किसान आंदोलनः क्यों जरूरी है MSP की गारंटी? क्या है आगे का रास्ता?

राजेश यादव

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नए कृषि कानून के विषय मे अब तक जितना पढ़ा सुना है उसे अपनी समझ से आपके साथ शेयर कर रहा हूँ। अगस्त 2020 मे साहेब के आका नम्बर वन मुकेश अंबानी किशोर बियानी की कम्पनी “फ्यूचर ग्रुप” की मुनाफे में चल रही सक्सेजफुल रीटेल चेन का अधिग्रहण 24,713 करोड़ रु में कर लिया। बिल पेश होने से पहले ही देश भर में अडाणी के लाखों टन भंडारण की क्षमता वाले बड़े बड़े गोदाम बन गए। एग्रो कम्पनी बन गयी।

क्रोनोलॉजी समझिये।

अब सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या तीनो कृषि कानून का ड्राफ्ट, पहले किसी कॉरपोरेट घराने के दफ्तर में तैयार हुआ था? इन दोनों अम्बानी और अडानी को बिल के बारे में कोई सपना नही आया था बल्कि उनके फायदे के लिए बिल लाया गया। इन दोनों को पहले से ही सब पता था जिस तरह नोटबन्दी के बारे में मालूम था। दोनों की सरकार से पूरी सैटिंग है ये साफ दिख रहा है इसलिए बिल वापस न लेना सरकार की मजबूरी है।

सरकार के मित्र उद्योगपति लोग कृषि के क्षेत्र में अग्रिम निवेश किये बैठे हैं। किसी ने गोदाम बना लिए हैं तो किसी ने रिटेल चेन ही खरीद ली है तो कोई अनाज भंडारण के लिए 100 एकड़ जमीन पानीपत में खरीदे बैठा है। मतलब समझिए,अध्यादेश आया जून में,कानून बना अक्टूबर में और कॉरपोरेट के गोदाम एक साल पहले से ही बन कर तैयार हो रहे हैं।

आपको तो ये भी नही पता होगा कि कोरोना पैकेज के नाम पर किसानों के लिए जो एक लाख करोड़ के कर्ज देने का प्रावधान किया गया है, वो एग्रीकल्चर के लिए नहीं,बल्कि एग्रो कम्पनी के लिए बड़े सेठ ले गए। किसान के हाथ कुछ नही आया।

एक मामूली बुद्धि वाला भी जानती है कि जमाखोरी से मंहगाई बढ़ती है। फिर भी सरकार जमाखोरी को कानूनी जामा पहनाने पर आमादा है। क्योकि अडानी के वेयर हाउस भरे जा सकें। सरकार के कुछ समर्थक तर्क देते हैं कि FCI में भारी भ्रष्टाचार है। मान लिया भृष्टाचार है तो पिछले 6 सालों में FCI के कितने अधिकारियों के विरुद्ध केस दर्ज हुए, कितने दंडित हुए, कितनो के खिलाफ जांच हुईं?

क्या है इस क़ानून का उद्देश्य

आसान शब्दों में जान लीजिए कि इन बिलों का मूल उद्देश्य खेती का कोर्पोरेटाइजेशन है। बाजार आधारित खरीद फरोख्त व्यवस्था, असिमित स्टाक और कंट्रेक्ट फार्मिंग इसी दिशा में कदम है। इन बिलों से APMC मंडियों और MSP की हालत वही होगी जो आज BSNL की है। MSP की गारंटी बहुत जरूरी है और हर फसल के दाम तय करें ताकि किसान 50 पैसे किलो में प्याज आलू सब्जियां ना बेंचे जिसे बिचौलिए बाद मे 100 गुना दाम 40-50 रुपए किलो बेचता है। जेल का प्रावधान हो इन लुटेरे व्यापारियों के खिलाफ साथ ही किसान से जिस दाम पर फसल खरीदते हैं 20%अधिक मुनाफा न हो।

