पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने सोमवार को एसआई आनंद दत्ता की सजा को निलंबित कर दिया। दत्ता को 2018 के कठुआ बलात्कार मामले में सबूत नष्ट करने के लिए दोषी ठहराया गया था। इस मामले में जम्मू और कश्मीर के कठुआ क्षेत्र में बकरवाल समुदाय की आठ वर्षीय लड़की के साथ मंदिर के पुजारी और अन्य द्वारा सामूहिक बलात्कार किया गया था।
सब इंस्पेक्टर आनंद दत्ता उन छह आरोपियों में से एक हैं, जिन्हें 2018 के कठुआ बलात्कार मामले में सांजी राम (मुख्य आरोपी) से कथित तौर पर चार लाख रुपये रिश्वत लेने के आरोप में दोषी ठहराया गया था। अदालत ने जून 2019 में उन्हें सबूतों को नष्ट करने के लिए दोषी पाए जाने के बाद पांच साल के कारावास की सजा सुनाई थी। दत्ता को रणबीर दंड संहिता (आरपीसी) की धारा 201 सपठित धारा 34 और धारा 120-बी के तहत अपराध करने के लिए दोषी ठहराया गया था। इसके बाद, दत्ता ने अपनी अपील के लंबित रहने के दौरान सजा को निलंबित करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट का रुख किया।
न्यायमूर्ति तेजिंदर सिंह ढींडसा और न्यायमूर्ति विनोद एस. भारद्वाज की खंडपीठ ने सोमवार को दत्ता की शेष सजा को निलंबित करने का आदेश दिया। साथ ही उन्हें व्यक्तिगत/जमानत बांड प्रस्तुत करने पर जमानत दे दी।
दिए गए तर्क
दत्ता की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि उन्हें उपरोक्त मामले में झूठा फंसाया गया। अभियोजन द्वारा लगाए गए आरोपों की किसी भी भौतिक विवरण में पुष्टि नहीं की गई है। यह ङी तर्क दिया गया कि दत्ता केवल 11.01.2018 को थानेदार थे और नियमित एसएचओ 12.01.2018 को छुट्टी से लौटे थे। जांच डीएसपी के तहत और उसके बाद अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक की अध्यक्षता में दूसरी एसआईटी के तहत की गई थी।
विभिन्न गवाहों द्वारा किए गए बयान का भी संदर्भ देते हुए कहा गया कि एसआईटी के प्रभारी के निर्देश के अनुसार कार्यवाही और जांच की गई। इसमें दत्ता की कोई भूमिका नहीं थी। इस पृष्ठभूमि में दत्ता के वकील ने आगे तर्क दिया कि किसी भी सबूत को नष्ट करने का कोई मौका नहीं था और गवाहों की गवाही जिरह में खो जाती है।
दूसरी ओर, जम्मू और कश्मीर राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता आरएस चीमा ने इस आधार पर दत्ता की याचिका का विरोध किया कि मामला जघन्य है और पुलिस बल का सदस्य होने के नाते आवेदक/अपीलकर्ता ने आरोपी व्यक्तियों के साथ सहयोग किया। यह आगे प्रस्तुत किया गया कि दत्ता पीड़िता के आसपास के निवासी हैं। उनकी उपस्थिति से पीड़िता के परिवार और सामान्य रूप से समुदाय से भी प्रतिक्रिया होने की संभावना है। इससे गंभीर कानून और व्यवस्था की समस्या की संभावना हो सकती है।
कोर्ट का आदेश
कोर्ट ने शुरू में इस बात पर जोर दिया कि अनुच्छेद 21 के तहत आरोपी में निहित अधिकारों को संतुलित करने की जरूरत है और बहस योग्य मुद्दे उठते हैं जिन पर मुख्य अपील की अंतिम सुनवाई के समय विचार किया जाएगा। याचिका स्वीकार करते हुए न्यायालय ने कहा “यह निर्विवाद है कि आवेदक/अपीलकर्ता को पांच साल की कुल सजा में से दो साल सात महीने और तीन दिन की वास्तविक सजा काट चुका है। इसके अलावा, यह भी विवादित नहीं है कि आवेदक/अपीलकर्ता ने 11 महीने और 14 दिनों की अवधि के लिए एक पैरोल का लाभ उठाया है। ऐसा कोई उदाहरण नहीं है कि आवेदक/अपीलकर्ता ने इस प्रकार दी गई पैरोल की रियायत का दुरुपयोग किया हो या पैरोल की अवधि के दौरान कोई अप्रिय घटना हुई हो…”
केस बैकग्राउंड
उल्लेखनीय है कि जिला एवं सत्र न्यायाधीश पठानकोट तेजविंदर सिंह ने जनवरी 2018 में जम्मू के कठुआ में आठ साल की बच्ची के साथ सामूहिक दुष्कर्म और उसकी हत्या से जुड़े जघन्य अपराध में सजा सुनाई थी। मामले के मुख्य आरोपी सांजी राम, उसके दोस्त प्रवेश कुमार और एक विशेष पुलिस अधिकारी दीपक खजूरिया को रणबीर दंड संहिता (आरपीसी) की धारा 302 के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। इन्हें सामूहिक दुष्कर्म के अपराध में आईपीसी की धारा 376डी के तहत अलग-अलग 25 साल कैद की सजा भी सुनाई गई है।
चार्जशीट के मुताबिक, साल 2018 में 10 जनवरी को अगवा की गई आठ साल की बच्ची के साथ कठुआ जिले के एक छोटे से गांव के मंदिर में चार दिन तक बेहोश करने के बाद कथित तौर पर बंधक बनाकर दुष्कर्म किया गया। इसके बाद उसकी मौत हो गई।
यह ध्यान दिया जा सकता है कि वकीलों द्वारा बाधा और राज्य में अभियुक्तों द्वारा प्राप्त विशेष स्थिति का स्वत: संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई को पड़ोसी राज्य पंजाब के पठानकोट में स्थानांतरित करने का आदेश दिया था। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि मामले के आरोपियों को कठुआ से पंजाब के गुरदासपुर जेल में शिफ्ट किया जाए।
सभार लाइव लॉ