मोदी की सारी क्षमता नकारात्मक कामों में लगा दी गई

हमें पता नहीं कि यह गलत है या सही। प्रधानमंत्री मोदी इसे समझेंगे या नाराज होंगे। मगर वे देश के प्रधानमंत्री हैं। इसलिए उनके बारे में लिखने, सवाल उठाने की अगर जरूरत है तो वह किया जाना चाहिए। और हम बिना पूर्वाग्रह के यह करने की कोशिश कर रहे हैं। हमारा मानना है कि मोदी बीजेपी और संघ के सबसे अच्छे बैटेसमेन हैं। पूरी तरह कैप्टन और कोच के अनुसार बेटिंग करना। बहुत सारे लोग नहीं मानते मगर हमारा मानना है कि वे अपने कैप्टन, कोच जो संघ है उसके कहने से कभी भी रिटायर होकर क्रीज से वापस आने में इनकार नहीं करेंगे। मोदी के मास्टरस मेन ( संगठन के कहे अनुसार काम काम करने वाला) होने में हमें कोई शक नहीं है।

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लेकिन हमारा सवाल संघ और भाजपा से है। मोदी के रूप में उन्हें पहली बार ऐसा नेता मिला था जो हमेशा उर्जा से भरे रहते हैं। बताए हुए हर काम को करने को तैयार रहते हैं। कभी अपनी असहमति नहीं जताते। ऐसे नेता किसी भी संगठन के लिए ऐसेट ( मूल्यवान) होते हैं। मगर सवाल यह है कि क्या संघ और भाजपा ने उनका सही तरीके से उपयोग किया?


पिछले 8 साल से वह उनका उपयोग हिन्दू मुसलमान के लिए कर रही है। मगर यह काम तो वह आजादी के पहले से कर रही थी और अपने हर स्वयंसेवक के जरिए यह अभी तक जारी था। मगर क्या मोदी के रूप में एक गेम चेंजर मिलने के बाद भी उसके मन में कभी भारत को वास्तविक रूप से मजबूत करने की रूपरेखा नहीं आई? बातें तो बहुत हैं। विश्व गुरु भी कहते रहते हैं। मगर क्या इससे दुनिया में नाम हो गया। यह तो भक्तों के लिए हैं। जैसे बच्चों को सुनाते रहते हैं कि तुम्हारे दादा के पास इतनी जमीन थी। और परदादा के पास इतने गांव। मगर स्कूल छूट गया बच्चा जानता है कि उसको भी थोड़ा बड़ा होते ही किसी सिक्योरटी ऐजेंसी में लगना है या मौका लग गया सीख गए तो ड्राइवर बन जाना है। पुरखों के महिमामंडल की कहानियां उसे प्रेरित नहीं करती है। उसके मुकाबले पड़ोस के लड़के की स्कूल जाने, पढ़ने की वास्तविकता उसे रोमांचित करती रहती है।


भारत के विश्व गुरु की बातें घरेलू कंजम्पशन ( बच्चों को बेवकूफ बनाने) के लिए तो इतने सालों से सुना रहे थे मगर अब जब इस दिशा में कुछ करने का मौका था तो अपने प्रधानमंत्री को भी श्मशान, कब्रिस्तान, कपड़ों से पहचान लेंगे जैसी विभाजनकारी, नफरती बातों में उलझा दिया। दुनिया कैसे स्वीकार करेगी? वह तो समझ ही नहीं पाई। दुनिया में तो मृत्यु के बाद कब्रिस्तान ही होते हैं। और पूरी गरिमा के साथ। उस पर हमला किन अच्छे अर्थों में समझा जा सकता है। और कपड़ों से पहचानना? दुनिया में तो हजारों तरह की वेशभूषा है। और उससे न कोई किसी की पहचानता है और न वह कोई पहचान होती है। लेकिन अगर विश्व गुरु देश का मुखिया यह कहे तो विश्व उसे कैसे लेगा? मजाक में भी नहीं। या तो उस वक्तव्य को ठुकराते हुए या निंदा करते हुए। देश में 2014 से पहले पैदा होना शर्म की बात थी। अब विदेशी इसे कैसे समझेंगे? कोई प्रचारक तो बोल नहीं रहा विश्व गुरु के यहां से बात हो रही है और वह भी विदेश में। तो इसे अवाइड तो किया नहीं जा सकता। दुनिया पूछेगी ही कि राम, कृष्ण बुद्ध, नानक को छोड़ भी दें तो फिर गांधी, रवीन्द्र नाथ टेगौर जैसे आधुनिक समय के लोगों को हम क्या समझें?


