मनरेगा में पिछले चार साल में 935 करोड़ रुपये की गड़बड़ी हुई है। खबर छपने के बाद इसे बड़ा मुद्दा होना चाहिए था लेकिन कोई शोर नहीं दिख रहा है। दरअसल, किसी भ्रष्टाचार पर असली शोर मीडिया के जरिये होता है। मीडिया मोदी का मोर हो गया है। मोदी अपनी बगीची में बैठकर दाना डाल रहे हैं और मोर प्रेम से दाना चुन रहा है।
ग्रामीण विकास मंत्रालय के मैनेजमेंट इनफॉरमेशन सिस्टम की सोशल ऑडिट यूनिट ने पाया है कि 2017-18 से लेकर 2020-21 तक पूरे देश में मनरेगा में 935 करोड़ रुपये का गड़बड़झाला हुआ है। ये आंकड़े इंडियन एक्सप्रेस को प्राप्त हुए हैं और उसने खबर छापी है। इस 935 करोड़ में से अभी तक सिर्फ 12.5 करोड़ रुपये की भरपाई हो पाई है। 2017-18 से अब तक इस यूनिट ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 2.65 लाख ग्राम पंचायतों का ऑडिट किया है। मनरेगा देश की सबसे गरीब आबादी के लिए चलाई जा रही योजना है। अगर इसमें भी लूट हो रही है तो क्या बाकी जगह नहीं हो रही होगी?
ये झूठ है कि भ्रष्टाचार खत्म हो गया है। भ्रष्टाचार पहले से ज्यादा तगड़ा है, बस रूप और रूट बदल गया है। ये कैशलेस उर्फ डिजिटल इंडिया है। अब घूस में दिया जाने वाला नोट बोरे में भर कर नहीं दिया जाता। पार्टियां भी इलेक्टोरल बॉन्ड के रूप में काला धन बटोरती हैं।
इलेक्टोरल बॉन्ड से याद आया कि चुनाव आयोग के समक्ष पेश एक ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि बीजेपी को 2019-20 में इलेक्टोरल बॉण्ड के ज़रिए ढाई हज़ार करोड़ रुपये मिले हैं। इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये बीजेपी की ये आमदनी 2018-19 के 1450 करोड़ रूपए के मुकाबले करीब 76 प्रतिशत अधिक है।
2019-20 में पार्टियों को इलेक्टोरल बॉण्ड के ज़रिए कुल करीब 3441 करोड़ रुपये का चंदा दिया गया। इसमें से क़रीब 75 प्रतिशत हिस्सा अकेले बीजेपी के खाते में आया। अब आप सोचिए कि भारत में दर्जनों पार्टियां हैं। नई इलेक्टोरल बॉन्ड व्यवस्था बनने के बाद से कुल चंदे का 75, 80 या 90 फीसदी बीजेपी को ही क्यों जाता है? जो तालिबान पर परेशान है, उसे ये नहीं पता है कि इधर अपना ही देश हलकान है।
लेखक पत्रकार एंव कथाकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)