मैं पत्रकार हूं। पिछले दस साल के दौरान हर दिन आठ से नौ घंटा न्यूजरूम में गुजरा है। मैं आज तक ये जानता था कि जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने ये बयान दिया था। यह बात इतनी प्रचारित हुई कि हम पत्रकारों और तमाम लोगों के दिमाग में यह बात घर कर गई कि मनमोहन सिंह ने ऐसा कहा था।
अब सुनिए फेक न्यूज की राम कहानी:
हुआ ये कि बजट सत्र के चौथे दिन संसद में राष्ट्रपति के धन्यवाद ज्ञापन प्रस्ताव पर चर्चा थी. इसमें अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी ने अपने भाषण के दौरान कहा कि “कभी कहा जाता था कि इस देश के संसाधनों पर एक सम्प्रदाय विशेष का अधिकार है. वो अधिकार देने वाले नहीं थे लेकिन कहते ज़रूर थे।”
स्वाभाविक तौर पर लोगों ने इसे मनमोहन सिंह के उस पुराने बयान से जोड़ा। लेकिन लल्लनटॉप के एक पत्रकार के कान इस बात पर अटक गए और उन्होंने खोजइया शुरू कर दी कि क्या सच में मनमोहन सिंह ने ऐसा बोला था?
लल्लनटॉप ने पाया कि मनमोहन सिंह का यह कथित विवादित बयान 15 साल पुराना है। 9 दिसंबर 2006 को उन्होंने बतौर प्रधानमंत्री नेशनल डेवलपमेंट काउंसिल को संबोधित किया था। उसी के बाद यह कथित बयान चर्चा में आया था।
उस समय प्रधानमंत्री विकास परिषद के डि फेक्टो अध्यक्ष हुआ करते थे। इस हैसियत से बैठक में डॉ मनमोहन सिंह ने भाषण दिया था। लल्लनटॉप को मनमोहन सिंह के इस भाषण का कोई वीडियो नहीं मिला, लेकिन लिखित रूप में ये भाषण मिल गया। प्रधानमंत्री का हर भाषण प्रधानमंत्री कार्यालय में सुरक्षित रहता है।
प्रधानमंत्री का यह कथित बयान उस भाषण के एक अंश को संपादित करके निकाला गया था। पूरा पैराग्राफ इस तरह है: “मेरा मानना है कि हमारी सामूहिक प्राथमिकताएं स्पष्ट हैं- कृषि, सिंचाई – जल संसाधन, स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्रामीण बुनियादी ढांचे में महत्वपूर्ण निवेश, और सामान्य बुनियादी ढांचे के लिए आवश्यक सार्वजनिक निवेश की जरूरतें, साथ ही अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए कार्यक्रम, अल्पसंख्यक और महिलाएं और बच्चों के लिए कार्यक्रम। अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए योजनाओं को पुनर्जीवित करने की ज़रूरत है। हमें नई योजना लाकर ये सुनिश्चित करना होगा कि अल्पसंख्यकों का और खासकर मुस्लिमों का भी उत्थान हो सके, विकास का फायदा मिल सके। इन सभी का संसाधनों पर पहला हक़ है। केंद्र के पास बहुत सारी जिम्मेदारियां हैं, और ओवर-ऑल संसाधनों की उपलब्धता में सबकी ज़रूरतों का समावेश करना होगा।”
इस वीडियो को एडिट किया गया और ऐसे प्रसारित किया गया कि प्रधानमंत्री ने कहा है कि देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है। भाषण में कहीं नहीं कहा गया है कि देश के संसाधनों पर पहला हक किसी एक समुदाय का है। डॉ मनमोहन सिंह एस, एसटी, ओबीसी, महिलाओं, बच्चों और अल्पसंख्यकों की बात कर रहे थे। उन्होंने उसी संदर्भ में कहा कि संसाधन पर पहला हक इनका होना चाहिए, जिनमें मुस्लिम भी शामिल हैं। वे समूचे वंचित तबके के उत्थान की बात कर रहे थे।
एनडीटीवी का 2010 का एक वीडियो अब भी इंटरनेट पर मौजूद है जिसमें मनमोहन सिंह कहते सुने जा सकते हैं, “We will have to devise innovative plans to ensure that minorities, particularly the Muslim minority, are empowered to
share equitably the fruits of development. These must have the first claim on resources…” भाषण 2006 का था। एनडीटीवी और बहुत सी वेबसाइट पर यह बयान 2010 में छापा गया है।
हालांकि, टाइम्स आफ इंडिया में 9 दिसंबर, 2006 को ही छपी खबर की हेडिंग है, ‘Muslims must have first claim on resources: PM’
यह हिस्सा ज्यादातर मीडिया की वेबसाइट पर आज भी मौजूद है। लेकिन पूरा पैराग्राफ किसी खबर में नहीं है। जागरण, बीबीसी सहित तमाम वेबसाइट्स पर इससे जुड़ी खबरें हैं कि मनमोहन सिंह ने ऐसा कहा।
असली पैराग्राफ ये था: “I believe our collective priorities are clear: agriculture, irrigation and water resources, health, education, critical investment in rural infrastructure, and the essential public investment needs of general infrastructure, along with programmes for the upliftment of SC/STs, other backward classes, minorities and women and children. The component plans for Scheduled Castes and Scheduled Tribes will need to be revitalized. We will have to devise innovative plans to ensure that minorities, particularly the Muslim minority, are empowered to share equitably in the fruits of development. They must have the first claim on resources. The Centre has a myriad other responsibilities whose demands will have to be fitted within the over-all resource availability.”
