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कृष्णकांत का लेखः एक अकेली लड़की को सौ वहशी घेरते हैं और नारा लगाते हैं, हम इस निकृष्टता पर थूकते हैं।

हिजाब का समर्थन नहीं, हम तुम्हारी निकृष्टता का विरोध कर रहे हैं। एक अकेली लड़की को सौ वहशी भगवा गमछा लेकर घेरते हैं और नारा लगाते हैं, हम इस निकृष्टता पर थूकते हैं। शायद मेरी बहन होती तो डर कर  रो देती, वह रोई नहीं, अल्लाहु अकबर बोलकर चलती गई, हम उसकी बहादुरी का समर्थन कर रहे हैं। हम किसी सही-गलत के चक्कर में आपकी नीचता का समर्थन करने को बाध्य नहीं हैं, क्योंकि हमारे दिलो-दिमाग पर नफरत का कब्जा नहीं हुआ है।

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हिजाब अच्छा है या बुरा, यह बहस की बात हो सकती है, लेकिन आप किसी महिला को इस तरह 100 गिध्दों का झुंड लेकर आतंकित नहीं कर सकते। एक विचार से प्रेरित होकर किसी व्यक्ति या समुदाय आतंकित करना ही आतंकवाद है। मैं इस आतंक का विरोध कर रहा हूं। मैं स्कूलों में जहर घोले जाने का विरोध कर रहा हूं। हम सबने भी पढ़ाई की है, हर तरह के, हर विचार के, हर पहनावे के छात्र एकसाथ पढ़ते थे। मैं बच्चों को विषैला बनाने के इस अभियान का विरोध कर रहा हूं।

चूड़ी पहनना या सिंदूर लगाना भी तो कर्मकांड है, पितृसत्ता की निशानी है! तुम कुएं के मेंढक इतने प्रोग्रेसिव हो गए हो कि हमारी माओं बहनों के माथे से जबरन सिंदूर पोंछ दोगे। तुम हमारी औरतों के सिर से घूंघट खींच दोगे? या उन्हें घेरकर हूट करोगे?

कर्नाटक में यही करने की कोशिश की गई है। यह कोई पर्दा प्रथा का विरोध नहीं हो रहा है। यह एक धर्म के प्रति दूसरे धर्म के लोगों के नफरत का इजहार है जो इस रूप में हमारे सामने आ रहा है। इसका सूत्रधार आरएसएस नाम का संगठन है और ये नफरत ही उसकी प्राणवायु है। हम नफरत के कारोबार का विरोध करते हैं। आप किसी पर हिजाब थोपते हैं तो मैं उसके खिलाफ हूं। आप किसी का हिजाब नोचते-खींचते हैं तो भी मैं इसके खिलाफ हूं।

आप बड़े प्रगतिशील हैं तो प्रगति के लिए प्रगतिशील तरीका अपना सकते हैं। आप अपनी मध्ययुगीन प्रगतिशीलता के लिए किसी महिला की अस्मिता पर हमला नहीं कर सकते। आप इस देश के संविधान और इस देश की संस्कृति के साथ द्रोह कर रहे हैं। हम हिजाब का समर्थन नहीं, हम नागरिक स्वतंत्रता का समर्थन और आपकी घिनौनी हरकतों का विरोध कर रहे हैं। कन्फ्यूज होने की जरूरत नहीं है।

राम का नाम लेकर किये काले कारनामे

एक अकेली महिला को सौ शोहदों के झुंड ने हैरेस किया और विरोध करने पर कह रहे हैं कि हिजाब का समर्थन मत करिए। आइए देखते हैं कि भगवान राम का नारा लगाकर तमाम कुकर्म करने वाले संघी विचार के लोग कितने प्रगतिशील और आधुनिक हैं। 

