सिंगापुर की भारत पर टिप्पणी के मायने, और संप्रभु भारत के हर वादे को तोड़ा जाना…

सिंगापुर के प्रधानमंत्री ने भारत के बारे में टिप्पणी की, हम इसका विरोध करते हैं। लेकिन अपने नागरिक अधिकार का इस्तेमाल करते हुए हम कहना चाहते हैं कि हमारा देश उच्च आदर्शों और महान मूल्यों के आधार पर स्थापित हुआ था। 70 साल पहले तमाम मुश्किलों से दो चार होते हुए ​हमने अपनी आजाद यात्रा शुरू की थी। लेकिन हमारे राष्ट्र संस्थापकों ने हमें जो भारत दिया था, उसमें दशकों बाद चीजें बदल गई हैं। हमसे वे सारे मूल्य छीने जा रहे हैं।

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हममें से हर एक नागरिक से वादा किया गया था कि हम सब बराबर हैं। हमसे वादा किया गया था कि हमारा मजहब, हमारी जाति, हमारी भाषा, हमारी संस्कृति सबको बराबरी मिलेगी। हमसे कहा गया था कि हम सब एक देश के वासी हैं जिनकी अपनी अपनी स्वतंत्र पहचान होगी। हमारे पुरखों की ओर से किये गये इस वादे को तोड़ा जा रहा है। आज उत्तर प्रदेश में चुनाव हो रहा है और राजनीति पर काबिज होने का षडयंत्र करने वाला एक कथित गैरराजनीतिक संगठन अपने लोगों से आह्वान कर रहा है कि हिंदुओं को एकजुट करो। हमने जिन अंग्रेजों से लड़कर आजादी हासिल की थी, हम पर उन्हीं अंग्रेजों की ‘बांटो और राज करो’ की नीतियों को थोपा जा रहा है।

सिंगापुर के प्रधानमंत्री को भारत के बारे में टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। उन्होंने नेहरू के अभूतपूर्व योगदान की तारीफ की, वह हमारी सरकार के पसंद नहीं आने वाली। उन्होंने हमारी मौजूदा संसद में अपराधियों की भरमार का जिक्र किया। हम इसकी निंदा करते हैं।

लेकिन हमसे सात पहले अपराधमुक्त संसद का वादा किया था। उस वादे का क्या हुआ? सात साल में हमने देखा कि सारी पार्टियों के जितने अपराधी और दागी थे, वे सब के सब भाजपा में चले गए। सोशल मीडिया पर जनता चुटकी लेने लगी कि भाजपा राजनीति की वॉशिंगमशीन है। अपराधी भाजपा ज्वाइन करते ही धवलछवि हो जाता है।

हमारी आजादी की लड़ाई और उसके नायकों की विदेशी संसद में सराहना हो रही है। दुनिया नेहरू को याद करती रहती है, लोकतंत्र के निर्माण में उनके योगदान को सराहा जाता है लेकिन हमारी सरकार बाकायदा आईटी सेल बनाकर महात्मा गांधी और पंडित नेहरू के खिलाफ घृणा अभियान चलवाती है।

हम ऐसे शर्मनाक दौर के गवाह हैं जब हर गांधी जयंती पर उनके हत्यारे का महिमामंडन किया जाता है। हम ऐसी कलुषित सोच के गवाह हैं जो दुनिया में हमें बदनाम करने का अभियान चलाए हुए है। दुनिया यह पहचान रही है कि हमारे पुरखों ने बड़ी मुसीबतें झेलकर, बड़ी कुर्बानियां देकर हमें आजादी दिलाई और 70 साल से हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं। लेकिन हमारे अपने लोगों ने जो सरकार चुनी है, वह खुद हमारी विरासत को बदनाम करने का अभियान चला रही है।

हम अपने खिलाफ किसी बाहरी टिप्पणी को पसंद नहीं करते, लेकिन संप्रभु भारत के हर वादे को तोड़ा जा रहा है और लोकतंत्र की हर मर्यादा को तार तार किया जा रहा है। हमें अपनी आजादी और अपने लोकतंत्र पर पुन: अपना दावा ठोंकना होगा। क्या आप सहमत हैं?

(लेखक पत्रकार एंव कथाकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)