‘मजबूत’ प्रधानमंत्री ने संसद में 70 मिनट खर्च करके बताया कि कांग्रेस बहुत कमजोर है। एक ‘कमजोर विपक्षी’ को एक मजबूत प्रधानमंत्री ने इतनी गंभीरता से क्यों लिया कि उन्हें अपनी बिजनौर यात्रा रद्द करनी पड़ी और संसद में पूरा भाषण कांग्रेस पर खर्च करना पड़ा?
उन्हें राष्ट्रपति के अभिभाषण पर जवाब देना था। प्रधानमंत्री इस दौरान देश के सामने सरकार का विजन रखते हैं। लेकिन नरेंद्र मोदी ने अपना लंबा चौड़ा भाषण पूरी तरह कांग्रेस को समर्पित कर दिया। जानकारों का कहना है कि मोदी जिस तरह लगातार निचला पायदान छूते जा रहे हैं, उससे दूसरे प्रधानमंत्रियों की तो खैर तुलना ही नहीं है, उन्होंने खुद इस तरह का भाषण कभी नहीं दिया। हमेशा की तरह वे भूल गए कि वे देश के प्रधानमंत्री हैं और संसद में खड़े हैं, इसके अलावा उन्होंने अनजाने में यह संदेश दिया कि वे कांग्रेस की कम सीटें भले गिना रहे हों, लेकिन वे कांग्रेस को हल्के में कतई नहीं ले रहे हैं।
अपने भाषण के दौरान प्रधानमंत्री नर्वस नजर आ रहे थे। वे जिस आत्मविश्वास के लिए जाने जाते हैं, वह संसद में गायब दिखा। शायद यही वजह है कि उन्होंने कई हास्यास्पद बातें कीं, कई तरह के झूठ सहारा लिया, नेहरू का बार बार संदर्भहीन हवाला दिया। वे यह भूल गए कि नेहरू जब प्रधानमंत्री थे, तब आजादी के तुरंत बाद का वक्त था और भारत का निर्माण हो रहा था, लेकिन जब वे खुद प्रधानमंत्री बने हैं तब भारत अपनी आजादी के सात दशक जी चुका है।
उनसे पहले संसद में राहुल गांधी का भाषण काफी चर्चित हुआ। मेरी जानकारी में सोशल मीडिया के जरिये राहुल गांधी का भाषण खूब वायरल हुआ और सराहा गया। अर्थव्यवस्था, कोरोना, नोटबंदी, जीएसटी, लॉकडाउन समेत कई बड़े मसलों पर राहुल गांधी ने सरकार को पहले से चेताने की कोशिश की और वे सही साबित हुए हैं। यह बात जनता देख रही है। इन पांच राज्यों के चुनाव में कांग्रेस पंजाब और उत्तराखंड में हावी है, मणिपुर और गोवा में भी कांग्रेस पॉजिटिव है।
23 करोड़ लोगों का अचानक गरीबी रेखा से नीचे जाना, करोड़ों लोगों का रोजगार छिन जाना, लोगों का 5 किलो अनाज पर निर्भर हो जाना, अर्थव्यवस्था का ध्वस्त होना, महंगाई का आसमान छूना ऐसे तथ्य हैं जो जनता को सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं। राहुल ने जितने मुद्दे उठाए, वे सटीक थे, इसलिए लोगों को समझ में आने वाले हैं।
संसद में प्रधानमंत्री के भाषण के बाद मैंने काफी हद तक यह देखने की कोशिश की कि इसके क्या मायने निकाले जा रहे हैं। इस भाषण के बाद एक नया पैटर्न भी देखने को मिला है कि भाजपा नये सिरे से, संगठित रूप से कांग्रेस पर हमलावर हुई है। प्रधानमंत्री ने संसद में जो कुछ बोला, वही बातें जेपी नड्डा ने भी अपनी उत्तराखंड रैली में दोहराईं।
यूपी चुनाव में भाजपा हालत टाइट है। पूरा चुनाव भाजपा बनाम गैर भाजपा हो गया है। यह धारणा से पहले से है कि अगर भाजपा यूपी हारी तो लोकसभा भी हाथ से जाएगा। केंद्र में भाजपा की हार की स्वाभाविक दावेदार है। जो भी सरकार बनेगी वह कांग्रेस की अगुआई में बनेगी। भाजपा और नरेंद्र मोदी इस आशंका से डरे हुए दिख रहे हैं।
(लेखक पत्रकार एंव कथाकार हैं)