देश की वैक्सीन खरीद नीति अब कई सवालों से घिर गई है सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने 2022 तक वेक्सीन की कमी की पूर्ति का दावा करते हुए कहा था कि दिसम्बर 2021 तक वेक्सीन को 216 करोड़ डोज प्राप्त करने की बात की थी इस प्लान में 30 करोड़ बायो ई सबयूनिट, 5 करोड़ जायडस कैडिला डीएनए, 20 करोड़ नोवा, 6 करोड़ जिनोवा वेक्सीन अगस्त से दिसंबर 2021 तक उपलब्ध होगीं।
यानी फ़ाइजर, मोडर्ना ओर स्पूतनिक जैसी प्रतिष्ठित वेक्सीन जिन्हें अनुमति दी जा चुकी है उन्हें छोड़कर बिल्कुल नयी कम्पनियो से वेक्सीन के सौदे किये गए जिनके न थर्ड ट्रायल का पता था न ओर न सेफ्टी एफिकेसी डाटा का ? इन नयी वेक्सीन पर जनता का पैसा बर्बाद किया गया। आज खबर आई है कि देश में कोरोना वायरस के खिलाफ चल रहे टीकाकरण अभियान में बायोलाजिकल ई के टीके की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि सीरम इंस्टीट्यूट की कोविशील्ड और भारत बायोटेक की कोवैक्सीन टीके से ही टीकाकरण का बड़ा काम पूरा हो जाएगा।
जून 2021 में बायोलाजिकल ई कंपनी ने एडवांस दिए जाने की शर्त पर वादा किया था कि वह इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत मिलने के पहले ही इतने डोज बनाकर रख लेगी और इजाजत मिलते ही सरकार को सप्लाई कर देगी। अब अक्टूबर में मोदी सरकार यह नही बता रही हैं कि बायोलाजिकल ई कंपनी को 30 करोड़ बायो ई सबयूनिट वेक्सीन खरीदने के लिए जो 1500 करोड़ एडवांस दिया गया था उसका क्या करेगी!
सरकार यह भी नही बता रही है कि जिस वैक्सीन की प्रभावी क्षमता को लेकर पर्याप्त आंकड़े ही उपलब्ध नहीं थे। उसे 1500 करोड़ एडवांस देने की जरूरत क्या थी? ओर यह एडवांस किसके दबाव में दिया गया? आपको याद ही होगा कि भारत मे बिल गेट्स की प्रतिनिधि बनी हुई वायरोलॉजिस्ट गगनदीप कांग ने इन वेक्सीन की खरीद के पक्ष में बयानबाजी की थी।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)