उदयपुर की घटना हिला देने वाली है। ऐसी जघन्य हिंसा और घृणित मानसिकता हमारे समाज को तो कमजोर करती ही है, हमारे धर्म को भी बदनाम करती है। एक गरीब टेलर को मारकर उन हरामखोरों को क्या मिला? इससे तो अल्लाह कभी खुश नहीं होंगे। ऐसे नरपिशाचों को किसी भी कीमत पर बढ़ावा नहीं मिलना चाहिए। भगवान जाने ऐसा राजस्थान में बार-बार क्यों होता है! इसी राजस्थान में इसी तरह शंभूलाल रैगर नाम के एक शैतान ने अफराजुल नाम के एक मजदूर को बेरहमी से मार डाला था। उसे तो नफरती गिरोह की तरफ से समर्थन भी दिया गया। उसे चुनाव में उतारा गया। उसके लिए चंदा जुटाया गया।
इसके पीछे की वजह क्या है? क्या कारण है कि अगर अपराधी हिंदू कट्टरपंथी गिरोह से है तो उसे फर्जी राष्ट्रवादियों के गिरोह का समर्थन मिलता है और उसे बचाने के लिए अभियान चलाया जाता है? क्या ऐसी घटनाओं के पीछे यह संगठित गिरोह सक्रिय नहीं है? क्या इसकी वजह नफरत का वह संगठित कारोबार नहीं है जो 8 साल से रोज शाम देश भर में प्रसारित होता है? क्या लिंच मॉब का बचाव करना, हत्यारों को माला पहनाना, मीडिया को जहर की फैक्ट्री बना देना, लगातार हिंदू-मुसलमान जज्बातों को छेड़ना इसकी वजह नहीं है? क्या जनता को बांटकर चुनावी लाभ लेने की कुटिल मंशा इसके पीछे काम नहीं कर रही है? क्या हमारे समाज को वही लोग तोड़ने का प्रयास नहीं कर रहे हैं जिनपर इसे संवारने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है?
मजबूत होता भीड़तंत्र, कमजोर पड़ता कानून का शासन, बढ़ती नफरत, बढ़ता अन्याय, प्रायोजित हिंसा, धार्मिक उन्माद और संगठित हिंसा इस देश को रोज तोड़ रही है। यह बहुत कठिन समय है। यह हमारे एकजुट और शांत हो जाने का समय है। अगर हम एक न हुए, सौहार्द न बढ़ाया, आपसी प्रेम को मजबूत न किया तो हम वो दिन देखेंगे जिसके बारे में सोचकर रूह कांपती है। किसी भी तरह की धार्मिक कट्टरता को कुचलने और उसे हराने का काम जनता ही कर सकती है अगर वह एकजुट हो जाए।