकिन अच्छा है. क्रूरता की सीमाएं लांघ जाने को भी जनता देख रही है. समर्थक इसे भी मास्टरस्ट्रोक बताएंगे, लेकिन जिनके परिजन जान गवां रहे हैं, जो 2000 किलोमीटर पैदल चल रहे हैं, वे आपका सारा सेवाभाव जान चुके हैं. जो बचे हैं, वे भी जल्दी ही जान जाएंगे.
तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहां तख़्त-नशीं था,
उसको भी अपने ख़ुदा होने पे इतना ही यक़ीं था.
कोई ठहरा हो जो लोगों के मुक़ाबिल तो बताओ,
वो कहां हैं कि जिन्हें नाज़ बहुत अपने तईं था.
(लेखक युवा पत्रकार एंव कहानीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)