लखीमपुर नरसंहार के बाद बीजेपी के अलावा लगभग सभी पार्टियों और जनता ने बार बार दोहराया है कि ऐसा खौफनाक और बर्बरतापूर्ण मंजर सिर्फ अंगरेजी राज में दिखता था. आजाद भारत में ऐसा कभी नहीं हुआ जब कोई मंत्री और उसका पुत्र मिलकर इस तरह नरसंहार करें.
उस घटना के बाद प्रियंका गांधी किसानों से मुलाकात करने निकली थीं. पुलिस से उनका जबरदस्त संघर्ष हुआ. उनके और सांसद दीपेंद्र हुड्डा के साथ पुलिस ने बुरी तरह अभद्रता की. उन्हें हिरासत में ले लिया गया. नियम के मुताबिक, 24 घंटे के अंदर उन्हें कोर्ट में पेश करना चाहिए था. उन्हें एफआईआर की कॉपी देनी चाहिए थी. उन्हें कानूनी मदद की इजाजत देनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. ज्यादा शोर होने पर कहा गया कि वे हिरासत में नहीं, गिरफ्तार हैं. प्रियंका गांधी ने हिरासत में रहते हुए फोन पर अपने कार्यकर्ताओं को संबोधित किया और संदेश दिया कि हम जनता को मारने वाले कायरों से डरते नहीं हैं.
कल शाम राहुल गांधी ने यूपी जाने की इजाजत मांगी. यूपी प्रशासन ने मना कर दिया. राहुल ने ऐलान किया कि वे हर हाल में जाएंगे. पुलिस अधिकारियों ने बयान दे डाला कि उन्हें एयरपोर्ट से बाहर नहीं आने दिया जाएगा. लेकिन जब तक राहुल गांधी लखनऊ पहुंचते, माहौल पलट चुका था. उन्हें सरकारी गाड़ी में जाने के लिए कहा गया. वे एयरपोर्ट पर ही धरने पर बैठ गए. अंत में अपनी शर्तों पर वे एयरपोर्ट से बाहर निकले, सीतापुर रवाना हुए. वहां तीन दिन से बंद प्रियंका गांधी को छोड़ दिया गया. अब राहुल गांधी और प्रियंका गांधी दोनों लखीमपुर खीरी पहुंच चुके हैं.
राहुल गांधी अकेले नहीं गए हैं. साथ में पंजाब और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों को भी ले गए हैं. जिन सीएम भूपेश बघेल को कल एयरपोर्ट से नहीं निकलने दिया गया था, वे आज लखीमपुर पहुंच चुके हैं.
इनके गृहराज्य मंत्री ने जनता को मंच से धमकाया. उनके बेटे ने किसानों को गाड़ी से कुचल कर मार दिया. सरकार ने इन दोनों पर कोई कार्रवाई तो नहीं की, उल्टे विपक्षी नेताओं को नजरबंद करके अपनी फजीहत कराई. अभी अपराधी बाप बेटे को बचाने की कोशिश में इस सरकार की और फजीहत बाकी है.
लेकिन राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने न सिर्फ एक साहसी विपक्ष की भूमिका अदा की है, बल्कि जनता को यह सबक भी दिया है कि जरा सी रीढ़ सीधी कर दो तो तानाशाहों का बिगड़ैल मिजाज भी सीधा हो जाता है.
राज व्यवस्था राजनीतिक दल ही चलाते हैं. वे नेतृत्व करते हैं. जनता समर्थन या विरोध करती है. इसलिए जनता अपने वर्तमान और भविष्य के लिए दलों की ओर देखती है. सरकारी जुल्म और घोर अन्याय के वक्त जनता को अनाथ छोड़ना उसके साथ धोखा होगा. आज इस साहस की बहुत जरूरत है.
प्रियंका गांधी ने पिछले तीन दिनों में जिस तरह जुझारूपन दिखाया है, वह काबिलेतारीफ है. दो दिन से कांग्रेस के कई आलोचकों के मुंह से, यहां तक कि गोदी मीडिया के कार्यक्रमों में प्रियंका की तारीफ होते सुन रहा हूं. यह तेवर काफी पहले दिख जाना चाहिए था. आज इसकी बेहद जरूरत है.
महात्मा गांधी ने देश को यही सिखाया था कि सज्जनता, विनम्रता और नैतिक बल के साथ दृढ़ता बहुत जरूरी है. इसके बाद सत्य की जीत सुनिश्चित है. जनता पर जिस तरह लगातार जुल्म बढ़ रहा है, विपक्षी दलों के पास ऐसी ही दृढ़ता के साथ जमीन पर उतरने के अलावा कोई चारा नहीं है. विपक्षहीन भारत की कल्पना भारतीय लोकतंत्र के साथ क्रूरता है. भारत एक मजबूत विपक्ष के बिना तानाशाहों की सैरगाह भर रह जाएगा, जहां सिरफिरे शहजादे और शाह सब निरंकुश होंगे.
लखीमपुर जनसंहार में अभी तक एक भी हत्यारा पकड़ा नहीं गया है. यह कोई सामान्य अपराध नहीं, मंत्रालय से हासिल ताकत के जरिये जनता को कुचलने का कुचक्र था. यह लड़ाई इसी मजबूती के साथ जारी रहनी चाहिए.
(लेखक पत्रकार एंव कथाकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)