हर राजनीतिक दल की तरह भाजपा के पास भी देश को लेकर एक सपना होगा। उसे पूर्ण बहुमत के साथ यह मौका मिला। तो क्या वह हिन्दु मुसलमान से आगे कुछ नहीं है। सिर्फ और सिर्फ उनको लड़ाना ही उद्देश्य है। देश में लगातार नफरत और विभाजन फैलाते रहना। आखिर कब तक?


समय की गति तो अपनी होती है। उसमें अन्तरविरोध अपने आप उजागर होने लगते हैं। कहते हैं जिसे कोई नहीं मार पा रहा उसे उसके अन्तरविरोध मार देंगे। क्या वह समय आ गया? सेना में ठेके पर भर्ती के खिलाफ देश भर में जैसा माहौल बना है इसकी कल्पना किस ने की थी। अभी हफ्ते भर पहले तक तो वे पूरे जोर शोर से हिन्दू मुसलमान चला रहे थे। गिरफ्तारियां, थाने में लड़कों की पिटाई के वीडियो, बुलडोजर चला रहे थे। लेकिन सारा धार्मिक नफरती माहौल एक मिनट में छिन्न भिन्न हो गया। अपने भविष्य को लेकर चिंतित युवा सड़कों पर उतर आए।


भविष्य की चिंता धर्म की अफीम पर भारी पड़ गई। ऐसे ही किसान आए थे। वे भी धर्म की अफीम के नशे में थे। मगर जब उनकी जमीन, खेती पर सवाल आया तो उनका सारा नशा काफूर हो गया। प्रधानमंत्री को माफी मांगना पड़ी। कृषि कानून वापस लेना पड़े।


ऐसे और भी उदाहरण हैं। भूमि अधिग्रहण कानून, कोरोना वैक्सिनेशन का शुल्क जिन्हें बाद में वापस लेना पड़ा यह सब प्रधानमंत्री मोदी से करवाए गए ऐसे फैसले थे जो कतई भी जनता के हित में नहीं थे। उदाहरण बहुत हैं। लिखने की जगह कम पड़ जाएगी। चीन की घुसपैठ पर दिलवाया गया वक्तव्य कि न कोई घुसा था न कोई है, या नोटबंदी, या कश्मीर में कश्मीरी पंडितों, अन्य लोगों की सुरक्षा में चूक जैसे कई मामले अन्तत: प्रधानमंत्री के नेगेटिव खाते में ही जाएंगे।


यहां हमारा सवाल है कि आखिर संघ भाजपा ने प्रधानमंत्री मोदी से ऐसे काम क्यों करवाए जो सिर्फ और सिर्फ नकारात्मक छवि बनाने वाले ही थे। और देश एवं जनता किसी के भी हित में नहीं थे। क्या वे समझते है कि कभी एक समुदाय को कभी दूसरे को बेवकूफ बनाकर अनंत काल तक सत्ता बनाए रख सकेंगे? और साथ में अपने नायक की छवि भी? क्या उन्होंने कभी इस बात को समझा कि एक आदमी जो हर बात उनकी मानता है और अपनी मर्जी कहीं भी नहीं लाता उसका बेहतर उपयोग करते देश की बड़ी समस्याओं के खिलाफ उसे लड़ाया जा सकता है।


