बुलडोजर कार्रवाई पर कानूनी लड़ाई का हमारा एकमात्र उद्देश्य देश में कानून का शासन स्थापित करनाः मौलाना महमूद मदनी

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश समेत देश के कई राज्यों में जारी बुलडोजर की कार्रवाई के मामले पर आज सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई पर अपनी राय प्रस्तुत करते हुए जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि जिस तरह से इंसाफ करने की कोशिश की जा रही है, वह न केवल न्याय के विरुद्ध है बल्कि इससे कहीं ज्यादा यह एक वर्ग को निशाना बनाने वाली प्रक्रिया है। हम सुप्रीम कोर्ट इसीलिए गए हैं ताकि देश का संविधान और उसका शासन स्थापित रहे।

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उन्होंने कहा कि घर तो टूटते रहते हैं, लेकिन देश और उसका संविधान न टूटे, यही हमारे संघर्ष का मूल दृष्टिकोण है। और इसके लिए हमारा संघर्ष लंबे समय से चल रहा है और जारी रहेगा (इंशाअल्लाह)।

काबिलेजिक्र है कि विरोध-प्रदर्शनों में भाग लेने या किसी गलत काम के आरोप के बाद एक परंपरा चल पड़ी है कि आरोपी के घर पर बुलडोजर चला दिया जाए, जो अपने आप में एक क्रूर कृत्य है। यह कार्रवाई किसी भी परिवार की सामूहिक सजा देने की सोच पर आधारित है। यह सब मध्य प्रदेश, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, गुजरात और असम में लगातार हो रहा है।

इस मामले में जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी की याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीआर गवई और पीआर नरसिम्हा की खण्डपीठ में सुनवाई हुई, जहां जमीयत उलेमा-ए-हिंद के वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने तर्कसंगत बहस करते हुए कहा कि सरकार हंगामे में लिप्त लोगों के विरुद्ध उसकी पहचान और धर्म के आधार पर कार्रवाई कर रही है। उन्होंने कहा, “घरों को केवल इसलिए तोड़ना कि किसी पर किसी अपराध का आरोप लगाया गया हो, हमारे समाज में स्वीकार्य नहीं हो सकता है। हम कानून के शासन वाले देश में रहते हैं, यहां कोई राजशाही या तानाशाही नहीं चलती।’’

उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट का उल्लेख करते कहा कि असम में कल ही एक व्यक्ति के घर को गिरा दिया गया क्योंकि उस पर किसी को आत्महत्या के लिए मजबूर करने का आरोप है। वरिष्ठ अधिवक्ता ने दलील दी कि पुलिस अधिकारी सजा के तौर पर तोड़फोड़ की कार्रवाई का सहारा ले रहे हैं। यह भी कहा गया कि जहांगीरपुरी में सुप्रीम कोर्ट के स्टे के बावजूद उत्तर प्रदेश समेत कई अन्य राज्यों एवं शहरों में भी यही प्रक्रिया अपनाई गई और लगातार नोटिस दिया जा रहा है। इस सम्बंध में कई मामलों का उल्लेख भी किया गया।

हालांकि भारत के सॉलिसिटर जनरल और दूसरे सरकारी वकील हरीश साल्वे ने यह आरोप लगाया कि जमीयत जैसा संगठन मामले को अनावश्यक तौर पर तिल का ताड़ बना रहे है। यह कार्रवाई केवल अवैध निर्माण के खिलाफ है और यह प्रक्रिया दंगे होने से पहले शुरू की गई थी। इस पर दुष्यंत दवे ने कहा कि ऐसी कोई सामग्री नहीं है जिससे साबित हो कि अन्य अनधिकृत या अवैध घरों के खिलाफ कार्रवाई की गई है, बल्कि यह एक समुदाय के खिलाफ प्रतिशोध की कार्रवाई है… अन्यथा पूरा सैनिक फॉर्म अवैध है। 50 सालों से इसे किसी ने हाथ तक नहीं लगाया। दिल्ली के अवैध फार्महाउसों को देखिए। कोई कार्रवाई नहीं की गई है।’’ इसलिए जिस तरह सुप्रीम कोर्ट ने जहांगीरपुरी में स्टे ऑर्डर जारी किया है, उसी तरह उत्तर प्रदेश आदि में भी आदेश जारी करे और प्रशासन को तानाशाही फैसले लेने से रोके।
इस पर सुप्रीम कोर्ट की खण्डपीठ ने मौखिक रूप से पूछा, “इस पर कोई सवाल ही नहीं है कि सरकार को कानून के शासन का पालन करना होगा, लेकिन क्या हम एक सर्वव्यापी आदेश पारित कर सकते हैं? अगर नगरीय निकाय कानून के अंतर्गत कोई घर अवैध है तो क्या अधिकारियों को रोकने के लिए एक सर्वव्यापी आदेश पारित किया जा सकता है?“ इस सवाल के साथ सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 10 अगस्त की तारीख निर्धारित की है।

ज्ञात हो कि कानपुर और प्रयागराज में कुछ भवनों के खिलाफ विध्वंस की कार्रवाइयों के बाद जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने जहांगीरपुरी से सम्बंधित अपनी याचिका के साथ एक याचिका और जोड़ी है जिसमें कहा गया है कि यूपी के अधिकारी उन लोगों को निशाना बना रहे हैं जिनपर इस्लाम के पैगंबर के खिलाफ टिप्पणियों को लेकर हुए विरोध प्रदर्शनों में “दंगे“ का आरोप लगाया गया है।

16 जून, 2022 को जस्टिस एएस बोपन्ना और विक्रम नाथ की अवकाश पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार से कहा था कि वह कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया से बाहर निकल कर विध्वंस की गतिविधियों को अंजाम न दे। उन्होंने राज्य को तीन दिन का समय भी दिया था ताकि वह जवाब दें कि हालिया विध्वंस की कार्रवाई किस नगर निगम या नगरपालिका कानून के तहत अंजाम दी गई है। इसके जवाब में उत्तर प्रदेश राज्य ने एक हलफनामा दायर किया कि कानपुर और प्रयागराज में हाल ही में की गई तोड़फोड़ की कार्रवाई स्थानीय विकास प्राधिकरणों ने उत्तर प्रदेश अर्बन प्लानिंग एण्ड डेवलपमेंट एक्ट-1973 के अनुसार की है। सरकार ने स्पष्ट रूप से इस बात से इनकार किया है कि विध्वंस कार्रवाई का सम्बंध दंगों से था, लेकिन सच्चाई तो यह है कि सरकार केवल इस पर पर्दा डालने की कोशिश कर रही है।