राम पुनियानी का लेख: कैराना से ‘पलायन’ समाज को बांटकर वोट कबाड़ने की कवायद

सन 2014 के लोकसभा चुनाव के ठीक पहले, उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर में भड़के सांप्रदायिक हिंसा के दावानल में 80 मुसलमान मारे गए थे और हज़ारों को अपने घर-गांव छोड़कर भागना पड़ा था। ऐसा लगता है कि उत्तरप्रदेश में सन 2017 में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर, भाजपा ने अपनी दंगा भड़काऊ मशीनरी को पुनः सक्रिय कर दिया है।

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कैराना लोकसभा चुनाव क्षेत्र से निर्वाचित भाजपा सांसद हुकुम सिंह ने हाल में यह दावा किया कि उत्तरप्रदेश के मुस्लिम-बहुल कैराना शहर से सैंकड़ों हिंदू परिवारों को मजबूरी में पलायन करना पड़ा है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने इलाहाबाद में 12-13 जून, 2016 को आयोजित पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में इस मुद्दे को उठाकर राष्ट्रीय स्तर पर सनसनी फैलाने की कोशिश की। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी बैठक में भाषण दिया परंतु जैसी कि परंपरा सी बन गई है, उन्होंने केवल विकास की बात की और सांप्रदायिकता की आग भड़काने का काम शाह पर छोड़ दिया। प्रदेश की समाजवादी पार्टी सरकार पर हमला बोलते हुए षाह ने आह्वान किया कि राज्य की जनता को ऐसी पार्टी की सरकार को उखाड़ फेंकना चाहिए जो कैराना से ‘‘पलायन’’ रोकने में असफल रही है।

बैठक में भाजपा नेताओं ने कश्मीरी पंडितों के ‘‘पलायन’’ की ओर इशारा करते हुए कहा कि कैराना, दूसरा कश्मीर बनने की राह पर है। हुकुम सिंह ने ऐसे 346 हिंदू परिवारों की सूची जारी की, जो उनके अनुसार कैराना छोड़कर चले गए थे। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से भी इसकी शिकायत की गई और आयोग ने तुरंत राज्य सरकार को नोटिस जारी कर दिया।

बैठक के अगले दिन, हुकुम सिंह अपनी बात से कुछ पीछे हटते दिखे। उन्होंने कहा कि ‘‘मेरी टीम के किसी सदस्य ने गलती से हिंदू परिवार शब्द का उपयोग कर दिया। मैंने उसे बदलने को कहा था। मैं अपनी इस बात पर कायम हूं कि यह हिंदू-मुस्लिम मसला नहीं है। यह केवल उन लोगों की सूची है, जिन्हें मजबूरी में कैराना छोड़कर जाना पड़ा है।’’

दो बड़े राष्ट्रीय अखबारों ने सूची की पड़ताल की। उत्तरप्रदेश सरकार ने भी मामले की जांच के आदेश दिए। समाचारपत्रों की पड़ताल से यह जाहिर हुआ कि ‘‘सूची में ऐसे लोगों के नाम हैं जो मर चुके हैं, जो दस साल या उससे भी पहले कैराना छोड़कर चले गए थे और ऐसे लोगों के भी, जिन्होंने बताया कि वे अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए अच्छे स्कूल या अच्छी नौकरी की तलाश में दूसरे शहरों में जा बसे हैं’’ (द इंडियन एक्सप्रेस, 14 जून, 2016)। ऐसा आरोप लगाया जा रहा है कि मुस्लिम गुंडों के गिरोह हिंदुओं को आतंकित कर रहे हैं। इनमें से एक नाम मुकीम काला नामक अपराधी के गिरोह का बताया जा रहा है। दिलचस्प यह है कि जब काला को पिछले साल गिरफ्तार किया गया था, तब उस पर 14 व्यक्तियों की हत्या के आरोप थे। इनमें से 11 मुसलमान और 3 हिंदू थे। स्थानीय प्रशासन ने जब सूची की जांच की तो उसने पाया कि 119 व्यक्तियों में से 66 पांच साल पहले ही अपने घर छोड़ गए थे (हिंदुस्तान टाईम्स, 14 जून, 2016)।

