विक्रम सिंह चौहान
जगजीत सिंह को सुनते हुए महसूस किया जा सकता है कि उनकी गज़ल और गीत अंतरात्मा से निकले हैं।उनको दुनिया से गए 8 साल हो गए हैं,लेकिन मुझे लगता है जगजीत सिंह की आवाज़ मेरी जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है।मैं तो खुश रहकर भी उनको सुनने के लिए दुखी हो जाना चाहता हूँ। लेकिन जगजीत सिंह से जुड़ा ही मेरे एक दोस्त की कहानी भी रोंगटे खड़े कर देने वाली और रुलाने वाली है। रायपुर में मेरे एक मित्र थे। प्रिंटिंग का काम करते थे। कलाकार आदमी थे। बेहद नेकदिल इंसान और मुस्कुराता हुआ चेहरा था उनका। मैं उनको भैया कहकर ही बुलाता था,एक सरकारी प्रोजेक्ट पूरा करने के दौरान वे लंबित भुगतान के लिए हमारे ऑफिस आते थे।सरकारी भुगतान था तो जितना दिन लटका सकते थे,मेरे उच्च अधिकारी लटकाते थे।इसी बहाने उनसे मेरी दोस्ती हुई और हम चाय काफी साथ पीने लगे।मेरे पास माइक्रोमैक्स का बड़ा फ़ोन हुआ करता था और चिप में बहुत चीप गाने भरा रहता था।
उनमें से सिर्फ 7-8 गाने सुनने लायक था। इसी दौरान भैया ने मुंझे कहा कि आप जगजीत सिंह को क्यों नहीं सुनते,मैंने कहा सुनता तो हूँ कागज़ की कश्ती,बारिश का पानी…। भैया ने कहा सिर्फ एक? और फिर उन्होंने मुझे जगजीत सिंह के गज़लों का एक पिटारा चिप में दे दिया। भैया ने गीत तो दिया साथ ही जगजीत सिंह के साथ घटे दर्दनाक हादसा के बारे में भी बताया कि कैसे उनके इकलौते बेटे की मृत्यु के बाद जगजीत सिंह सदमे में चले गए और फिर इन गीतों को गाया। जब भी भैया मिलते अक्सर पूछते आपने “फूल भरे हैं दामन दामन, लेकिन मेरा गुलशन गुलशन” सुना है? इसी तरह जब भी मिलते एक अलग गीत के बारे में पूछते। मैं झूठ बोल देता था हाँ भैया। फिर उसी दिन सुन लेता था।वे बोलते थे जब कोई अपना बिछड़ जाए तो जो रचना होती है वह सुना जाना चाहिए।
इस तरह से एक दिन सरकारी नौकरी से मैंने विदा लिया और उस ऑफिस से दूर होकर पत्रकारिता में आ गया।दिन बीतते गए और मैं शहर से दूर हो गया।एक दिन दैनिक भास्कर अखबार का एक पन्ना मेरे हाथ में ठहर गया। अखबार में खबर थी “जवान युवक की हार्ट अटैक से मौत”।जब अंदर खबर पढ़ी तो पता चला यह युवक कोई और नहीं मेरे मित्र का इकलौता बेटा था। वह बाथरूम में अचानक गिर गया और फिर डॉक्टर तक ले जाते वह दुनिया से चला गया था।मैं सन्न रह गया था। फिर एक दिन मेरा रायपुर वापस लौटना हुआ।
मेरी हिम्मत तो नहीं थी लेकिन फिर भी भारी कदमों से मैं भैया के ऑफिस तक गया। एक कोने की कुर्सी में गुमसुम सा एक इंसान।हल्की आवाज़ में लोगों से बात करते हुए,आंखें एकदम नीचे की ओर जमीन तक घुस जाने की जिद में।कल तक टी शर्ट जीन्स में रहने वाला इंसान एक पल में बुजुर्ग हो गया था। मुझे उनकी उम्र भी उस दिन पता चल गया मेरे भैया 60 साल के हैं। ऐसा लगा जगजीत सिंह तो यही हैं। उनकी आंखें इतनी रो चुकी थीं कि अब कुछ शेष नहीं था। लग रहा था अब इस दुनिया से उनको कोई मतलब नहीं हैं। वे बस कहीं जाने की जल्दी में हैं।
एक दिन फिर एक अखबार का पन्ना हाथ में था और निधन कॉलम में भैया का ब्लैक एंड वाइट फ़ोटो के साथ नाम था। वे हम सबको छोड़ चले गए।वे अपने बेटे की मौत के सदमे से उबर नहीं पाए।अब जब भी मैं जगजीत सिंह को सुनता हूँ तो भैया साथ याद आते हैं। कुछ लोग आपके रिश्तेदार नहीं है,आपके फेसबुक मित्र नहीं है,आपसे रोज नहीं मिलते लेकिन आपकी जिंदगी में अहम स्थान रखते हैं। असली दुनिया के लोग। इन लोगों को याद किया कीजिये। जिंदा इन्हीं लोगों के सहारे होते हैं हम। जगजीत सिंह और मेरे भैया को श्रद्धांजलि।