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म्यांमार उन लोकतांत्रिक देशों के लिये सबक़ है जिनका ‘तंत्र’ बहुसंख्यकवाद से ग्रस्त होता जा रहा है

म्यांमार में एक फरवरी के बाद से अब तक 500 लोग मारे जा चुके हैं। ये तमाम लोग म्यांमार की सेना की गोली से मारे गए हैं। म्यांमार में रोहिंग्या के जनसंहार से पहले उनके ख़िलाफ नफरत भड़काई गई थी। रोहिंग्या के ख़िलाफ नफरत फैलाने वाला कोई और नहीं बल्कि बौद्ध धर्म प्रचारक अशीन विराथु था। इस शख्स को प्रतिष्ठित TIME मैग्ज़ीन ने बौद्ध आतंकवाद का ‘चेहरा’ करार दिया था।

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अशीन विराथू रोहिंग्या के ख़िलाफ नफरत फैलाता रहा और फिर वह दिन आया जब इसके द्वारा फैलाई गई नफरत ने छः लाख रोहिंग्या को अपना देश छोड़ने के लिये मजबूर कर दिया, हज़ारों मारे गए। मरने वालों में बच्चे, बूढ़े, जवान, महिलाएं सभी शामिल थे। रोहिंग्या की महिलाओं के साथ दरिंदगी भी हुई। रोहिंग्या जनसंहार में म्यांमार  का समाज, सेना और बौद्ध चरमपंथी शामिल रहे।

अब म्यांमार में रोहिंग्या नहीं हैं। लेकिन म्यांमार एक बार फिर जल रहा है। म्यांमार में एक फरवरी को सेना ने तख़्तापलट कर दिया था, और लोकतांत्रिक तरीक़े से चुनी गई आंग सांग सूकी को गिरफ्तार कर लिया था। अब म्यांमार सेना के हवाले है, लोकतंत्र खत्म हो चुका है। लोकतंत्र की बहाली के लिये प्रदर्शन करने वाली जनता पर म्यांमार की सेना गोलियां चला रही हैं। म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्ध समुदाय के दिमाग़ो में रोहिंग्या के ख़िलाफ ज़हर भरने वाला अशीन विराथु अब सेना का समर्थन कर रहा है।

एक वह भी वक़्त था जब म्यांमार की बहुसंख्यक समुदाय को अशीन विराथू में ‘मसीहा’ और रोहिंग्या मे ‘दुश्मन’ नज़र आया था। लेकिन आज वही अशीन विराथू म्यांमार की सेना के साथ है। मौजूदा म्यांमार एक सबक़ है, खासकर उन देशों के लिये जो बहुसंख्यकवाद से ग्रस्त होकर मानवीय मूल्यों को नुक़सान पहुंचाते हैं। मौजूदा म्यांमार उस समाज के लिये भी सबक़ है जो अपने समाज में ‘अशीन विराथू’ पालते हैं और किसी एक संप्रदाय की नफरत में दिमाग़ी अपाहिज़ हो जाते हैं। उन्हें समझना चाहिए कि अशीन विराथू जैसे प्राणी लाशों पर पैर रखकर ही सत्ता की कुर्सी तक पहुंचते हैं। तीन साल पहले उन्होंने रोहिंग्या की लाशों पर चढ़कर सत्ता हासिल करने की कोशिश की थी, लेकिन अब ‘अपने’ ही लोगों की लाशों पर चढ़कर सत्ता शिखर पर पहुंच चुके हैं।

भारत में भी पिछले कुछ वर्षों में बहुत सारे ‘अशीन विराथू’ उग आए हैं। इनमें से कई तो मंदिर के महंत हैं, कुछ टीवी के एंकर हैं, कुछ टीवी के पैनेलिस्ट हैं, कुछ ‘बुद्धिजीवी’ हैं। इन्हें भी सत्ता का उसी तरह संरक्षण प्राप्त है जिस तरह अशीन विराथू को प्राप्त था। लेकिन आज म्यांमार कैसा है यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है।