भाजपा क्या करना चाह रही है, यह समझना मुश्किल नहीं है। वह उत्तरप्रदेश के एक मुस्लिम-बहुल इलाके से हिंदुओं के कथित पलायन को मुद्दा बनाकर भावनाएं भड़काना चाहती है। आग में घी डालने के लिए उसने इसकी तुलना कश्मीर घाटी से पंडितों के पलायन से करनी शुरू कर दी है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सत्ताधारी दल के ज़िम्मेदार नेता एक ऐसे व्यक्ति के दावे के समर्थन में सार्वजनिक वक्तव्य जारी कर रहे हैं, जो स्वयं अपनी बात से पीछे हट रहा है।

सच यह है कि मुंबई और अहमदाबाद जैसे शहरों में सुनियोजित ढंग से मुसलमानों को उनकी बस्तियों में कैद कर दिया गया है। सन 1992-93 की मुंबई हिंसा के बाद इस प्रक्रिया में तेज़ी आई। मुम्बरा, भिंडी बाज़ार व जोगेश्वरी ऐसे इलाकों में शामिल हैं, जहां मुसलमानों की आबादी केंद्रित हो गई है। शहर के बाकी इलाकों में बिल्डरों ने मुसलमानों को मकान बेचना और किराए पर देना बंद कर दिया है। अहमदाबाद में हालात इससे भी खराब हैं। वहां जुहापुरा जैसी कई ऐसी बस्तियां बस गई हैं जहां केवल मुसलमान रहते हैं। इन बस्तियों को सांप्रदायिक तत्व ‘मिनी पाकिस्तान’ बताते हैं और वहां नागरिक सुविधाओं का नितांत अभाव है।

कैराना के पड़ोस में स्थित मुजफ्फरनगर में सांप्रदायिक हिंसा के बाद मुसलमानों का बड़े पैमाने पर पलायन हुआ था। वहां लवजिहाद के मुद्दे का इस्तेमाल सांप्रदायिक तनाव पैदा करने के लिए किया गया था। एक भाजपा विधायक ने सोशल मीडिया पर ऐसी वीडियो क्लिप अपलोड की, जिसमें मुसलमानों की एक भीड़ को दो युवकों की पीट-पीटकर हत्या करते हुए दिखाया गया था। बाद में यह सामने आया कि यह क्लिप पाकिस्तान की थी। इसके बाद कई महापंचायतें आयोजित की गईं, जिनमें ‘‘बहू-बेटी बचाओ’’ अभियान षुरू करने की बात कही गई।

मुजफ्फरनगर में हुई भयावह हिंसा में बड़ी संख्या में मुसलमानों के घर नष्ट कर दिए गए। कई गांवों को मुस्लिम-मुक्त क्षेत्र बना दिया गया।

उत्तरप्रदेश में गौमांस के मुद्दे पर भी हिंसा भड़काई गई और मोहम्मद अखलाक नाम के आदमी की खून की प्यासी भीड़ ने पीट-पीटकर जान ले ली। घटना के आठ महीने बाद, अब एक दूसरी लेबोरेटरी में की गई जांच के आधार पर यह दावा किया जा रहा है कि अखलाक के घर से जो मांस मिला था, वह गाय का था। इस मुद्दे पर महापंचायतों को फिर से सक्रिय करने की कोशिश की जा रही है।

कुछ टीवी चैनल और समाचारपत्र, कैराना के मुद्दे पर आधारहीन दुष्प्रचार कर रहे हैं। इससे सांप्रदायिकता का ज़हर और फैल रहा है। येल विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक अध्ययन से यह सामने आया था कि जिन भी इलाकों में सांप्रदायिक हिंसा होती है, वहां भाजपा को चुनावों में फायदा होता है। कैराना से कथित पलायन की बात भी वोट की राजनीति का हिस्सा है। यह देखना बाकी है कि मीडिया द्वारा हुकुम सिंह के दावे के झूठ को बेनकाब किए जाने के बाद, भाजपा इस मुद्दे पर कायम रहती है या उससे पीछे हटती है।

(मूल अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)