दिल्ली-6 की एक बेहद खास शख्सियत का नाम जफर जंग था। जफर जंग साहब पुरानी दिल्ली की आन बान शान, रवादारी, वाजादरी, खुश मिजाज़ अखलाक के मालिक थे। वे दिल्ली की फुटबॉल पर जान निसार करते थे। उन्होंने दिल्ली के मशहूर सिटी क्लब की सरपरस्ती की थी। जफर जंग शाहजहांबाद के सबसे पुराने परिवारों में से एक से संबंध रखते थे। दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने वक्फ बोर्ड में फैली करप्शन को दूर करने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी थी। उनका रविवार को इंतकाल हो गया। वे 78 साल के थे।
उन्हें अफसोस था कि वे वक्फ बोर्ड में फैली करप्शन को दूर करने में नाकामयाब ही रहे। हालांकि वे कुछ साल पहले नोएडा में शिफ्ट हो गए थे,पर वे हर रोज सुबह दरियागंज में गोलचा सिनेमा से सटी अपनी बिल्डिंग में आ जाया करते थे। वहां पर ही उनके यारों की महफिलें सजती थी। वे कभी कभी कहते थे कि जो इंसान सारी जिंदगी दरियागंज में रहा हो उसके लिए दिन-रात नोएडा में गुजारना मुमकिन नहीं है।
उनकी महफिलों में उनके बाल सखा और कांग्रेस के नेता सुभाष चोपड़ा भी शामिल होते थे। जफर जंग के छोटे भाई नजीब जंग हैं,जो दिल्ली के उप राज्यपाल भी रहे। जफर साहब ने नजीब जंग को गोदी में खिलाया था। दोनों भाइयों के बीच उम्र में काफी अंतर था।
नजीब जंग पर क्यों करते थे फख्र जंग साहब
दिल्ली के कदम-कदम पर गांधी जी आए-गए हैं। उनके नाम पर यहां पर शिक्षण संस्थान, मोहल्ले, स़ड़कें वगैरह हैं। पर दिल्ली पुलिस के पुराने मुख्यालय की दिवार पर बना उनका सजीव चित्र अदभुत है। उसके भाव और उर्जा देखते ही बनते हैं। चूंकि यह अति व्यस्त आईटीओ पर है, इसलिए रोज लाखों लोगों की नजरें उस पर पड़ती हैं।
जफर जंग कहते थे कि जब तक उनके छोटे भाई नजीब जंग दिल्ली के उप राज्यपाल रहे तो उन्होंने उनसे कभी किसी काम के लिए नहीं कहा। लेकिन जब पुलिस हेडक्वार्टर पर गांधी जी का चित्र बना तो उन्होंने अपने भाई ( नजीब जंग) को बधाई दी। दिल्ली के उपराज्यपाल के रूप में नजीब जंग ने 30 जनवरी,2014 को पुलिस मुख्यालय में गांधी जी की 150 फुट लंबी पेंटिंग का अनावरण किया था। इस ब्लैक एंड वाइट पेंटिंग को क्रेन की मदद से जर्मन चित्रकार हैड्रिक बेकरिच ने बेहद प्रतिभावान भारतीय चित्रकार अनपु वरके के साथ मिलकर बनाया।
जर्मन चित्रकार हेंड्रिक बिकरीच और भारतीय कलाकार अंपू ने पुलिस मुख्यालय की दीवार पर चित्र बनाने का प्रस्ताव रखा था। जिसकी अनुमति नजीब जंग ने ही दी थी। करीब 150 फुट लंबे और 38 फुट चौड़े चित्र को दोनों चित्रकारों ने क्रेन की मदद से बनाया। इसे बापू की अब तक की सबसे बड़ी पेंटिंग माना जाता है। ज़फ़र साहब सच्चे गांधी वादी थे! वे मानते थे कि हिंदुस्तानी मुसलामान पढ़ने लिखने के बारे में नहीं सोचते! इस लिए उन्हें दिक्कतें बहुत आती हैं!
किसका कत्ल हुआ था गोलचा सिनेमा में
जफर जंग साहब फिल्मों के शैदाई भी थे। वे बताते थे कि गोलचा सिनेमा बनने से पहले वहां पर आबाद बिल्डिंग उनके परिवार की ही थी। वे गोलचा पर ताला लग जाने से उदास हो गए थे। उन्होंने गोलचा पर मधुमति( 1958), मुगले ए आजम ( 1960), दोस्ती(1964), गाइड (1965) हसीना मान जाएगी( 1968) जैसी फिल्मों को देखा था। वे बताते थे कि दरियागंज में जब गोलचा खुला उस वक्त इसे दिल्ली का सबसे आलीशान हॉल माना जाता था।
इसमें एयर कंडीशन था। गोलचा में बॉलकनी से लेकर मेन हॉल तक स्टीरियो साउंड, महलनुमा रेस्तरां और वॉल टू वॉल कारपेट से सुसज्जित था। जफर जंग साहब बताते थे गोलचा के एक मैनेजर की 1970 के दशक के शुरूआती दौर में विजय नाम के एक खूंखार अपराधी ने हत्या कर दी थी। हालांकि हत्या की वजह कभी साफ नहीं हो पाई।