आदित्य कुमार गिरि
मैं एक बार शाहरुख खान को सुन रहा था। वे कह रहे थे कि चंकी पांडेय सुपरस्टार थे और मैं उनके छोटे भाई का दोस्त था। दोस्त के साथ चंकी के घर जाता ताकि उन्हें देख सकूं। मैं चंकी का फैन था। उन दिनों मैं टीवी में काम कर रहा था, तबतक चंकी की 40 फ़िल्में रिलीज हो चुकी थीं और वे एक स्टार थे। मैं उनके घर जाता, उन्हें करीब से देखता और आहें भरता। उसी मंच पर चंकी भी थे, वे चौंक गए। उनके लिए यह नई सूचना थी। वे जिस शाहरुख के आगे हाथ बाँधे खड़े थे वह कुछ अलग ही कथा कह रहा था। वे अड़चन में पड़ गए होंगे कि मैं जिसे सुपरस्टार समझता हूँ यह एकदिन मुझसे बहुत पीछे था लेकिन आज वह कहां मैं कहाँ।
आप कल्पना कीजिये जब चंकी ने 40 फ़िल्में कर ली थीं तबतक शाहरुख खान ने स्टार्ट तक नहीं किया था और आज की कथा आप जानते हैं। आज चंकी को आप चरित्र तो छोड़िए एक सहायक अभिनेता की तरह भी नहीं जानते और शाहरुख, अमिताभ के बाद बॉलीवुड के एकमात्र किंग हैं। बॉलीवुड में दिलीप कुमार, राजेश खन्ना,अमिताभ बच्चन के बाद शाहरुख खान ही हैं जिन्हें इस तिकड़ी की चौथी कड़ी कह सकते हैं। बाकी हीरो (अभिनेता) एक्टर रहे हैं, सुपरस्टार यही चार रहे हैं। तो शाहरुख आधुनिक काल के बॉलीवुड लीजेंड हैं।
आपने तिग्मांशु धूलिया का वह इंटरव्यू देखा होगा जिसमें वे शाहरुख के लिए आहें भर रहे हैं कि ‘मेरा एक ही सपना है और वह यह कि मैं एक फ़िल्म शाहरुख को लेकर करूँ। क्या हीरो है यार। मुझे उसके लायक कोई स्क्रिप्ट ही नहीं मिल सकी अबतक।’ आप जानते हैं तिग्मांशु कोई चिरकुट नहीं हैं। मैं अभी जिन फ़िल्म निर्देशकों को पसन्द करता हूँ उनमें अनुराग कश्यप, विशाल भारद्वाज और सुजीत सरकार के बाद तिग्मांशु ही सबसे अच्छे लगते हैं। उनकी ‘पानसिंह तोमर’ मेरी ऑलटाइम फेवरेट है। उफ्फ क्या फ़िल्म थी।
ऐसा फ़िल्म निर्देशक जिसका जेस्चर और टेस्ट एकदम अलग हो वह एक रोमांटिक हीरो के साथ फ़िल्म बनाने के सपने लिए घूम रहा है। कह सकते हैं कि ‘इस देश में जबतक सनीमा है तबतक, शाहरुख का नाम रहेगा।’ आप शाहरुख खान के इंटरव्यूज़ पढ़िए, मीडिया बाइट्स देखिए, विभिन्न चैनल्स पर उनके विभिन्न मुद्दों पर राय सुनिए आप पाएंगे हर तरह से सस्ता दिखने वाला यह लड़का दिमाग से लेकिन खूब महंगा है। मैंने बॉलीवुड में इतनी समझदार बातें करता और किसी फिल्म स्टार को नहीं देखा है।
शाहरुख ने एक इंटरवयू में कहा कि वे अगले जन्म में एक लड़की के रूप में जन्म लेना चाहते हैं। जिन लड़कियों ने उन्हें सुपरस्टार बनाया उन लड़कियों को वे वस्तु नहीं समझते बल्कि अगले जन्म में उनकी तरह जन्म लेना चाहते हैं। वरना इसी फिल्मी जगत में शूटिंग में हुई थकान की तुलना रेप हुई लड़की से करने करने वाले लोग भी हैं।
मैं खाड़ी के एक किसी देश की मीडिया में शाहरुख का इंटरव्यू देख रहा था। वहां चार महिला पत्रकार उनका इंटरव्यू ले रही थीं। कार्यक्रम अंग्रेज़ी में था। वहाँ शाहरुख ने स्त्रियों को लेकर अपनी जो समझ बताई वह गौर करने वाली थी। चारों पत्रकार उनपर मुग्ध हो गईं। वह इंटरव्यू कोई 8,9 साल पहले देखा था। गोविंदा तो शाहरुख को अपनी पीढ़ी का सबसे समझदार एक्टर कहते ही हैं।
शाहरुख की यह विशेषता उन्हें बाकी फिल्मी कलाकारों से अलग करती है। बर्तोल्त ब्रेख्त ने आर्टिस्ट (कलाकार) और एक्टर (अभिनेता) में एक अंतर बताया था जो बाद में काफी मशहूर भी हुआ वह यह कि कलाकार सामाजिक मुद्दों पर बराबर अपनी राय देता है जबकि अभिनेता सिर्फ अपने काम से मतलब रखता है। वह ‘काम करो, पैसे लो’ की नीति पर चलता है। इस परिभाषा के आलोक में देखें तो अमिताभ बच्चन,सलमान खान,आमिर खान सहित सारे फिल्मी कुमार,देवगन अभिनेता की श्रेणी में आते हैं जबकि शाहरुख खान कलाकार की। वे लगातार सामाजिक मुद्दों पर बोलते हैं। आपको याद होगा शुरू में वे मोदी सरकार के विरुद्ध बड़े मुखर थे। हिंदुत्त्वादी ब्रिगेड के विरोध ने उन्हें ऐसा आहत किया कि वे अवचेतन में चले गए। और एकदम गुमसुम हो गए।तभी से स्वभावविक शाहरुख खान कहीं खो से गए।
