यह कानपुर है. अयोध्या की धरती से महज सवा दो सौ किलोमीटर दूर. वही अयोध्या जहां के मुसलमान भगवान राम के लिए कलगी बनाते हैं, चुनरी और अंगवस्त्र बेचते हैं. वे भगवान के लिए सिंदूर, चूड़ी, लाई, बताशा और प्रसाद बेचते हैं. उन्हें कभी किसी ने नहीं पीटा कि अयोध्या में रहना है तो जयश्रीराम बोलो. भगवान की नगरी में मुसलमानों के लिए जगह है. लेकिन दो सौ किलोमीटर दूर बसे शैतान किसी मुसलमान को पीट रहे हैं और उससे कह रहे हैं कि जयश्रीराम बोलो.
वह मुसलमान है. रिक्शा चलाता है. उसे पीटते हुए सड़क पे घुमाया जा रहा है. पीट पीटकर उससे कहा जा रहा है कि “जयश्रीराम” बोलो. वह रो रहा है. गिड़गिड़ा रहा है और जयश्रीराम बोल रहा है. उसके साथ उसकी छोटी सी बच्ची है. वह डरी हुई अपने बाप से लिपट कर रो रही है. बाप को लोग पीट रहे हैं. उसका कोई गुनाह नहीं है. उसकी भाभी का बाइक लड़ जाने को लेकर अपनी हिन्दू पड़ोसन से झगड़ा हुआ था. एफ़आईआर हुई. तब तक मामले में बजरंग दल का प्रवेश हुआ. पिटने वाले पर कोई आरोप नहीं है. एफआईआर में उसका नाम नहीं है. लेकिन वह पिट रहा है और जान बचाने के लिए जयश्रीराम बोल रहा है.
वह बेगुनाह होकर भी पिट रहा है, क्योंकि हिंदुओं से बताया जा रहा है कि बर्बर पशुओं में बदल जाएंगे तो महान कहलाएंगे. उसे पीटा जा रहा है, क्योंकि वह मुसलमान है. उसे पीटा जा रहा है क्योंकि वह गरीब है. किसी अमीर मुसलमान की लिंचिंग सुनी है? नहीं सुनेंगे. बांस डालकर उलट देगा. धर्म के नाम पर पाले गए पशुओं को आप किसी ताकतवर से भिड़ते नहीं देखेंगे. वे गरीबों और आम लोगों को निशाना बनाते हैं.
उसी कानपुर में कभी दंगा रोकने की कोशिश में गणेशशंकर विद्यार्थी शहीद हो गए थे. विद्यार्थी जैसे महापुरुष को खोकर कानपुर ने अगर कुछ सीखा होगा तो उसे भुलाया जा चुका है. ये न्यू इंडिया का कानपुर है. न्यू इंडिया न अपने महापुरुषों से कुछ सीखता है, न अपने देवताओं से कुछ सीखता है.
हमारी अवध की धरती पापियों के पाप से रक्त के आंसू रो रही है. अवध के घर-घर में रामचरितमानस पढ़ा जाता है. अयोध्या के मंदिरों में चौपाइयां लिखी हैं: ‘परम धरम श्रुति विदित अहिंसा’ यानी अहिंसा से बड़ा कोई धरम नहीं है. ‘परहित सरिस धरम नहीं भाई’ यानी परहित और दया ही धर्म का सर्वोच्च रूप है. ‘धरम न दूसर सत्य समाना’ यानी सत्य से बड़ा कोई धर्म नहीं है. यही गांधी सिखा रहे थे कि सत्य ही ईश्वर है. लेकिन अवध की धरती श्रीराम के संदेश भूल चुकी है. वह अपना आदर्श सीरिया और पाकिस्तान से आयात कर रही है.
हमारा समाज इतना उत्तेजित होता जा रहा है कि वह दिमाग से कमजोर हो गया है. उत्तेजना और क्रोध मनुष्य को कमजोर करते हैं. क्रोधी मनुष्य सिर्फ हिंसक हो सकता है, बाकी वह किसी काम का नहीं होता. महात्मा गांधी ईश्वर का अवतार नहीं थे. साधारण मनुष्य थे, लेकिन यही बात उन्हें महान बनाती है कि वे सत्य, करुणा, दया, परहित और इंसानियत के वसूलों से कभी समझौता नहीं करते. आज के भारत में गांधी को गालियां दी जाती हैं. लिंच मॉब को फूलों की माला पहनाई जाती है. क्या आपको दिखता है कि आपका देश किस शिकंजे में फंसता जा रहा है?
सभी धर्मों का चरम बिंदु दया, करुणा, मानवता, बंधुत्व, समानता आदि पर खत्म होता है. भेदभाव, हिंसा, वैमनस्य, क्रूरता ये धर्म की आड़ में फल-फूल रही बुराइयां हैं. जो लोग धर्म के बहाने, ईश्वर या अल्लाह के बहाने हथियार उठा सकते हैं, वे न धार्मिक हैं, न उनकी ईश्वर में कोई आस्था है. तकनीकी परिभाषा के हिसाब से आतंकवादी हैं. नैतिक परिभाषा के हिसाब से वे ऐसे नरपिशाच हैं, जो समाज के लिए खतरा हैं.
ईश्वर, धर्म और हिंसा एक साथ नहीं रह सकते. अगर आप ईश्वर/धर्म की रक्षा के लिए, उसके सम्मान की रक्षा के लिए, उसका प्रभाव जमाने के लिए हथियार उठाते हैं, हिंसा का सहारा लेते हैं, निर्दोष इंसान पर अन्याय करते हैं तो आप सिर्फ अपने ईश्वर और धर्म को कलंकित करते हैं.
मैं जानता हूं कि ये बातें उकसाने वाली नहीं हैं, इसलिए लोग इन पर कोई कान नहीं देगा. मनुष्य को अपने विनाश की बातें ज्यादा सुंदर लगती हैं.
(लेखक पत्रकार एंव कथाकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)