पूजा महज 8 साल की थी जब अनाथ हो गई थी. उसके माता-पिता दोनों की मौत हो गई. पूजा को उसके रिश्तेदारों ने अपनाने से मना कर दिया था. कोई सहारा नहीं था. ऐसे में महबूब मसली को लगा कि ऐसा नहीं होना चाहिए. किसी बच्चे के सिर से साया नहीं हटना चाहिए. महबूब बच्ची की देखभाल के लिए आए. उन्होंने बच्ची को अपना लिया. उनको पहले से ही दो बेटियां और दो बेटे थे. पूजा अब इस घर की बच्ची हो गई.
महबूब अब पूजा वाडिगेरी के पिता बन गए. उसका जिम्मा उठाकर देखभाल करने लगे. उन्होंने पूजा को अपने बच्चों की तरह की प्यार दिया. उसे पाला-पोसा और पढ़ाया-लिखाया. उसे अपनी बच्ची समझा और बाकी बच्चों की तरह ही वह भी रही. जब बेटी 18 साल की हो गई तो उन्होंने एक हिंदू दूल्हा खोजा और हिंदू रीति-रिवाज से पूजा की शादी करवाई.
उनका कहना है कि “यह मेरी जिम्मेदारी थी कि मैं उसकी शादी हिंदू लड़के से करवाऊं. मैंने कभी उस पर हमारी संस्कृति अपनाने का दबाव नहीं डाला. कभी इस्लाम अपनाने का दबाव नहीं डाला. ऐसा करना मेरे मजहब के खिलाफ है.” महबूब ने कभी पूजा से ये भी नहीं पूछा कि वह निकाह करेगी या विवाह करेगी.
पूजा का कहना है, “मैं बहुत खुशनसीब हूं. मुझे ऐसे मां बाप मिले जिन्होंने मेरा काफी ख्याल रखा.” यह वाकया कर्नाटक के विजयपुरा का है. पूजा की शादी में दोनों धर्मों के लोग शामिल हुए. बिना दहेज के शादी हुई.
महबूत मसली अपने इलाके में मजहबी शांति और सदभाव के लिए मशहूर हैं. वे हिंदू त्योहारों और उत्सवों में शामिल होते हैं. लोग उनकी बहुत इज्जत करते हैं. हर दौर में, हर जाति-धर्म में दुष्ट, बदमाश, अपराधी होते हैं. लेकिन असल दुनिया का जीने का तरीका और है.
भारत में हिंदू, सिख, बौद्ध, ईसाई और मुसलमान सब आपस में एक हैं. कल वे साथ मिलकर आज़ादी की लड़ाई लड़े थे. फिर मिलकर एक भारत का निर्माण किया. इसे तोड़ने वाले कल भी थे, इसे तोड़ने वाले आज भी हैं. ऐसे तत्वों से अपने देश को बचाना हमारा आपका फर्ज है.
पूजा की कहानी पढ़कर मैंने सोचा- ‘लव जिहाद’ और लिंचिंग के दौर में भी इंसानियत का परचम लहरा है. अगर ऐसा न होता तो पूजा को पिता के रूप में महबूब कैसे मिलता!