आपको याद होगा एक टीवी चैनल पर उन्होंने मोदी सरकार से माफी भी मांगी थी। वह माफी भी ऐसी थी कि कोई विरोध भी क्या करेगा। मुझे वह माफीनामा ठीक-ठीक याद नहीं लेकिन बहुत ज़ोर दूं तो कहा था ‘सरकार हमारी माई-बाप है। वह कभी ग़लत नहीं हो सकती। हमें हमेशा उसका समर्थन करना चाहिए।’
कल्पना कीजिये यह माफ़ी थी। अगर यह माफ़ी थी तो विरोध कैसा होगा। इतना करारा व्यंग्य कोई विरोध में भी क्या खाक करेगा। ’14 में जब भाजपा की सरकार आई तब से शाहरुख पर आक्रमण हो रहे थे। शाहरुख को पाकिस्तानी, गद्दार, आतंकवादी कहकर कमर के नीचे आक्रमण होने लगे। कुलमिलाकर उनका ‘मुलसमान’ होना आक्रमण की वज़ह बना। शाहरुख का भारतीय-मन इस तरह के आक्रमण से विद्रोह कर बैठा और तरह-तरह से रियेक्ट करने लगा। अपने शुरुआती करियर से भाजपा की सरकार बनने तक शाहरुख खान केवल हिन्दू किरदारों (राहुल,राज) में आते थे लेकिन इधर जितनी फ़िल्में आ रही हैं उनमें वे ‘मुसलमान’ क़िरदार के रूप में आ रहे हैं। यह असल में उनके मुसलमान अस्मिता पर आक्रमण के विरुद्ध एक सांस्कृतिक जवाब है।
अब वह हँसता खेलता, चुलबुला शाहरुख खो गया, यह नया शाहरुख राजनीतिक आक्रमणों का उत्तर खोज रहा है। शाहरुख असल में इसलिए ही फ्लॉप हुए हैं क्योंकि वे अपनी कला के प्रकटीकरण की जगह राजनीतिक चालबाज़ियों को रेस्पांड कर रहे हैं। असल में यह उनका क्षेत्र नहीं है, यह उनका तरीका नहीं है। यह उनकी शैली नहीं है। उन्हें यह तत्काल बन्द कर देना चाहिए और ख़ुद को नए सिरे से खोजना चाहिए।
मैं जानता हूँ शाहरुख ख़ुद को मज़े का भारतीय मानते हैं। वे ख़ुद को प्रायः दिल्ली का लड़का कहते हैं जो मुंबई में काम करता है और इसी गुमान में उनका स्वाभिमानी मन जी भी रहा है। जिस तरह अजय देवगन या अमिताभ बच्चन को भारतीय होने का सबूत देने की ज़रूरत नहीं वैसे ही शाहरुख को भी नहीं पड़नी चाहिए, शाहरुख का मन ऐसे ही, ठीक ऐसे ही सोचता है इसलिए वे हिंदुत्त्ववादी ब्रिगेड को अभिधा में जवाब नहीं देते। आमिर और सलमान ने तो सरेंडर कर दिया है। आमिर का ‘दंगल’ में राष्ट्रीय-गीत बजाना मोदी सरकार का आगे घुटनों के बल सलामी ही थी और सलमान की कहानी तो सभी जानते हैं। लेकिन शाहरुख वाज़िद ऐसे कलाकार हैं जिन्होंने अबतक सरेंडर नहीं किया है। मुझे शाहरुख का यह रूप बहुत भाता है।
कुछ लोग शाहरुख को सलाह दे रहे हैं कि वे कांग्रेस में चले जाएं। मैं कहूंगा अगर वे राजनीति में जाना चाहते हैं तो शौक से जाएं जिस दल में मन हो, उसमें जाएं लेकिन सिर्फ राजनीतिक आक्रमणों के विलोम की तलाश में ऐसा करना हो तो मैं कहूंगा उन्हें ख़ुद को राजनीति से दूर रखना चाहिए। फ़िल्म अभिनेता शाहरुख खान, राजनेता शाहरुख से ज़्यादा वज़नदार है। उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता। शाहरुख खान राजनीतिक तिकड़मबाज़ियो को इग्नोर करते हुए अपने कलाकार को पुनः खोजें। मैं जानता हूँ वे कर लेंगे। शाहरुख के भारत में करोड़ों चाहने वाले हैं, कानून है, कुछ गड़बड़ नहीं होगी। और मैं शाहरुख को जानता हूँ वे पिछले दिनों से जितने संतुलित और मर्यादित हैं वे आगे भी इसी तरह कानून की लड़ाई लड़ेंगे और न्याय की प्रतीक्षा ही नहीं सहयोग भी करेंगे। मुझे शाहरुख की सज्जनता पर पूरा भरोसा है। आपको भी होगा। जानता हूँ।