रेहान फज़ल
बात सन 1925 की है। आठ डाउन पैसेंजर गाड़ी के दूसरे दर्जे के डिब्बे में अशफ़ाकउल्ला, शतीद्रनाथ बख़्शी और राजेंद्र लाहिड़ी सवार हुये। उन्हें ये काम सौंपा गया था कि वो निश्चित स्थान पर ज़ंजीर खींच कर ट्रेन खड़ी करवा दें।बाकी सात लोग: रामप्रसाद बिस्मिल, केशव चक्रवर्ती, मुरारी लाल, मुकुन्दी लाल, बनवारी लाल, मन्मथ नाथ गुप्त और चंद्रशेखर आज़ाद उसी ट्रेन के तीसरे दर्जे के डिब्बे में सवार थे। उनमें से कुछ को गार्ड और ड्राइवर को पकड़ने को काम सौंपा गया था जबकि बाकी लोगों को गाड़ी के दोनों ओर पहरा देने और ख़ज़ाना लूटने की ज़िम्मेदारी दी गई थी।
जिस समय गाड़ी की ज़ंजीर खींची गई, तब अँधेरा हो चला था। गार्ड और ड्राइवर को पेट के बल लिटा दिया गया और तिजोरी को ट्रेन से नीचे गिरा दिया गया। तिजोरी काफ़ी वज़नी और मज़बूत थी। हथौड़ों और छेनी से उसे तोड़ा जाने लगा। अशफ़ाकउल्ला के हथौड़ै की मार से ये मज़बूत तिजोरी भी मुँह खोलकर अंदर का ख़ज़ाना उगलने के लिए विवश हो गई। तिजोरी में नक़द रुपये बहुत थे। इसलिए उनको गठरी में बाँधा गया और क्राँतिकारियों ने पैदल ही लखनऊ की राह पकड़ी।
शहर में घुसते ही ख़ज़ाना सुरक्षित स्थान पर रख दिया गया। उन लोगों के ठहरने के जो ठिकाने पहले से तय थे, वो वहाँ चले गए। लेकिन चंद्रशेखर आज़ाद ने वो रात एक पार्क में ही बैठकर बिता दी। सुबह होते ही ‘इंडियन टेली टेलीग्राफ़’ अख़बार बेचने वाला चिल्लाता सुना गया कि ‘काकोरी के पास सनसनीख़ेज डकैती।’ इस ट्रेन डकैती से ब्रिटिश शासन बौखला गया। गुप्तचर विभाग के लोग सजग होकर उन सभी लोगों पर निगरानी रखने लगे जिनपर क्राँतिकारी होने का शक़ था।
47 दिन बाद यानी 26 सितंबर, 1925 को उत्तर प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर छापे मार कर गिरफ्तारियां की गईं। इनमें से चार लोगों को फांसी पर चढ़ा दिया गया। चार को कालापानी की उम्रकैद की सजा सुनाई गई और सत्रह को लंबी कैद की सजा मिली।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)