नई दिल्लीः दिल्ली दंगों के आरोप में जेल में बंद सोशल एक्टिविस्ट ख़ालिद सैफ़ी की पत्नी नरगिस सैफ़ी ने कहा है कि किसी को भी ऐसा सहन न करना पड़े जो मेरे पति और परिवार को सहना पड़ रहा है। प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में यूएपीए के तहत जेल में बंद सोशल एक्टिविस्टों की रिहाई के लिये आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए नरगिस सैफी ने खालिद को जेल के अंदर दी गई यातनाओं के बारे में बताया। कैसे उसे व्हीलचेयर पर लाया गया। वो सबसे पहले बंदी बनाये जाने वालों में से थे और जब उसे ज़मानत मिलने ही वाली थी कि उन पर यूएपीए लगा दिया गया।
नरगिस ने कहा कि उन के पति का केवल एक ही जुर्म था कि वो दमित लोगों की लड़ाई लड़ रहे थे। मेरे पति ने मुझे इन संघर्षो से वाकिफ़ कराया। इस तरह में और लोगों से मिली जिस से मेरी हिम्मत बढ़ी और यह सब सहने का हौसला मिला। जिन्होंने दंगों के दौरान लोगों के मदद करने की कोशिश की उन्हें ही जेल में डाल दिया।
नरगिस ने बताया कि ख़ालिद की फेसबुक की आखरी पोस्ट दंगों में ज़ख़्मी लोगों की मदद के लिए एम्बुलेंस मनवाने के लिए थी। नरगिस ने यह सवाल भी उठाया कि उनके बच्चों का क्या दोष है जो 20 महीनें से अपने बाप का इंतज़ार कर रहें हैं। आज हम्मरे बच्चें यह सह रहें हैं पर अगर ख़ालिद ने यह लड़ाई नहीं लड़ी होती तो यह न जाने कितनो का हश्र होता।
ख़ालिद सैफ़ी की पत्नी ने कहा कि यदि ख़ालिद औरों के लिए खड़े नहीं होते तो आज और सब भी उनके लिए खड़े नहीं होते। हमें एक दूसरे के लिए खड़ा होना है, एक दूसरे के लिए आवाज़ उठानी है। हमें इस दमन को रोकना होगा हमे यूएपीए को ख़त्म करने की मांग करनी होगी। किसी को भी ऐसा सहन न करना पड़े जो मेरे पति और परिवार को सहना पड़ रहा है।’
सामाजिक कार्यकर्ताओं की मांगें
सामाजिक संगठनों के लोगों ने इस प्रेस कांफ्रेंस में मांग रखी कि गुलफ़िशा फातिमा, इशरत जहां, तस्लीम अहमद, मीरान हैदर, शादाब अहमद, अतहर ख़ान, उमर ख़ालिद, ख़ालिद सैफी, ताहिर हुस्सैनौर शिफा-उर-रहमान को तुरंत रिहा किया जाए। साथ ही सीएए, एनआरसी, एनपीआर, यूएपीए, देशद्रोह के कठोर कानूनों को रद्द किया जाए। दिल्ली दंगों की जांच कर दंगों के असल गुनहगरों को जेल में डाला जाए।