नवंबर, 2015 में आरएसएस के मुखपत्र ‘पांचजन्य’ ने जेएनयू पर ‘दरार का गढ़’ शीर्षक से एक कवर स्टोरी प्रकाशित की। इस स्टोरी में तमाम आरोपों के बीच एक पैराग्राफ में कहा गया, “जेएनयू में वामपंथियों ने गहरी घुसपैठ की है और इसका परिणाम यह हुआ कि यहां मानवाधिकार, महिला अधिकार, पांथिक स्वतंत्रता, भेदभाव एवं अपवर्जन, लैंगिक न्याय एवं सेक्युलरिज्म से ओतप्रोत पाठ्यक्रमों को बढ़ावा दिया गया। साथ ही यहां एक षडयंत्र के तहत भेदभाव एवं अपवर्जन अध्ययन केंद्र, पूर्वोत्तर अध्ययन केंद्र, अल्पसंख्यक एवं मानवजातीय समुदायों और सीमांत क्षेत्रों का अध्ययन केंद्र सहित और भी कई अध्ययन केंद्रों की स्थापना की गई। लेकिन इनमें नव वामपंथी छात्र एवं छद्म ईसाई मिशनरियों से ओतप्रोत शिक्षकों को भर दिया गया। इन तमाम चीजों ने जेएनयू से शिक्षित पीढ़ी को वैचारिक रूप से भ्रष्ट बना दिया।”

संघ के पांचजन्य जैसे थिंक टैंक का मानना है कि आधुनिक मूल्यों के प्रति युवाओं में जागरूकता फैलाने का मतलब है राष्ट्र को तोड़ना। जिन बुद्धि के विंध्याचलों का दृढ़ विश्वास है कि मानवाधिकार, महिला अधिकार, पांथिक स्वतंत्रता, भेदभाव एवं अपवर्जन, लैंगिक न्याय एवं सेक्युलरिज्म जैसे आधुनिक मूल्यों का अध्ययन करने पर पीढ़ियां भ्रष्ट हो जाती हैं, वे हिजाब पर ज्ञान बांट रहे हैं। लेकिन इन्हीं के मुंह से आप कभी घूंघट प्रथा, दहेज प्रथा जैसी कुरीतियों पर कभी एक शब्द नहीं सुन पाएंगे।

आप अपने पाखंड और धार्मिक नफरत पर हिजाब का पर्दा मत लगाइए। जो हुआ है, वह सिर्फ गलत नहीं, आपराधिक है। समाज में नफरत घोलकर लोगों को इस तरह बनाया जा रहा है कि वे दूसरे को बर्दाश्त करना बंद कर दें। यह खतरनाक है। जो ऐसा कर रहे हैं वे असल में देश को तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं।

तिरंगे के स्थान पर भगवा

कितने तगड़े राष्ट्रवादी हैं कि एक कॉलेज में राष्ट्रीय झंडा फहराने वाले पोल पर भगवा फहरा दिया जाता है। कॉलेज के लड़के सब भगवा गमछा ओढ़कर हुड़दंग करते हैं, एक लड़की को घेरकर हैरेस करते हैं, आतंक मचाते हैं लेकिन बहस इस बात पर हो रही है कि चूंकि स्कूल कॉलेज का ड्रेस कोड होता है, इसलिए लड़की को हिजाब पहनकर नहीं आना चाहिए।

ये सवाल कोई नहीं पूछ रहा है कि कॉलेज में राष्ट्रीय ध्वज की जगह भगवा क्यों लहराना चाहिए? लड़कों को झुंड में भगवा गमछा लेकर क्यों आना चाहिए? अकेली लड़की को घेरकर नारा लगाना क्यों चाहिए? गमछा लहराकर लड़की को हैरेस क्यों करना चाहिए? वीडियो में दिख रहे सारे लड़कों को ड्रेस कोड फॉलो क्यों नहीं करना चाहिए? लड़कों के झुंड को को कॉलेज के नियम और कानून का पालन क्यों नहीं करना चाहिए? किसी कॉलेज में नफरत और जहर की पौध क्यों तैयार होनी चाहिए?

आप बहस नहीं कर रहे हैं। आप इस देश में चल रहे नफरत के कारोबार को सहयोग दे रहे हैं। मैं भविष्य में होने वाली दुर्गति और तबाही के बारे में सोच रहा हूं। मैं उस अंधकार के बारे में सोच रहा हूं जब हम इस पागलपन का सामना करेंगे। मैं आपकी बेटियों के लिए दुखी मन से दुआ कर रहा हूं कि उनके कॉलेज में छात्रों को भगवाधारी भीड़ में तब्दील न किया जाए। जनता को अगर पागल भीड़ में बदल दिया जाए तो उसका पहला शिकार महिलाएं होती हैं। मेरी न मानो तो इतिहास में झांक लो। पागलपन को हवा मत दो। बहुत पछताओगे।

(लेखक पत्रकार एंव कथाकार हैं)