जब मैं पैदा हुआ तब एक महिला आई थी। उसने नाल काटने से लेकर पैदा होने की तमाम रस्में अदा करवाई थीं। वे मेरी क्षत-विक्षत, कमजोर मां की मालिश करती थीं। वे हर त्योहार पर शाम को मेरे घर खाना लेने आती थीं। उन्होंने मेरे मुंडन पर एक आटे की लोई बनाई थी और मेरा बाल उसमें इकट्ठा किया था, जिसे गंगा में डाला गया था। फिर उन्होंने मेरी शादी में तमाम रस्में अदा की थीं। वे घर की सभी बेटियों की मांग में सिंदूर भरवाने की रस्म अदायगी करवाती हैं। वे हर शुभ रस्म में शामिल होती हैं।
मेरे घर भागवत हो तो वे पूरे गांव-जवार में बुलौवा पहुंचाती हैं। रस्म-अदायगी में कुछ गलती होने पर वे मेरी माँ को डांट सकती हैं। वे बिना परमिशन के मेरे घर मे कभी भी आ जा सकती हैं। वे हर शुभ घड़ी में घर के सदस्य की तरह मौजूद रहती हैं। हर ऐसे अवसर पर वे कोई बड़ी चीज नेग में लेती हैं। हम सब बच्चे उन्हें चाची कहते हैं। उनका धर्म इस्लाम है। वे अल्लाह को मानती हैं। वे हमारे यहां कथा, भागवत, पूजा-पाठ सब में शामिल रहती हैं। वे हमारी धार्मिक या कहें कर्मकांड रूपी संस्कृति का हिस्सा हैं। उनके त्योहारों में वे हमें सिन्नी और मलीदा खिलाती हैं। यह सब पिछली पीढ़ी में भी हुआ, यह मेरे बचपन में भी हुआ, यह आज भी हो रहा है।
अब आज कोई घिनौना आदमी भगवा पहनकर कहे कि उनसे नफरत करो क्योंकि वे मुसलमान हैं तो मैं निकालूंगा जूता और मुंह पर 50 मारूंगा तब एक गिनूंगा। ऐसे हरामखोर परजीवियों से हमें धर्म और संस्कृति की रक्षा नहीं सीखनी जो न्यूनतम इंसानियत का मूल तत्व भी न समझते हों।
मुझे धर्म सीखना है तो भारत में ही छह धर्म-दर्शन हैं। मैं ग्रंथों और दार्शनिकों को पढ़कर सीख लूंगा। इसके अलावा दुनिया भर में धर्म-दर्शन मौजूद हैं। मुझे संस्कृति की जानकारी लेनी है तो संस्कृति पर महान किताबें मौजूद हैं। मेरे बाप दादा की सीख है। मेरा समाज है। धर्म और संस्कृति की रक्षा करने के मेरा संविधान है जो इन्हें पूरी आजादी और सुरक्षा देता है।
किसी अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं को बेवजह सामुदायिक बलात्कार की धमकी देने वाले घिनौने जंतु से मेरे धर्म, मेरी संस्कृति का कोई लेना देना नहीं है। ऐसे व्यक्ति समाज के लिए खतरा हैं। मेरे धर्म और संस्कृति को इनसे कोई सुरक्षा नहीं चाहिए।
मैं सामान्य अपराध, घिनौने-जघन्य अपराध, धर्म के नाम पर हो रहे अपराध, समाज को बांटने के लिए किए जा रहे सामाजिक-राजनीतिक अपराध में अंतर समझता हूं। मैं हिंदू हूं, चूतिया नहीं हूं।
(लेखक पत्रकार एंव कथाकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)