बटुकेश्वर दत्त! हमारे खून का हर कतरा आपका कर्जदार है

उन्होंने कभी देश की आजादी के लिए भगत सिंह के साथ मिलकर सेंट्रल एसेम्बली में बम फेंका था, ताकि ‘बहरों को सुनाया जा सके’. भगत सिंह को फांसी हुई और उन्हें कालापानी की सजा. करीब आठ साल बाद छूटकर आए तो गांधी का साथ देने के लिए फिर से आंदोलन में कूद पड़े. फिर पकड़े गए और फिर जेल गए. कुल मिलाकर करीब 15 साल जेल में रहे.

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

बहरे अंग्रेजों को उन्होंने अपना धमाका सुना भी दिया था, लेकिन स्वदेशी भूरे अंग्रेजों से वे हार गए. देश आजाद हो गया. अब आजादी का यह नायक अपनी जिंदगी जीने की जद्दोजहद से जूझ रहा था. पेट पालने के लिए इस महान क्रांतिकारी ने ​क्या क्या नहीं किया? सिगरेट कंपनी का एजेंट बनकर पटना में गुटखा-तंबाकू की दुकानों के चक्कर लगाए. बेकरी में बिस्कुट और डबलरोटी बनाने का काम किया. एक मामूली टूरिस्ट गाइड बनकर पेट पालने के लिए रोटी कमाई.

वे एक ऐसे देश के नायक थे जहां राह चलते लोगों को भगवान बनाकर पूजा जाता है. लेकिन लोग उन्हें भूल चुके थे. इस महान क्रांतिकारी का नाम था बटुकेश्वर दत्त. एक बार उन्होंने सोचा कि पटना में अपनी बस सर्विस शुरू की जाए. परमिट लेने की ख़ातिर कमिश्नर से मिले. कमिश्नर ने उनसे कहा कि प्रमाण पेश करो कि तुम बटुकेश्वर दत्त हो. 1964 में बटुकेश्वर दत्त बीमार पड़े. उन्हें पटना के सरकारी अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्हें बिस्तर तक नहीं नसीब नहीं हुआ. उनके इलाज को लेकर लापरवाही बरती गई.

अंतत: देर हो गई. हालत बिगड़ने पर उन्हें दिल्ली लाया गया. बटुकेश्वर दत्त ने पत्रकारों से कहा, ‘मैंने सपने में ही नहीं सोचा था कि जिस दिल्ली में मैंने बम फेंक कर इंक़लाब ज़िंदाबाद की हुंकार भरी थी वहीं मैं अपाहिज की तरह लाया जाऊंगा’. इस दौरान अस्पताल में पंजाब के मुख्यमंत्री बटुकेश्वर दत्त से मिलने पहुंचे. उन्होंने मदद की पेशकश की तो दत्त ने कहा, ‘हो सके तो मेरा दाह संस्कार वहीं करवा देना, जहां मेरे दोस्त भगत सिंह का हुआ था’.

20 जुलाई, 1965 को बटुकेश्वर दत्त अपने दोस्त भगत सिंह के पास चले गए. बटुकेश्वर दत्त को याद करने की हिम्मत जुटाइये तो आपको रोना आ जाएगा. उन्होंने बलिदान, क्रांति, आंदोलन और इंकलाब का सर्वोच्च उदाहरण पेश किया था. लेकिन इस देश ने उनके साथ जो किया, वह नमकहरामी और कृतघ्नता का निकृष्टतम उदाहरण है. बटुकेश्वर दत्त! हमारे खून का हर कतरा आपका कर्जदार है. नमन!

(लेखक पत्रकार एंव कथाकार हैं)