आज हम आपको बताएंगे कि राष्ट्रवादी परिवारवाद के क्या क्या फायदे हैं. कांग्रेस डेढ़ सौ साल पुरानी पार्टी है, इसलिए उसका परिवारवाद बहुत खराब चीज है, इससे देश को नुकसान होता है. लेकिन तीस साल पुरानी स्वघोषित राष्ट्रवादी पार्टी में अगर कई दर्जन परिवार राजनीति में सेट हो जाएं तो यह बहुत अच्छी बात है.
जिस नेता के परिवार ही नहीं रहा, वह परिवारवाद को कैसे बढ़ाता? यह तो प्राकृतिक समस्या थी. लेकिन जिसका अपना परिवार है, वह अपने बच्चों को राजनीति में सेटल करके कांग्रेस को कड़ी टक्कर दे रहा है. कुछ अपवाद हो सकते हैं.
कुछ लोग तो ऐसे भी हैं कि बेटे को सांसद और मंत्री बनाने का इंतजार नहीं कर सके और बीसीसीआई और डीडीसीए में घुसा दिया.
जैसे माननीय गृहमंत्री का माननीय बेटा BCCI में सचिव है. स्वर्गीय अरुण जेटली का बेटा DDCA का निर्विरोध अध्यक्ष बना. स्वर्गीय साहिब सिंह वर्मा का एक बेटा सांसद है और दूसरा बेटा DDCA का सचिव है. जो सांसद विधायक न बन सके उसे भी कहीं सेट कर दो, लेकिन ये सब बीजेपी में हो रहा, बीजेपी स्वनामधन्य राष्ट्रवादी है इसलिए इसे परिवारवाद नहीं कहा जा सकता.
अब आइए देखते हैं कि परिवारवाद के घोर आलोचक नरेंद्र मोदी जी ने कैसे परिवारवाद का सफाया कर रहे हैं.
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय मंत्री वेदप्रकाश गोयल और तीन बार विधायक रह चुकीं चंद्रकांता गोयल के बेटे पीयूष गोयल को मंत्री बनाकर मोदी जी ने परिवारवाद की धज्जियां उड़ा दीं.
आरएसएस के स्वयंसेवक और हरियाणा के नेता रहे बलदेव शर्मा की बेटी श्रीमती सुषमा स्वराज को मंत्री बनाकर परिवारवाद को खतम किया. सुषमा जी के पति स्वराज कौशल भी राजनीति में रहे. वे 1990 से 93 तक मिजोरम के गवर्नर और 1998 से 2004 तक राज्यसभा सांसद रहे. उनकी छोटी बहन वंदना शर्मा भी हरियाणा में विधानसभा चुनाव लड़ चुकी हैं.
निर्मला सीतारमण का परिवार आंध्र प्रदेश का बड़ा राजनीतिक परिवार है. उनके पति पराकला प्रभाकर दो बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं. पराकला के पिता आंध्र प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेता थे. वो मंत्री भी रहे. उनकी मां भी विधायक रहीं. पराकला आंध्र प्रदेश में टीडीपी की वर्तमान सरकार में कैबिनेट रैंक की कम्युनिकेशन एडवाइजर की पोस्ट पर थे.
जनसंघ के नेता और बिहार में कर्पूरी ठाकुर सरकार में मंत्री रहे ठाकुर प्रसाद के बेटे रविशंकर प्रसाद भी बीजेपी में रहकर परिवारवाद से अथक लड़ाई लड़ रहे हैं.
चौधरी बीरेंदर सिंह केंद्र में मंत्री हैं. वे किसान नेता सर छोटूराम के पोते हैं. बीरेंदर के पिता चौधरी नेकीराम भी पंजाब-हरियाणा की राजनीति में सक्रिय थे. बीरेंदर सिंह 2014 तक कांग्रेस में थे. अब भाजपा में हैं. उनकी पत्नी भी हरियाणा की उचाना कलां सीट से विधायक हैं.
राव इंद्रजीत सिंह पंजाब के मुख्यमंत्री रह चुके राव बीरेंदर सिंह के बेटे हैं. बीरेंदर सिंह हरियाणा और पंजाब की सरकार के साथ केंद्र में भी मंत्री रहे थे.
धर्मेंद्र प्रधान ओडिशा में भाजपा के बड़े नेता देबेंद्र प्रधान के बेटे हैं. देबेंद्र प्रधान वाजपेयी सरकार में मंत्री भी थे.
केंद्रीय मंत्री विजय गोयल केंद्र में मंत्री बनने से पहले दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष थे. इनके पिता चरती लाल गोयल कभी दिल्ली बीजेपी के बड़े नेता हुआ करते थे. वे दिल्ली विधानसभा के स्पीकर भी हुए थे.
वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे यशवंत सिन्हा के बेटे जयंत सिन्हा बीजेपी में ही हैं.
अपना दल की नेता अनुप्रिया पटेल मोदी सरकार में मंत्री बनीं. उनके पिता सोनेलाल पटेल ने पार्टी की स्थापना थी. उनके बाद मां-बेटी मिलकर पार्टी चला रही हैं.
किरण रिजिजू के पिता रिन्चिन खारू अरुणाचल प्रदेश की राजनीति में थे. वे पहली विधानसभा में प्रो-टर्म स्पीकर बने थे.
बीजेपी के मौजूदा बड़े नेताओं को देखिए तो कई नेताओं के बेटे राजनीति में बाप की विरासत संभालने को बेचैन हैं. राजनाथ सिंह अपने बेटे पंकज सिंह को राजनीति में सेटल कर चुके हैं. पंकज उत्तर प्रदेश भाजपा के महासचिव हैं और नोएडा से विधायक हैं.
नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे देवेंद्र प्रताप सिंह मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान टीवी पर बीजेपी का पक्ष रखते देखे गए थे. फिलहाल पोस्टरों में दिखते हैं. रामविलास पासवान की प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बीजेपी के साथ ही थी. रामविलास के निधन के बाद उनके भाई पार्टी तोड़कर बीजेपी के साथ गए.
बादल परिवार बीजेपी के सबसे पुराने सहयोगियों में रहा है जो किसान आंदोलन के चलते अलग हो गया. बाकी वरुण गांधी और मेनका गांधी को तो आप जानते ही हैं. सिंधिया परिवार भी पीढ़ियों से राजनीति में है जो अब राजस्थान से लेकर मध्य प्रदेश तक बीजेपी के साथ है.
जनसंघ और बीजेपी के ज्यादातर नेता अविवाहित रहे, इसलिए उनके बच्चों के राजनीति में आने का सवाल ही नहीं है. होते तो आते ही. अब कुछ लोग कहते हैं कि नहीं, गांधी परिवार कई दशक से सक्रिय है. तो भइया, यह कांग्रेस भी तो डेढ़ सौ साल पुरानी पार्टी है. बीजेपी में 50 साल बाद दर्जनों ऐसे परिवार होंगे जिनकी तीसरी चौथी पीढ़ियां राजनीति में काबिज होंगी. अब बीजेपी वाले तीस साल में चार पीढ़ियां कैसे ले आएं. जिनकी अगली पीढ़ी मौजूद है, उन्होंने उसे राजनीति में घुसा दिया है.
सारी क्षेत्रीय पार्टियां या तो वन मैन आर्मी हैं या फिर एक पारिवारिक कंपनी की तरह चल रही हैं. सबसे बड़ी बात, केंद्र में सात साल से काबिज बीजेपी में अगर लोकतंत्र होता तो डेढ़ लोगों की सरकार न होती!
(लेखक पत्रकार एंव कथाकार हैं)