कॅष्णकांत
कट्टरता एक अदृश्य जाल है. इसकी गिरफ्त में आया इंसान ये समझता नहीं कि वह जाल में फंसा हुआ है. जब उसके सामने इससे जुड़ा कोई सवाल आता है तो वह दूसरी तरफ की कट्टरता के उदाहरण खोज कर लाता है और कहता है कि देखो, ये भी तो हुआ था. सबसे मजे की बात है कि धर्मनिरपेक्षता और मानववाद जो आधुनिक युग की सबसे लोकप्रिय विचारधाराएं हैं, वे कट्टर धार्मिकों को चुभती हैं.
भारत में सेकुलर होने की समस्या ये है कि आप हिंदू कट्टरता की बात करेंगे तो हिंदू गालियां देंगे और मुसलमान की बात करेंगे तो मुसलमान आपको गालियां देंगे. एक दूसरे का भी दोनों विरोध करते हैं, लेकिन अपने बारे में कभी नहीं सुनते. एक लिंचिंग को जायज बताता है तो दूसरा दूर देश में हुई हिंसा को जायज ठहराता है. इसके लिए वे अपनी आहत भावना का हवाला देते हैं. उनसे जुड़ा सवाल हो तो वे आपके विरोध में खड़े हो जाते हैं. इस बात का कोई अर्थ नहीं कि सही गलत के आधार पर आप हर गलत के खिलाफ खड़े रहे.
जब तक आप अपनी कट्टरता स्वीकार नहीं करेंगे, उससे किनारा नहीं करेंगे, तब तक दूसरे की कट्टरता पर आप कुछ भी कहें, आपकी बात बेमानी ही रहेगी. पहले खुद गुड़ खाना बंद कीजिए, फिर दूसरे को बताइए कि गुड़ खाना नुकसानदेह है. दूसरी बात, अगर हम आप एक दूसरे की सामान्य बुराइयों पर सवाल करते हैं, तो हमें ये नहीं समझना चाहिए कि हम दोनों आपस में दुश्मन हैं. सारी बहसों के बीच चिंता सिर्फ इस बात की है कि ये दुनिया पहले से बेहतर होनी चाहिए.