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मीठा जहर है मीडिया, सरकार शायद कुछ समझी

सात साल में पहली बार हुआ। मोदी सरकार ने अपने पांव वापस खींचे। अभी तक वह आक्रामक रूप में थी। सबसे भंयकर समय कोरोना का आया। दूसरी लहर में। जनता बिना इलाज के मरी। और मरे हुओं को विधिवत दाह संस्कार भी नसीब नहीं हुआ। मगर उस निर्मम वक्त भी सरकार चिंतित और मदद करने की मुद्रा में नहीं आई। सारी जिम्मेदारी एक अमूर्त सिस्टम पर डाल दी गई। और इस पर सब्र नहीं आया तो कहा गया कि मरने वाले मोक्ष को प्राप्त हो गए।

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मगर अब पेट्रोल डीजल के भावों में कमी औऱ फिर मुबंई में समीर वानखेड़े को जांच से हटाना दो ऐसे काम हुए जिससे पहली बार लगा कि सरकार लड़खड़ाई है। और संभलने के लिए पिछले पांव पर आई है। मोदी सरकार के कामकाज का तरीका देखते हुए यह आश्चर्यजनक है। उसकी पूरी ब्रांडिंग आक्रामकता में छुपी हुई है। वह आक्रामकता सामान्य जनता के खिलाफ है। दलित, पिछड़ों, कमजोर तबकों के खिलाफ है। और जहां जो जाति चाहे वह सवर्ण में सर्वोच्च हो दब जाए तो उसके खिलाफ है। जैसे उत्तर प्रदेश में। वहां किसी प्रमाण की जरूरत नहीं हैं। खुद योगी सरकार के मंत्री जितिन प्रसाद सबसे बड़े गवाह और प्रमाण हैं। ब्राह्म्णों की हत्या के जिलेवार आंकड़े उन्होंने ही जारी किए थे। राज्य में इसके खिलाफ आंदोलन एक अलग ब्रह्म संगठन बनाकर वे ही चला रहे थे। वे सारे तथ्य आज भी बिना जांच के हैं। बेहतर होगा कि जितिन ही अपने लगाए आरोपों की जांच करें और जांच रिपोर्ट जारी करें। मंत्री हैं सारी सुविधाएं व्यवस्थाएं हैं। कह दें कि ब्राह्मणों के द्वारा लगाए गए सारे आरोप झूठे और फर्जी थे। बात खत्म हो जाएगी। और नई पार्टी में उनका रुतबा माना जाने लगेगा। अभी जो गरीब के गोद लिए बालक से दया से देखे जाते हैं वह रुतबा बदलकर घर के वारिस की तरह रौबदार हो जाएगा।

खैर वह उनकी मर्जी है कि किस स्थिति में खुश रहते हैं। मगर बात यह हो रही थी कि आक्रामकता है सारी आम जनता के खिलाफ। मगर दिखाई जा रही है मुसलमान के खिलाफ। उन्हें लगता है कि हिन्दु मुसलमान ही वह मंत्र है जो हर समस्या का समाधान है। चीन ने अरुणाचल में अपना गांव बसा दिया। अमेरिका (पेंटागन) खबर दे रहा है। मगर हमारे यहां कोई चिन्ता नहीं है। लगता है हिन्दु मुसलमान इस समस्या का भी इलाज है। देश की जनता को तो यही भ्रम दिया जाता है कि लाल आंखें करके जैसे ही लाल सेना की तरफ देखा जाएगा वह अरुणाचल और लद्दाख छोड़कर भाग खड़ी होगी। होना भी चाहिए। भारत की सेना इतनी ताकतवर है। उसने अपना ये पराक्रम कई बार दिखाया है।

इन्दिरा गांधी ने कहा बांग्ला देश अलग कर दो। सेना ने कर दिया। उससे पहले कहा सिक्किम को भारत में मिला लो। मिला लिया। लेकिन आज तो जब चीन घुसपैठ कर लेता है तो हमारे मीडिया वाले यह कहते हैं कि यह सेना की गलती है। सेना की गलती बताकर वे किसे खुश कर रहे हैं पता नहीं मगर सेना का मनोबल जरूर गिरा रहे हैं। आज से पहले कभी मीडिया सरकार को खुश करने के लिए सेना के विरोध में नहीं बोली। मगर आज तो वह किसी इंस्टिट्युशन का सम्मान करने को तैयार नहीं। खुद अपनी पत्रकारिता का भी। एक और केवल एक ही उसका उद्देश्य है कि किसी को खुश करना। लेकिन उसे यह नहीं मालूम कि जिसे खुश करने की यह सारी कवायद की जा रही उसे जिस दिन लगा कि मीडिया की वजह से ही यह नुकसान हो रहा है तो वह मीडिया को उठाकर ऐसे फैंकेगे कि जैसा कभी उसने सोचा भी नहीं होगा।

