नई दिल्लीः मनसुख मंडाविया भारत के नए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री बनाए गए हैं। 49 वर्षीय मंडाविया गुजरात से राज्यसभा सांसद हैं। मंडाविया के स्वास्थ्य मंत्री बनते ही गूगल पर उनके परिवार, निर्वाचन क्षेत्र, शिक्षा और बायोडेटा की खोज शुरू हो गई। कुछ गड़े मुर्दे भी उखाड़े गए और लोगों ने पुराने ट्वीट में अंग्रेज़ी को लेकर मज़ाक बनाना शुरू कर दिया। मंसुख मंडाविया पर तंज करते हुए युवा पत्रकार एंव कथाकार कृष्णकांत ने लिखा कि अगर उन्हें अंग्रेज़ी नहीं आती तो अंग्रेज बनने की क्या जरूरत है।
कृष्णकांत ने सोशल मीडिया पर टिप्पणी करते हुए लिखा कि अंग्रेजी नहीं आती तो कोई बात नहीं। रवीश कुमार को भी नहीं आती। वे अपने कार्यक्रम में बता देते हैं, ट्विटर पर मुनादी कर देते हैं। हिंदी में लिखते हैं और अपना काम बखूबी करते हैं। हमको भी नहीं आती, इसलिए हम भी सिर्फ हिंदी में लिखते हैं। मंत्री को भी नहीं आती तो कोई बात नहीं। लेकिन फिर उनकी अंगरेज बनने की क्या मजबूरी है? उन्हें बेसिक इंग्लिश भी नहीं आती तो जो भाषा आती है, वही बोलें, लिखें। अपनी मातृभाषा में बोलना-लिखना अपमान की बात नहीं है। मंत्री जी नेता बन गए पर उन्हें इतनी सी बात भी नहीं पता है।
उन्होंने कहा कि दिक्कत इस बात से नहीं हो सकती कि किसी को कोई भाषा नहीं आती। भारत में डेढ़ हजार भाषाएं हैं। भाषा के मामले में भारत बहुत समृद्ध है और हम भारतीय इस मायने में दरिद्र हैं कि हम अपनी सब भाषाएं नहीं सीख सकते। लेकिन दिक्कत इस बात से है कि ऐसे अनपढ़ों के हाथ में देश का मुस्तकबिल है।
कृष्णकांत ने कहा कि भारत में जब ये नियम बना था कि निरक्षर आदमी भी पीएम बन सकता है, तब पूरा भारत निरक्षर था। तब हम 1947 में थे। तब हम ज्यादातर मामलों में काम चला रहे थे। अब हम 21वीं सदी में हैं। हमारे मंत्री और नेता 140 करोड़ लोगों का वर्तमान और भविष्य तय करते हैं। जिस मंत्री की अपनी डिग्री संदिग्ध है, उसे एडुकेशन मिनिस्टर बनाकर करोड़ों बच्चों का भविष्य उसके हाथ मे दे दिया जाता है। फिर वह घूम-घूम कर बच्चों से लड़ता है और कैम्पसों में देशद्रोही खोजता फिरता है। ऐसी अनमोल मूर्खता को पार्टियां देश पर न थोपें। अपने लिए संरक्षित रखें। देश को अब इससे निजात पाने का समय है।
कथाका कृष्णकांत ने कहा कि कोई नहीं पढ़ सका तो ये उसकी गलती नहीं है। इसके लिए किसी को अपमानित नहीं किया जा सकता। लेकिन ये भी ठीक नहीं है कि अनपढ़ों को सरकार में भर दिया जाए और देश उन्हें ढोये। अनपढ़ और अयोग्य आदमी जितना ताकतवर होगा, उतनी ही तबाही लाएगा। उसे पता कुछ होगा नहीं, और जोश में आकर नोटबंदी कर देगा। वो तो कर देगा लेकिन तबाह होगी जनता। तबाह होगा देश। अयोग्य लोगों के हाथ में ताकत देने पर क्या होता है, इसका सबसे बड़ा प्रमाण आपकी मौजूदा अर्थव्यवस्था है। वे कुछ बना तो सकते नहीं, जो कुछ दशकों में अर्जित किया गया है, उसे भी लीप देते हैं।