लखनऊ: बीते रोज़ असदउद्दी ओवैसी और राजभर के जौनपुर और आज़मगढ़ दौरे के दौरान की इस तस्वीर को देखने के बाद मुझे आज़ादी के वक़्त इतिहास की एक घटना याद आगयी,जिसे देश के हर नौजवान को ज़रूर जानना चाहिये।
19 वीं सदी के आख़ीर और 20 वीं सदी के शुरू में जब दलितों पर शदीद ज़ुल्म हो रहे थे, उन्हें अछूत के नाम पर अपने पास फ़टकने नहीं दिया जाता था,और तरह तरह के ज़ुल्म उनके साथ होने लगे,तब ज्योतिबा फ़ूले और तमिलनाडु से प्रियार जैसे नेता उठे और दलितों को बराबरी का हक़ दिलाने की लड़ाई शुरू किये,बाद में जिसकी कमान डॉ. भीमराव अंबेदकर ने संभाली।याद रहे इन नेताओं की इस लड़ाई में इनका साथ सिर्फ़ और सिर्फ़ उस वक़्त मुसलमानों ने दिया।
1932-33 गोलमेज़ सम्मेलन जिसकी अध्यक्षता भारत की तरफ़ से गाँधी जी कर रहे थे, के आखरी फ़ैसलाकुन दौर में ब्रिटिश पार्लियामेंट में ब्रिटिश क़ानून मेकर्स के सामने डॉक्टर अम्बेदकर ने पूरे एक घंटे की तक़रीर में ये सिद्ध कर दिया कि दरअसल जिसे हम दलित,एस.सी.एस.टी, या अछूत कहते हैं वो हिन्दू नहीं है, जिसतरह इस देश में मुसलमान, सिक्ख, ईसाई, बौद्धिष्ट, जैन एक अलग क़ौम हैं, उसी तरह ये भी एक अलग क़ौम हैं, वो हिन्दू नहीं हैं, उन्हें सेपरेट इलेक्ट्रोलर का हक़ हासिल है,ये अछूत (उस वक़्त की भाषा) अनटच्चेबुल हैं,दरअसल हिन्दू ब्राम्हणवाद की राजनीति की उपज का एक पोलिटिकल नाम है,हिन्दू नाम का कोई मज़हब है ही नहीं,मज़हब तो सनातन है, चारों वेदों,गीता,रामायण और उपनिषद में कहीं भी हिन्दू लफ्ज़ का ज़िक्र ही नहीं है, हर जगह सनातन धर्म का ज़िक्र है जिसके अपने मानने वाले हैं और वो मिज्योरिटी नहीं बल्कि माइनॉरिटी हैं। ब्रिटिश क़ानून मेकर्स डॉक्टर अम्बेदकर की इस एक घंटे की तक़रीर से मुतमइन हो गये और ये डॉक्टर अम्बेदकर ने सिद्ध कर दिया कि दलित,एस.सी.एस.टी हिन्दू नहीं हैं उन्हें सेपरेट इलेक्ट्रोलर का हक़ हासिल है।
गाँधी जी यही नहीं चाहते थे, वो उठे और सादे क़ाग़ज़ पर दस्तख़त कर के गोलमेज़ सम्मेलन में शामिल मुस्लिम लीडरों के पास पहुँचे और सादा दस्तख़त किया हुआ क़ाग़ज़ रखकर बोले, इस सादे क़ाग़ज़ में मुसलमानों की जितनी माँगें हो आप लोग भर लीजिये मैं भारत चलकर सारी मांगें नेशनल कॉंग्रेस में पास करवा दूँगा, लेकिन मेरी हाथ जोड़ के गुज़ारिश है कि आप लोग डॉक्टर अम्बेदकर का साथ मत दीजिये, इस क़ानून पर आप लोग अम्बेदकर के पक्ष में साइन मत करिये।
क़ुर्बान जाइये उन मुस्लिम लीडरों पर जिन्होंने गाँधी जी की इस पेशकश को ये कहकर ठुकरा दिया कि गाँधी जी हम आपका बहुत सम्मान करते हैं लेकिन ये डॉक्टर अम्बेदकर और उनकी क़ौम के हक़ की लड़ाई है।और उस गोलमेज़ सम्मेलन में बनने वाले ब्रिटिश क़ानून पर मुस्लिम लीडरों शौक़त अली, ज़फ़रुल्लाह ख़ान, नवाब खतौदी, और आग़ा खान ने डॉक्टर अम्बेदकर के पक्ष में दस्तख़त कर दिया.! इसी गोलमेज़ सम्मेलन से वापस आने के बाद बंगाल में पहली बार गऊ (गाय) के नाम पर हिन्दू-मुस्लिम दंगा शुरू हुआ।फ़िलहाल बात लंबी है आगे क्रमशः फिर कभी।
असल बात ये है कि नौजवानों इस राजनीतिक खेल को समझो।देश में हिन्दू-मुसलमान इस लिये होता है ताकि ब्राम्हणवाद की राजनीति करने वाली आरएसएस और दूसरी पार्टियाँ राजनीतिक कुर्सियों और सत्ता का सुख भोग सकें।देश के दंगों का इतिहास उठा लीजिये जहाँ किसी ब्राम्हण ने किसी मुसलमान को मारा या क़त्ल किया हो हर जगह दंगों में दलित पिछड़ों ने ही मुसलमानों को मारा है मतलब साफ़ एक तीर से दो निशाना एक तो मुसलमानों के लिये नफ़रतें पैदा करना, दूसरा पिछड़ों और दलितों को हिन्दू बनाकर अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंक कर सत्ता पर बने रहना।
कल ओवैसी और राजभर के जौनपुर और आज़मगढ़ के दौरे के दौरान मुसलमानों पिछड़ों और दलितों का एक साथ खड़ा होना महात्मा गाँधी के आज के 80 साल पहले के उस डर को सच साबित कर रहा है और सच तो ये है कि यही डर तुम्हारी जीत है।
अब होना ये चाहिये कि सपा मुखिया आख़िलेश यादव भी अपना दिल बड़ा करें और इस गठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ें, क्योंकि 1992 से लेकर आजतक मुसलमानों ने 4 बार उनकी पार्टी को मुख्यमंत्री की कुर्सी दिलाई और उनका साथ दिया, अब वक़्त आगया है कि मुसलमानों, दलितों और पिछड़ों को उनका हक़ और इंसाफ़ दिलाने के लिये आख़िलेश इस गठबंधन का साथ दें वरना बात अब बहुत आगे बढ़ चुकी है, प्रदेश की राजनीति आने वाले 2022 के चुनाव में कौन सा रुख़ अख़्तियार करेगी, कुछ नहीं कहा जा सकता।
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