लक्ष्मीप्रताप सिंह
सन 1957 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों की बात है। तब समाज में जातिगत भेदभाव और छुआछूत अधिक थी। मुलायम सिंह यादव लोहिया जी की पार्टी के लिए प्रचार चुनाव कर रहे थे। इसी दौरान वो अपने गांव सैंफई से सटे गाँव “मुचहरा” में गए, ये गाँव जाटवों (यूपी की देशी भाषा में चमार) यानि अनुसूचित जाती बाहुल्य था। वो गन्ना-गुड़-मिठाई का सीजन था तो लोगों ने प्रेम से “गुड़ और पानी” दिया जो उस समय किसी के आने पे आमतौर पे गांव में दिया जाता था। मुलायम सिंह को पहले ही बोला गया था की अछूतों के यहां पानी नहीं पीना लेकिन मुलायम सिंह ने गुड़ भी खायी और पानी भी पिया बल्कि अपने साथ गए लोगो को भी बोला की खा-पी लो।
जब ये बात गांव के लोगों को पता चली तो पंचायत बैठी और मुलायम सिंह के खिलाफ पंचायत बाथ गयी। मुलायम सिंह को कहा गया की या तो वो ऐसे काम के लिए माफ़ी मांगे या फिर जुरमाना भरें। मुलायम सिंह के पिताजी स्वर्गीय सुघर सिंह जी ने कहा मांफी मांग लो लेकिन मुलायम सिंह ने कहा की मैंने कोई गलत काम नहीं किया। हम सब लोग एक तरफ तो लोहिया जी के “जाति तोड़ो आंदोलन” का झंडा भी उठा रहे और दूसरी तरफ खुद जातिवादी भेदभाव भी कर रहे फिर हम कैसे अनुयायी हैं। मैँ जुरमाना भरने को तैयार हूँ लेकिन माफ़ी नहीं मांगूंगा क्योंकि मुझे नहीं लगता मैंने कुछ गलत किया।
उस दिन तो पंचायत में जुरमाना भरके जान छूटी लेकिन पंचायत ने उनके पिता को उनपे नजर रखने को कहा इस घटना के 3 साल बाद 1960 में मुलायम सिंह जी को लोहिया जी की पार्टी “संयुक्त सोसलिस्ट पार्टी” का सचिव बना दिया गया। और 1967 में उन्होंने जसवंत नगर सीट से चुनाव जीता जिसमें अनुसूचित जाति के वोट प्रतिशत ने निर्णायक भूमिका निभाई। मुलायम सिंह सिर्फ यादवों के नेता होते तो इतनी बड़ी हस्ती नहीं बनते उन्होंने ऐसे बहुत कार्य किये जो उन्होंने उन्हें हर वर्ग का नेता बनाया। जुड़े रहिये ऐसे बहुत किस्से लिखने वाला हूँ, जो शायद आपने नहीं सुने या पढ़े होंगे।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)