10 दिसंबर, 2006 को पीएमओ ने इस बारे में स्पष्टीकरण भी दिया था लेकिन उसे किसी ने सुनने पढ़ने की जहमत नहीं उठाई।
आज मेरा निष्कर्ष है कि यह इतने बड़े स्तर का फेक न्यूज स्कैंडल था कि सेकुलर, प्रोग्रेसिव, लोकतांत्रिक मूल्यों वाले पत्रकारों और मीडिया संस्थानों की भी आंख पर पट्टी बंध गई। यहां तक कि कई बार आपसी बहसों में मेरे दोस्तों ने इस बयान को कोट किया और मैं चुप रह गया।
मैं खुद एक पत्रकार होकर पिछले 15 साल से अंधेरे में था। आप भी हैं। आज पूरा देश अंधेरे में है। मैं आज सोच रहा हूं कि यह मनमोहन सिंह और उस समय की सरकार की असफलता थी कि उसने सार्वजनिक बयान देकर इसका खंडन क्यों नहीं किया? पीएमओ ने सिर्फ अपने वेबसाइट पर स्पष्टीकरण क्यों दिया? 2006 में शायद एक परसेंट लोगों के पास भी मोबाइल इंटरनेट वगैरह नहीं था। मनमोहन सिंह सरकार ने फेक न्यूज की फैक्ट्री को उसी समय कुचल दिया होता तो आज यह अरबों का कारोबार न बना होता जो आज देश को बर्बाद करने के अभियान पर है।
2006 में मैं बीए की पढ़ाई कर रहा युवक था। आज मैं एक पेशेवर पत्रकार हूं और मैं दावे से कह सकता हूं कि भारत एक ऐतिहासिक, खतरनाक और क्रूर स्कैंडल का सामना कर रहा है। आज यहां चर्चा हो रही है कि आप आम चूस कर खाते हैं या काट कर? लेकिन इस देश की धमनियां और रक्तशिराओं को काटा जा रहा है ताकि जल्दी से जल्दी प्राण निकल जाएं।
असली सवाल है कि 15 साल से फेक न्यूज का कारोबार कर रहे ठग इस देश के कंकाल का करेंगे क्या? और आप? आपके हाथ से सबकुछ छिन जाएगा तो आप क्या करेंगे?
मनमोहन सिंह ने पद से हटने से पहले कहा था कि इतिहास मेरे प्रति उदार रहेगा। इतिहास की तो दूर, वर्तमान ने ही इस देश को आईना दिखा दिया। उनके पद से हटने के दो तीन साल बाद से ही देश के लोग, मीडिया के लोग मनमोहन सिंह को याद करने लगे।
आज जब देश 50 साल में सबसे बुरी बेरोजगारी, सबसे जर्जर अर्थव्यवस्था, सबसे घृणित सामाजिकता, सबसे निकृष्ट मानसिकता, सबसे ज्यादा महंगाई, सबसे अनिश्चित भविष्य का सामना कर रहा है, तब मनमोहन सिंह बार बार याद किए जाते हैं।
मनमोहन सिंह सही से ज्यादा सही थे। उनके इतिहास के पाले में जाने से पहले ही उनकी उपादेयता साबित हो चुकी है। जिस देश में एक प्रधानमंत्री ने अपने खिलाफ आरटीआई, लोकपाल जैसे कानून दिए, उसी देश में एक दूसरे प्रधानतंत्री ने आरटीआई, लोकपाल, प्रिवेंशन आफ करप्शन एक्ट जैसे दर्जनों कानून जनता से छीन लिए हैं और अमृत काल की घोषणा कर दी है।
आज हम जहां फंसे हैं, मेरी समझ से भारत से ऐसे अनर्थकाल का सामना कभी नहीं किया है। हमने एक मेहनती, पढ़े लिखे, योग्य अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री के प्रति घृणा और मिथ्या अभियान चलाया और आज हमें ऐसी ठगी में फंसा दिया गया है कि हमसे रोज कुछ न कुछ छीना जा रहा है।
(लेखक पत्रकार एंव कथाकार हैं)