अब्बास पठान
“भारतीय मज़दूर संघ” जो कि भारत का सबसे बड़ा श्रमिक संगठन है। ये संगठन मज़दूरों के सबसे बुरे दौर में कहीं नज़र नहीं आ रहा। भारतीय मज़दूर संघ इस समय कहाँ है कुछ पता नहीं चल पा रहा है। अब तो मुझे इस बात पर भी सन्देह होने लगा है कि कोई इस नाम का मज़दूर संगठन है भी या नहीं…!
दिल्ली में मज़दूरी करने वाले “रामपुकार” को ख़बर मिलती है कि उसके एक वर्षीय बच्चे के मौत हो गयी है, इकलौते बच्चे की मौत की ख़बर सुन बाप विचलित हो जाता है और रोता बिलखता पैदल ही 1200 किलोमीटर दूर बेगूसराय स्थित अपने गाँव की तरफ चल पड़ता है। आख़िर वो जैसे तैसे ख़ुद का बोझ उठाकर यूपी बॉर्डर तक पहुँच जाता है लेकिन बॉर्डर पर उसे रोक लिया जाता है। तीन दिन तक उसे अंदर नहीं घुसने दिया जाता। आख़िर एक अख़बार की मदद से उसकी फरियाद दिल्ली पुलिस सुनती है और उसे श्रमिक ट्रेन तक पहुँचाने का पुनीत कार्य करती है।
लाखों मज़दूरों के पास ऐसी ही अपनी-अपनी दर्दनाक कहानियाँ हैं। इसी दरमियान एक कहानी ये भी है कि उज्बेकिस्तान से लाए गए यॉर्कशायर प्रजाति के कुत्ते का स्वागत नई दिल्ली के डीएम ने अपने ट्विटर पेज से किया। कुत्ते को स्वागत में चिप्स और बिस्किट भी दिए गए। इधर हमारे देशी नस्ल के रोडेशिय कुत्ते लॉकडाउन के चलते खासे परेशान है। हाई-वे सड़को पर होटल ढाबों के बन्द होने के कारण रोडेशियन कुत्तों के खाने पीने के लाले पड़ चुके हैं। हाई-वे मार्ग, उद्योगिक क्षेत्र तथा खनन क्षेत्र में पाए जाने वाले कुत्ते शहरों की तरफ पलायन करने पर मजबूर है।
इस तरह से हमारी गलियों सड़कों के रोडिशयन कुत्ते खूंखार हो चुके हैं, उनकी यादाश्त कमज़ोर हो चुकी है, वे अपना आपा जल्दी खोने लगे हैं। और दूसरी तरफ दिल्ली प्रशासन यॉर्कशायर प्रजाति के कुत्ते को सबसे युवा पैसेंजर कहकर स्वागत कर रहा है, ये व्यवहार देशी कुत्तों के जले पर नमक छिड़कने जैसा है। बहरहाल “स्वदेशी” शब्द को थोड़ा और गहराई से समझने की जरूरत है हमें.. भारत में कमीशन कटवाकर दिहाड़ी कमाने वाले खरे स्वदेशी है, और विदेशों में “डॉलर यूरो” कमाने वाले स्वदेशी नहीं हैं। आप स्वदेशी का नारा बहुत जोर से लगा रहे हैं, और उतने ही जोर से परदेशियों के लिए पलकें बिछा रहे हैं। ख़ैर, आप तो आप हैं! आप जो भी करें, चमत्कार है।
बहरहाल बात “भारतीय मज़दूर संघ” के लापता होने से शुरू की गई थी। भारतीय मज़दूर संघ दरअसल आरएसएस से जुड़ा हुआ संगठन है। हो सकता हैं कहीं टेंट में प्रवासियों के लिए पूड़ियाँ तल रहा हो! श्रम कानूनों में बदलाव की शुरुआत हुए 10 दिन बीत जाने के बाद मज़दूर संघ की तरफ से हल्की सी हरकत हुई है। लेकिन ये हरकत नाकाफी है, इसे केवल अपनी उपस्थिति दर्ज करवाकर कक्षा से भाग जाना कहा जाएगा।
(लेखक अब्बास पठान राक्षसराज पुस्तक के लेखक हैं)