फायक़ अतीक़ किदवई
शादी को लेकर मलाला के इस पुराने बयान “I don’t understand why people have to get married? पर फिर से चर्चा है, अब उन्हें ताने और फब्तियों का सामना करना पड़ रहा है, इससे पहले भी कोई उन्हें यूरोपीयन गुड़िया, कोई कठपुतली बोलता रहा है, यहाँ तक उसकी तुलना तस्लीमा नसरीन से की जाती जबकि दोनो में बहुत अंतर है। इतना तैश में आने के बजाय उसकी कही गई बात को समझने की ज़रूरत है, किसी लड़के ने लिखा अगर शादी ज़रूरी नही तो मलाला ज़मीन पर कैसे आई, मेरे दोस्त ज़मीन पर कोई शादी से नही आता, शादी की उपयोगिता आप बता सकते है उसके लाभ हानि पर बात कर सकते है। शुचिता अश्लीता पर चर्चा कर सकते है, सामाजिक मूल्यों परम्पराओ, आदर्शों और स्त्री विमर्श आदि से सम्बंधित बात कर सकते है।
मलाला को लगता था शादी ज़रूरी नही, उसे नही समझ आता कि लोग क्यों शादी करते है, आप अपने लेख से बताते की शादी के ये लाभ है पर आप तो जवाब देने के बजाय सर्टिफिकेट बांटने लगे। कभी परसाई का शादी को लेकर लेख पढ़ियेगा। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था मैं केवल अपना काम करूंगी. उन्होंने ये भी कहा, ‘मैंने केवल सोचा कि मैं कभी भी शादी नहीं करने वाली, कभी बच्चे नहीं करूंगी. मैं हमेशा खुश और अपने परिवार के साथ रहूंगी. मुझे एहसास नहीं था कि आप हमेशा एक जैसे नहीं रह सकते, आप इस लाइन पर गौर कीजिए ” आप हमेशा एक जैसे नही रह सकते।”
मलाला ने इसी लाइन को सार्थक किया है, मलाला भी हमेशा एक जैसी नही रहेंगी, चीज़ो को लेकर विचार बदलते हैं, गलती बस इतनी है कि एकबारगी ये कह देना कि शादी जैसी व्यवस्था गलत है थोड़ा सतही राय हो जाती है क्योंकि इस व्यवस्था में सिर्फ नुकसान है ये कहना अजीब है, असल में नफा नुकसान दोनो है, डिपेंड आप पर करता है आपके लिए क्या बेहतर है। भले वो बहुत बड़ी जगह पर पहुँच गई हो पर अभी बहुत उम्र नही है, उसे बच्चे की ही तरह ट्रीट कीजये। उसकी ज़िन्दगी से सीखिए बल्कि उसपर गर्व कीजिये।
वाकईं जिन्होंने निडर होकर संघर्षों के साथ पढ़ाई जारी रखी, मलाला उनकी प्रेरणा है, मैं मलाला का प्रशंसक उसी दिन से हूँ जब मैंने इनकी बायोग्राफी “आई एम मलाला” पढ़ी। पाकिस्तान के ख़ैबर पख्तूनख्वाह प्रांत के स्वात घाटी में मलाला का जन्म हुआ, आप कुछ देर के लिए मलाला के सर में गोली कांड को भूल जाइए इसपर आगे बात करेंगे, इससे इतर सोचिये की वो कितनी होनहार है, जब वो छोटी थी तो अपने से बड़े क्लास के बच्चों के साथ बैठकर पढ़ाई करती थी, क्लास में हमेशा फर्स्ट आती। स्कूल की डिबेट्स में उसके तर्क मज़बूत और साहसी होते, मलाला को निडर सच्चा और होनहार बनाने में उनके पिता ज़ियाउद्दीन युसुफ़ज़ई का सबसे बड़ा योगदान है।
उन दिनों स्वात में तालिबानियो ने कब्ज़ा कर लिया था, ब्यूटी पार्लर से लेकर डांस क्लब वग़ैरह इसके अलावा तकरीबन चार पाँच सौ स्कूल बंद करवा दिये थे, लड़कियां पांचवे के बाद पढ़ नही सकती थी, स्कूल से पिकनिक नही जा सकती थी, मलाला 11 साल की थी उसी समय से वो इसके विरुद्ध आवाज़ उठाने लगी बाद में बीबीसी रेडियो पर गुल मकई के नाम से डायरी लिखी और कट्टरपंथी तालिबानियो के विरुद्ध बहुत सी बातें रखी जो लड़कियो की शिक्षा के ख़िलाफ़ थे, ये शायद ऐना फ्रैंक के फीनिस्क पक्षी जैसा होना था जो मलाला बनकर आई, खैर उनके पिता से गलती तब हुई जब उन्होंने अपनी बेटी के नाम का खुलासा करके बताया कि गुल मकई ही मलाला है।