अभी हाल में जो पेट्रोल डीजल के भाव में थोड़ी सी कमी करके सरकार को पीछे हटना पड़ा तो उसकी एक प्रमुख वजह यह भी थी कि मीडिया लगातार उन्हें ऐसा इम्प्रेशन दे रहा था कि रोज रेट बढ़ाने से जनता को मजा आ रहा है। जनता का अच्छा मनोरंजन होता है। वह शर्तें लगाती है कि कि कल कितना बढ़ेगा। मीडिया यह भी खबरें चलाता था कि राष्ट्र हित में ज्यादा पैसा देकर जनता गौरवान्वित महसूस कर रही है। हर आदमी यह सोच रहा है कि सबसे पहले लंगोट भी उतारकर देने का मौका उसे मिले। ताकि वह दूसरों से बड़ा भक्त कहला सके। मीडिया हर चीज का महिमामंडन कर सकती है। नंगा आदमी उसे देश के लिए त्याग करते दिख रहा था। अभी देश छोड़कर बाहर भागने को भी राष्ट्रहित से जोड़ने की कोशिश कर रही है। कई कहनियां बनाई जाएंगी कि देशहित में कैसे देश छोड़ दिया। नहीं तो देश ने उन पर अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया था। किसानों की जमीन भी उन्हें दिए जाने की तैयारी थी कि उनके मन अचानक वैराग्य आ गया। और वे दूर देश की यात्रा पर निकल पड़े।

मीडिया आखिरी आखिरी तक अपनी स्वामी भक्ति दिखाने की कोशिश करता रहेगा। उसने शायद खुद को वाच डाग कहे जाने में से सिर्फ डाग ही पकड़ लिया है। बाकी का मतलब वह नहीं समझा। मगर लगता है सरकार संभल गई है। उसे मालूम पड़ गया कि जमीनी हकीकतें कुछ और हैं। मगर लालच और स्वाभाव से भी चापलूस हो गया मीडिया उसे खुश करने के लिए झूठी कहनियां चला रहा है। पैट्रोल और डीजल के दाम कम करने के पीछे यही सच्चाई की आवाज की ताकत थी। जो मीडिया के हुआ हुआ के बीच से निकलकर सरकार तक पहुंच गई। नहीं तो मीडिया तो कह रहा था कि जनता इतनी खुश है कि वह कह रही है कि डीजल दो सौ रुपए और पेट्रोल ढाई सौ रुपए लीटर भी हो जाए तो कोई परवाह नहीं। मगर सरकार समझ गई कि अब झूठ की वह स्थिति “अहो रुपम अहो ध्वनि” तक आ गई है। मीडीया अब उन्माद की स्थिति में एकदम विपरित बातें करने लगा है। एक समय आता है जब आप समझ जाते हैं कि सामने वाला आदतन झूठा हो गया है। जो भी यह कह रहा है सच इसके विपरित ही होगा। उप चुनावों के नतीजों ने बता भी दिया और फिर ऐसे में हिमाचल के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने साहस करके कह भी दिया कि हार की वजह महंगाई है। इसी तरह मुबंई के आर्यन खान मामले में मीडिया रिया चक्रवर्ती की तरह यह चलाए जा रहा था कि देश इस गिरफ्तारी से बहुत खुश है। वानखेड़े को नया राष्ट्रीय हीरो बनाया जा रहा था। लेकिन सरकार को यह भी पता चल गया कि जनता इसे गढ़ा हुआ मामला मान रही है। आम सहानुभूति जैसे रिया के पक्ष में चली गई थी वैसी ही आर्यन के पक्ष में जा रही है।

मीडिया की कहानियों के एकदम विपरित इन सच्चाइयों ने सरकार को दोनों मामलों में अपने कदम वापस खिंचने पर मजबूर किया। लगता है यह एक अच्छी शुरुआत हो गई है। अब किसानों के मामले में भी सरकार यथार्थवादी रुख अपना सकती है। पांच राज्यों के चुनाव आने ही वाले हैं। इनमें उत्तर प्रदेश तो सबसे महत्वपूर्ण है ही। पंजाब और उत्तराखंड भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं। यहां किसानों का बड़ा मुद्दा होगा।

मीडिया लाख कहे कि किसान तो अपना सर्वस्व बलिदान कर देना चाहता है। मगर सरकार समझ गई कि किसान सर्वस्व ले भी सकता है। हो सकता है कुछ और जनहितकारी फैसले हों। सरकार माने की जनता ही ताकतवर है। मीडिया नहीं। वह केवल भौंपू है। जिसके हाथ में पड़ जाएगा उसी की आवाज निकालने लगेगा। इस सरकार के रुप और ध्वनि से ही वह प्रभावित नहीं है। किसी के भी रूप को वह ‘अहो रूपम’ और किसी ध्वनि पर वह ‘अहो ध्वनि’ कह सकता है!