प्रधानमंत्री कहते हैं कि किसान बिल से मंडियां खतम नहीं होगी। जब मंडी में खरीदने बेचने पर टैक्स लगेगा, और बाहर टैक्स फ्री खेल चलेगा तो मंडी कितने महीने टिकेगी ? जब मंडियां नही रहेंगी तो हजारों मंडियों की लाखों एकड़ जमीन कौड़ियों के दामों पर चहेते उद्योगपति मित्रों को बेच दी जाएंगी।

आगे का रास्ता

पब्लिक को समझना चाहिए किसानों का आंदोलन सिर्फ उनके अपने हितों के लिए रक्षा के लिए नहीं बल्कि हर देशवासी के हितों से जुड़ा हुआ है। अगर अपनी उपज के लिए किसान को 10 रू मिले और उसके लिए उपभोक्ता को 100 रू देने पडे तो सोचिए आंदोलन किसके लिए और कानून किसके लिए ?

नये कृषि कानून के विषय मे जान लीजिए। इस काले कानून में बडे व्यापारियों को मनमानी कीमत वसूलने की छूट किसानों को कोई विशेष तयशुदा कीमत (MSP) देने की बंदिश नहीं, बाजार में बेचते समय कोई रोक टोक नहीं, भंडारण की कोई सीमा नहीं। जितना चाहे भंडारण करें। क्या यह सब किसानों के हित में है? इस जमाखोरी का सीधा असर खाद्य पदार्थों की महंगाई पर पड़ने जा रहा है। मान लीजिए यदि कुछ लोगों ने ही सिंडिकेट बनाकर दालों की जमाखोरी कर ली तो सरकार क्या कर लेगी और जनता क्या कर लेगी? इस जमाखोरी से किसान को क्या मिलेगा ,क्योंकि उसके पास तो भंडारण की क्षमता ही नही है।

प्रधानमंत्री और उनके सभी मंत्री ये भी कह रहे हैं कि किसानों को अपनी फसल देश मे कहीं भी बेचने की छूट है। क्या पहले नही थी ? कश्मीर का सेब दिल्ली में,नागपुर के संतरे लखनऊ में या मलिहाबाद के आम मुंबई में नही बिकते थे?

सरकार अपने अड़ियल रुख पर कायम है कि कानून वापस नही लिया जाएगा। MSP के नीचे फसल बिकना गैरकानूनी होगा इस बिल में एक ये लाइन बढ़ देने से उसे बड़ी दिक्कत हो रही है। उल्टे सरकार के मंत्री पीयूष गोयल आंदोलन को लेफ्ट की साजिश बता रहे हैं। इससे पहले इस किसान आंदोलन को कभी खालिस्तानियों की ,कभी पाकिस्तान की तो कभी काँग्रेस की साजिश कहकर बदनाम करने का प्रयास किया गया। विदेशी फंडिंग जैसी अफवाहों को भी फैलाया गया। हद हो गयी !

सरकारी BSNL के बजाय मुकेश अम्बानी की jio को स्थापित करने वाले,paytm का विज्ञापन करने वाले, अडानी को ऑस्ट्रेलिया में SBI से लोन दिलवाने के लिए लॉबिंग करने वाले,रेलवे के लिए डीजल सप्लाई BPCL के बजाय रिलायंस को दिलवाने वाले, रेल टेल नेटवर्क का ठेका गूगल को सौंपने वाले और रॉफेल जेट का ठेका सरकारी कम्पनी HAL की जगह दिवालिया अनिल अंबानी को दिलवाने वाले मोदी जी अब किसान हितैषी बन रहे हैं ? इस देश का अब राम ही मालिक है। बाकी भक्तों का क्या है उन्हें तो व्हाट्सएप पर जो पढ़ाया जाता है उसे सच मान लेते हैं और पढ़कर अपनो का ही सर फोड़ने को तैयार रहते हैं। जाको प्रभु दारुण दुख देही, ताकी मति पहले हर लेही।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)