साल 2012 में अपने दोस्तों के साथ पिकनिक जाती हुई मलाला की वैन में एक तालिबानी घुस आता है औऱ लड़कियो से पूछता है कि मलाला कौन है सारी लड़कियो की निगाह मलाला पर चली जाती है, तभी वो आदमी मलाला के सिर पर शूट करके भाग जाता है ख़ैर तीन घटनाओ में पाकिस्तानी ड्राइवर की हिम्मत देखी है, एक श्रीलंका की क्रिकेट टीम पर हमले के समय, एक पेशावर घटना के समय और एक मलाला पर जानलेवा हमले के समय। ड्राइवर तेज़ी से उसे हॉस्पिटल ले जाता है, वहाँ उसकी हालत बहुत नाजुक होती है, बाद में ब्रिटेन सरकार और पाकिस्तान की सरकार की बातचीत के बाद उसे ब्रिटेन ले जाया जाता है, जहाँ उसका महीनों इलाज चलता है, लेकिन शानदार बात ये है कि उस हॉस्पिटल के बाहर रोज़ लड़के लड़कियो का हुजूम रहता जो फूल लिए खड़े रहते, सारी दुनिया से उसके स्वस्थ होने की कामना हो रही थी, दुनिया के बड़े बड़े लोग उससे मिलने हॉस्पिटल आते। दुनिया भर के लोगो के हज़ारो खत रोज़ हॉस्पिटल आ रहे थे, मलाला को अब भी एक कान से सीटी जैसी आवाज़ सुनाई देती, लेकिन उसने हिम्मत नही हारी, वो हर इंसान से मुस्कुराकर मिलती, जब वो ठीक हुई तो उसे अंतरराष्ट्रीय बाल शांति पुरुस्कार, फिर पाकिस्तान युवा शांति पुरस्कार, 2012 में सबसे प्रचलित शख्सियत से सम्मानित किया गया, लड़कियो कि शिक्षा के अधिकार की लड़ाई लड़ने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा उसके 16वे जन्मदिन यानी 12 जुलाई को मलाला दिवस घोषित किया गया।
साल 2013 में भी नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया गया, ग्लैमर अवार्ड फ़ॉर द गर्ल्स हीरो, उसके बाद यूरोपीयन यूनियन द्वारा प्रतिष्ठित मानवाधिकार पुरस्कार मिला, साल 2014 में नोबेल शांति पुरुस्कार मिला, फिर लगातार अवार्ड्स मिलते गए, फिलाडेल्फिया लिबर्टी मेडल, ऑर्डर ऑफ द स्माइल और न जाने कितने पुरुस्कार, यहाँ से उसकी दूसरी पारी शुरू हुई जिस पर फिर कभी चर्चा करेंगे।
मलाला एक चर्चित नाम हो चुकी थी, उसके पहनावा अब भी स्वात की लड़कियो जैसा था, वो अब भी स्वात की बाते करती इसलिए उसका विरोध सिर्फ़ कट्टरपंथियों ही नही बल्कि तथाकथित प्रगतिवादी और नारीवादी भी करने लगे। कट्टरपंथी एजेंट कहते उन लोगो को तुम्हारा लड़कियों की शिक्षा के लिए आवाज़ उठाना पसंद नही था, स्कूल की तरफ से पिकनिक जाना पसंद नही था, और नारीवादियों को उसका पहनावा पसंद नही , स्वात के लिए उसकी मोहब्बत पसंद नही उसने तालिबानियो को गलत कहा लेकिन उसकी आड़ लेकर उसने सारे मुस्लिमो या इस्लाम को निशाना नही बनाया, ये बात लोगो को चुभी भी, जब उसने गाँधी जी के वाक्य को कोट किया “विनम्रता से ही आप दुनिया को बदल सकते है।”
आज भी मलाला इन सबसे बेपरवाह अपने मकसद में आगे बढ़ रही है। मैं चाहता हूं एक दिन वो पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बने जैसा उसने एक इंटरव्यू में कहा था की राजनीति में आना चाहती हूँ। उसे जब बोलते देखता हूँ तो उसका चेहरा टेढ़ा सा लगता है, यहाँ तक मुस्कुराहट भी, क्यो वो खुद को देखकर उस इंसान से नफरत नही करती जिसने उसका चेहरा बर्बाद किया, लेकिन वो तो उसे भी माफ कर चुकी है। ये सब कितना अजीब है। पहले मैं समझता था कि एक कारतूस ने शोहरत दी है लेकिन जब उसके बारे में जाना तो पता लगा कि उससे पहले भी खतरे को जानते हुए खतरा मोल लेती रही। मैं चाहता हूं हर लड़का लड़की उसके जैसा ही बने, निडर और बेबाक। बाक़ी जो एजेंट बोलते है उन्हें इतनी सी बात समझ में नही आती की कोई भी अपने चेहरे पर गोली मरवाकर प्लान नही बनाता, मौत को छूकर आई है वो लड़की, उसके कानों में दो साल तक सीटी बजती रही बहरहाल ये सब स्याह दिन थे। अब उम्मीद करता हूँ शादी के बाद उसे और खुशियां मिलें और मकसद में कामयाबी हासिल हो।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)