ये मनदीप सिंह हैं. भारतीय सेना में हैं. इनके पिता किसान थे. मनदीप ड्यूटी पर तैनात थे. उन्हें खबर दी गई कि उनके पिता की मौत हो चुकी है. वे भागकर घर पहुंचे. उनका कहना है कि वहां पर मौजूद लोगों ने बताया है कि ‘तेज स्पीड में गाड़ी आई और कुचलते हुए निकल गई. इतनी भीड़ में इतनी तेज स्पीड गाड़ी लेकर कौन आएगा?’ यानी जानबूझकर कुचला गया.
पिता किसान, बेटा सेना में जवान. हिंदुस्तान के लाखों घरों की यही कहानी है. लाखों किसानों के बेटे इस देश की रक्षा करते हैं. लाखों लोग अपने खून पसीने से इस देश को तिनका तिनका बनाते हैं. लेकिन न्यू इंडिया में जवान हो या किसान, जिसके भी मुंह में जबान है, उसे ‘उपद्रवी’ कह देना अब बहुत आसान है.
सेना में जवान के किसान पिता का शरीर सत्ता के अहंकार तले रौंद दिया गया. क्या किसान का बेटा सीमा पर देश की सुरक्षा इसीलिए करता है कि देश के अंदर उसके पिता को कुचला जा सके? जवानों ने देश को सुरक्षित रखा है लेकिन देश के अंदर उसका पिता सुरक्षित नहीं रह सका. उसे कुचल दिया गया. इस देश की रक्षा के बदले उस जवान को क्या दिया गया? उससे उसके पिता को छीन लिया गया.
आप कहेंगे कि दूसरी तरफ के लोग भी तो मरे हैं. हां मरे हैं. वह दुखद है. लेकिन मंत्री के बेटे का किसानों को जीप से रौंद देना और बदले में गुस्साए लोगों का उन्हें पीटना एक बराबर नहीं है. अगर मंत्री, नेता, अधिकारी, सिपाही और आम जनता सबको आप एक तराजू में रखेंगे तो न कोई कानून बचेगा, न कोई व्यवस्था बचेगी.
मंत्री भाषण देकर उकसाता है और उसका बेटा किसानों पर जीप दौड़ाता है, चार लोगों की जान ले लेता है. फिर मंत्री, सरकार, प्रवक्ता और गोदी मीडिया मिलकर मंत्री के बेटे को बचाने के लिए अभियान चलाते हैं. यह सुविधा, संसाधन और वीआईपी ट्रीटमेंट इस देश में किस किसान को हासिल है? किस किसान के लिए कोई केंद्रीय मंत्री बोला है कि उनका भी दुख सुना जाना चाहिए.
बेशक हर हत्या दुखद है, बेशक हर हत्या उतना ही बड़ा अपराध है, लेकिन एक मंत्री और उसका बेटा अगर एक प्रायोजित नरसंहार को अंजाम देते हैं तो वे पूरे सिस्टम को रौंदने के अपराधी हैं. जीप दौड़ाकर बर्बरतापूर्वक किसानों को रौंद देना और बदले में गुस्साई भीड़ की प्रतिक्रिया की तुलना नहीं हो सकती. जिन्हें जिम्मेदार होना चाहिए, उन्हें मुक्त करके अगर बलि का बकरा ढूंढना है तब हर तर्क जायज है. आप तर्क दीजिए. कल सत्ता के अहंकार में चूर वही जीप आपको भी रौंदेगी.
जरा सोचिए, सीमा पर सुरक्षा कर रहे जिस जवान के पिता को मंत्रीपुत्र ने रौंद दिया, वह जवान किस यकीन से दोबारा लौटकर सीमा पर जाएगा? इस देश को बनाने वाले किसान, जवान, मजदूर, मेहनतकश और हर भारतीय के भरोसे को सत्ता का अहंकार और नफरत की थार बेरहमी से रौंद रही है. आपके सतर्क होने का समय है. आपका सबकुछ दांव पर है.