अटॉर्नी जनरल का पदनाम बदलकर अटॉर्नी झुठलर करने का वक्त आ गया है। क्योंकि उनका काम कोर्ट में देश के लिए दलील देना नहीं, सरकारी झूठ पेश करना रह गया है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में राफेल और सीएए की तरह इस बार भी झूठ बोला। ऐसा लगता है कि झूठ बोलने के लिए चुनावी मंच और ट्विटर कम पड़ गए हैं। सरकार जब भी कोर्ट पहुंचती है, झूठ का पुलिंदा लेकर ही पहुंचती है। सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने ऐसा प्रदर्शित करने की कोशिश की कि ये आंदोलन दो-तीन राज्यों तक ही सीमित है। लेकिन इसकी हकीकत सबको पता है।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हमें बताया गया है कि दक्षिण में इसे सपोर्ट मिल रहा है। इस पर किसान पक्ष के वकील ने कहा कि वहां इसके विरोध में रोज मार्च निकाले जा रहे हैं। किसान आंदोलन पंजाब से शुरू हुआ था। बाद में इसमें हरियाणा भी शामिल हो गया। किसानों के दिल्ली कूच करने के वक्त से लेकर अब तक इस आंदोलन में लगभग सभी राज्यों के किसान शामिल हैं।
पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तराखंड के किसान आ चुके हैं। इनकी संख्या कम ज्यादा हो सकती है। परसों केरल के भी कुछ किसान आंदोलन में पहुंचेंगे। शुरुआत में सरकार और मीडिया ने प्रचारित किया कि आंदोलन में सिर्फ दो राज्यों के किसान शामिल हैं। आईटीसेल वाले पूछ रहे थे कि बाकी को नहीं दिक्कत है, सिर्फ इन्हीं को क्यों दिक्कत है? अब जब अन्य राज्यों के किसान भी इसमें आ चुके हैं और आ रहे हैं, तो मीडिया उसी जोश से ये नहीं छाप रहा है कि ये आंदोलन देशव्यापी हो चुका है।
एक और झूठ बोला गया कि इस कानून पर बाकायदा रायशुमारी हुई है। जबकि सच्चााई सबको पता है कि कोरोना लॉकडाउन की आड़ में अध्यादेश लाकर ये कानून पारित कराए गए और उसी दौरान पंजाब में आंदोलन शुरू हो गया था। बाकी एक शाश्वत झूठ ये तो है ही इससे किसान ‘आत्मनिर्भर’ हो जाएंगे। सरकार को चाहिए कि जहां जहां ‘सत्यमेव जयते’ लिखा है, वहां वहां लिखवा दें ‘झूठमेव जयते’। झूठ ही अब राष्ट्रीय सत्य हो गया है।
(लेखक कथाकार एंव पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)