मध्य प्रदेश की ये खबर देखकर मेरा दिमाग हिल गया. रीवा में करीब डेढ़ सौ गायों को हजारों फीट गहरी खाई धकेल दिया गया. गहरे खाई में गिरने से इन गायों की हड्डियां चकनाचूर हो गईं. इनमें से 30 गायों की मौत हो गई, 50 के करीब गाय जीवन और मौत से जूझ रहीं हैं. गायों की हड्डियां टूट गई हैं और खाई इतनी गहरी है कि उन्हें बाहर निकालना संभव नहीं है. वे एक एक कर मर रही हैं.
खबर कहती है कि इस निर्मम घटना को अंजाम देने वाले दरिंदों को बीजेपी के बड़े नेताओं का संरक्षण प्राप्त है. पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ मामूली धाराओं में एफआईआर की और 10 दिन बाद तक किसी को पकड़ा नहीं गया है क्योंकि आरोपी बीजेपी नेताओं के करीबी हैं.
बीजेपी और उसके सहयोगी चिंटू दलों के गुंडे आए दिन गोसेवा के लिए उपद्रव करते रहते हैं. मध्य प्रदेश में गोसेवक सरकार है. गायों के लिए मंत्रालय है.
दरअसल, गाय इनकी राजनीति के सबसे कारगर हथियारों में से एक है. सदियों से चली आ रही पशुपालन की व्यवस्था को नष्ट कर दिया गया. सरकारी गोसेवा का नाटक हुआ. गोशाला चलाने के नाम पर जमीन और पैसे हड़पने का खेल चल रहा है और हर जगह गोशालाओं में गायें चारा पानी बिना मर रही हैं. आये दिन गोशालाओं में बड़ी संख्या में गायों के मरने की खबरें आती हैं.
इनकी गोसेवा की राजनीति का परिणाम ये हुआ कि पशुओं की खरीद बिक्री बंद हो गई. गाय पर आधारित अर्थव्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो गई. लोग गायों को आवारा छोड़ने लगे. पूरे यूपी के गांव आवारा जानवरों से परेशान हैं. वे खेती नष्ट करते हैं, सड़कों पर हादसे की वजह बनते हैं. फसल बचाने के लिए किसान खेतों को ब्लेड वाले तार से घेर देते हैं, जिनसे गायें कट जाती हैं. उनका घाव सड़ता है, कुछ दिन बाद वे मर जाती हैं.
जब मैं पैदा हुआ तो मेरे बाबा मेरे लिए एक गाय लाए थे ताकि मेरे लिए शुद्ध दूध उपलब्ध हो. जब मैंने होश संभाला, तब तक उसकी तीन और बेटियां हो चुकी थीं. उसका नाम उम्र के लिहाज से बुढ़नकी पढ़ गया था. वह बेहद सीधी थी. मुझे उससे खासा लगाव था. एक बार मैं स्कूल से लौटा तो पाया कि उसकी मौत हो चुकी है. मैं बहुत रोया. मुझे लग रहा था कि वह चरने गई होगी और लौट आएगी. हमारे गांव में लोग बूढ़ी गायों को बेचते नहीं थे. अपने खूंटे पर ही उसका मरना ठीक समझा जाता था. किसान परिवारों में गाय परिवार के सदस्य जैसी होती हैं. मेरे पिता गायों के लिए भी रोटी बनवाते थे. मैंने गायों की पूजा देखी है, उनका पालन पोषण देखा है, लेकिन मैंने अपने जीवन में गायों की ऐसी दुर्दशा कभी नहीं देखी.
इनके विरोध का आधार ये था गायों को कसाईघर में नहीं कटना चाहिए. तो फिर खाईं में धकेलकर मारने से देवता प्रसन्न होते हैं? उनके चारा बिना गोशालाओं में मरने से देवता प्रसन्न होते हैं? इनकी गोसेवा नफरत से भरे पाखंड के सिवा और कुछ नहीं है.
राजनीति ने जो गोसेवा शुरू की थी, वह दरअसल गोहत्या है. हमारे गांव में किसी के हाथ से गाय मर जाए तो समाज उसे गोहत्या का दोषी मानकर सजा देता है. इन नेताओं को क्या सजा दी जाएगी जिन्होंने करोड़ों जानवरों की जिंदगी नरक बना दी है.
मेरी यह धारणा हर दिन और पुख्ता हो जाती है कि भाजपा, खासकर नरेंद्र मोदी ने जिसके भी कल्याण का नारा लगाया, उसका बेड़ा गर्क कर दिया.
(लेखक पत्रकार एंव कथाकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)