कृष्णकांत
क्या जवान इसलिए शहीद होते हैं कि उनकी बेवाएं जीवन भर आंसू बहाएं और नेता वोटबैंक की घिनौनी राजनीति करे? आज ही दिन पिछले साल भारत मां के 40 बेटे कश्मीर में शहीद हो गए थे। शहीद होने वाले बहादुरों के प्रति जनता के मन में अपार श्रद्धा है और देश अपने तरीके से शहीदों को श्रद्धांजलि दे रहा है। पर सवाल है कि जिन्होंने पोस्टर लगाकर शहीदों के नाम पर वोट मांगे थे, वे आज क्या कर रहे हैं? सेना को राजनीति में न घसीटने की गरिमापूर्ण परंपरा तोड़कर जिन्होंने सेना को चुनावी मुद्दा बनाया, उन्होंने आज तक इन शहीदों के लिए क्या किया?
इलाहाबाद के शहीद महेश यादव की विधवा अंजू देवी को अभी सरकारी मदद पहुंचने का इंतजार है। जाने क्या-क्या वादा किया गया था लेकिन परिवार को फूटी कौड़ी नहीं मिली। शहीद महेश के परिवार को न पेंशन, न नौकरी, न कोई मुआवजा। बच्चों की पढ़ाई तक का इंतजाम नहीं किया गया, न उन्हें कोई मुआवजा राशि मिली। अंजू देवी का कहना है कि सरकार के सब दावे खोखले हैं। हिंदुस्तान की रिपोर्ट कहती है कि परिवार भुखमरी के कगार पर है। शहीद के पिता राजकुमार का कहना है कि शहीद के नाम पर राजनीति तो की गई लेकिन परिवार के लिए जो भी वादे किए गए, वह एक साल पूरा होने के बाद भी पूरे नहीं हुए।
महेश की मां शांति देवी ने बताया कि वादे तो बहुत थे लेकिन अब तक एक भी वादा पूरा नहीं हो पाया है। इसी तरह आगरा के जवान कौशल कुमार रावत भी इस हमले में शहीद हुए थे। कौशल की मां की आंख के आंसू तो अभी सूखे नहीं, उन्हें ठगा भी गया। आज तक कौशल के परिवार को कोई मुआवजा नहीं दिया गया। शहीदों को लेकर जितने वादे किए गए, जितने आश्वासन दिए गए थे, सब झूठे थे। शहीद कौशल की बूढ़ी मां सुधा रावत आंख में आंसू भरे दफ्तरों के चक्कर लगा रही हैं।
शहीद की मां सुधा कहती हैं कि उन्हें न तो केंद्र सरकार से कोई मदद मिली, न ही किसी और ने कोई मदद की। कोई उनका हाल पूछने तक नहीं गया। जब बेटे की अंतिम यात्रा निकली थी, तब बड़े-बड़े अधिकारी, नेता आए थे। सबने बड़े-बड़े वादे किए थे। लेकिन एक साल पूरा होने वाला है, कोई वादा पूरा नहीं हुआ। योगी सरकार ने 25 लाख रुपये देने का वादा किया था लेकिन एक कौड़ी नहीं दी गई। शहीद कौशल का परिवार अपनी खुद की जमीन पर ग्राम पंचायत की मदद से स्मारक बनवा रहा है।
बीते अक्टूबर में आरटीआई से पता चला कि इन 40 शहीदतों से 40 परिवार उजड़े थे। उन परिवारों में से सिर्फ 12 को राज्यों की तरफ से नौकरी की पेशकश की गई। केंद्र ने इन्हें कुछ नहीं दिया। पुलवामा हमले के बाद मारे गए जवानों के परिवारों को आर्थिक मदद पहुंचाने के लिए एक राहत कोष बना था “वीर भारत कोर”। आरटीआई से पता चला कि अगस्त 2019 तक इस कोष के फंड में कुल 258 करोड़ रुपये जमा थे। कोई नहीं जानता कि इस पैसे का सरकार ने क्या किया?
दुर्भाग्य से सियासत ने इन शहादतों का न सिर्फ चुनावी लाभ लिया, बल्कि इतिहास में पहली बार बेशर्मी से चुनावी पोस्टर लगाए गए थे। सीमा पर कभी कोई नेता शहीद नहीं हुआ, फिर आप उसे शहीद की चिता पर राजनीति करने की इजाजत क्यों देते हैं? मोदी ने पुलवामा पर माहौल बनाकर वोट लिया और कुर्सी हासिल की, लेकिन शहीद कौशल कुमार और महेश की मां को, बीवी को, उनके बच्चों को क्या मिला? क्या आप इस सरकार से सवाल पूछने की हिम्मत करेंगे कि वह शहीदों के साथ ऐसा धोखा और मजाक क्यों कर रही है?