2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद उनके बहु प्रचारित सफाई अभियान पर हमने लिखा था कि यह देश के कल्चर को बदलने वाली एक बड़ा कदम हो सकता है। मगर साथ ही लिखा था कि बशर्त इसे भाजपा संघ अपने अन्य राजनीतिक मुद्दों की तरह केवल प्रतीकात्मक नहीं बनाए। आज 8 साल हो गए। प्रधानमंत्री को कई बार झाड़ू लेकर उतार दिया। मगर देश में गंदगी उतनी है। साफ सफाई का कल्चर जरा भी नहीं बदला है। ऐसे ही भ्रष्टाचार के मामले में अगर मोदी जैसा प्रधानमंत्री मजबूती से खड़ा हो जाता तो आज 8 साल बाद हम कह सकते थे कि देश में भ्रष्टाचार बहुत कम रह गया है। मगर उन्हीं की सबसे बड़ी योजना नोटबंदी में जितना भ्रष्टाचार हुआ। सारा काला धन बदलकर व्हाइट हो गया यह किसी से छुपा नहीं है। सिवाय गरीब के किसी के भी एक पैसे का नुकसान नहीं हुआ। चुनाव जो कभी इतने महंगे नहीं थे वे पूरा पैसों का खेल बन गए। विधायकों की खरीद फरोख्त इससे पहले कभी ऐसे खुले आम नहीं होती थी। शिक्षा और स्वास्थ्य का सार्वजनिक क्षेत्र में ऐसा बुरा हाल कभी नहीं था। प्राइवेट अस्पतालों ने ऐसी लूट कभी नहीं मचाई थी। यह सब क्षेत्र अगर प्रधानमंत्री को काम करने के लिए दिए जाते तो क्या आज भारत की तस्वीर बदल नहीं जाती।


हमारा मानना है कि यह सारी असफलताएं प्रधानमंत्री मोदी की कम संघ और भाजपा की सीमित सोच और प्रधानमंत्री को एक चले आ रहे सिस्टम से काम न करने देने के कारण हैं। एक प्रधानमंत्री की सामर्थ्य को बेकार कर दिया गया। ऐसा कांग्रेसियों ने 1968- 69 में इन्दिरा गांधी के साथ करने की कोशिश की थी। मगर उन्होंने कांग्रेस संगठन के बंधे बंधाए पुराने ढांचे में काम करने से इनकार कर दिया था। देश बदल रहा था और उसके मुताबिक वे सरकार को काम करने को तैयार कर रही थीं जो पुराने लोगों को मंजूर नहीं था। यहां तक कि कांग्रेस ने इन्दिरा को पार्टी से निकाल भी दिया था। मगर उन्होंने वक्त की जरूरत पहचानी और इतिहास, भूगोल सब बदल दिया।


प्रधानमंत्री मोदी का आज जिक्र इसीलिए कि उनमें मौजूद संभावना का संघ और भाजपा देशहित में उपयोग नहीं कर पाए। मोदी तो शायद संतुष्ट होंगे कि उन्हें जो काम दिया जाता है उसे वे कर देते हैं। मगर यह कोई कोमल शर्मा, नुपूर शर्मा, साध्वी प्रज्ञा, कालीचरण, तेजेन्द्र बग्गा जैसे टास्क नहीं हैं कि करो और खुश हो जाओ!


भारत का प्रधानमंत्री बनना बहुत गौरव की बात है। लेकिन उसका लगातार नकरात्मक कामों में उलझा रहना देश के और खुद उसके लिए विचारणीय प्रश्न होना चाहिए। और उस संगठन के लिए भी जिसे एक ऐतिहासिक मौका मिला मगर उसने ईष्या, द्वेष में खो दिया। हिंसा और क्रूरता बढ़ गई। और देश में सिर्फ हिन्दू मुसलमान ही नहीं, सब एक दूसरे के प्रति ज्यादा नफरत और अविश्वास से भर गए।