दिल्ली के जहांगीरपुरी में बिना किसी पूर्व सूचना के बुलडोजर चलाया गया। कल्पना ये थी कि मुसलमान दंगाई हैं और उनके घरों पर बुलडोजर चलाया जाएगा। बुलडोजर आया और तमाम मकान तोड़ दिये गये।
एक गुप्ता जी चिल्लाते रहे कि मेरे पास पक्के कागज हैं। डीडीए से अलॉट की हुई पक्की दुकान है। फिर भी बुलडोजर चल गया। ऑनएयर अपने नाम के साथ मोदी लगा लेने वाली एंकरानी पहुंची तो सोनू चिल्ला रहा था कि मैडम मैं तो हिंदू हूं। मैडम ने ऑनएयर ही फरमाया, अब यहां से चलना पड़ेगा। सुमित भी कागज लेकर बदहवास इधर उधर दौड़ रहा था कि मेरे पास कागज हैं, कोई सुनवाई नहीं हुई।
जो कल मुसलमानों के कागज मांग रहे थे, आज उनके अपने पक्के कागज काम नहीं आए। आखिरकार सोनू को कहना पड़ा कि मैडम यहां तो हम सब हिंदू मुसलमान मिलजुल कर रहते हैं। मैडम चली गईं। बुलडोजर आ गया। बुलडोजर के कान नहीं होते। बुलडोजर के हृदय नहीं होता। बुलडोजर मनुष्य नहीं है। बुलडोजर पर झूमने वालों से कह दो कि बुलडोजर सिर्फ ध्वंस करता है। बुलडोजर मशीन है, जैसे चाकू मशीन है। चाहो तो सब्जी काटो, चाहो तो अपनी नाक काट लो।
भारत की सरकारें अपनी नाक काटने पर आमादा हैं। इस बच्चे को देखिए। यह भारत का नागरिक है। जिस उम्र में इसे स्कूल में होना था, यह अपने मां बाप के साथ चाय की दुकान पर था। इसकी दुकान तोड़ दी गई। यह मलबे से बचा हुआ सामान और कमाए हुए सिक्के चुन रहा है। इसके नाजुक दिमाग पर क्या असर होगा? यह बड़ा होगा और जब सरकार का मतलब समझेगा तब क्या इस दिन को भी याद करेगा? क्या यह कभी सोचेगा कि जिस देश का प्रधानमंत्री अपने को चायवाला बताते हुए झूठे किस्से सुनाता है, उसी के नियंत्रण वाली केंद्रीय पुलिस ने उसकी चाय की गुमटी तोड़ डाली?
एक तरफ भीड़ है जिसके हाथ में झंडा और पत्थर है। एक तरफ सरकार है जिसके पास उन्मादी बुलडोजर है। सरकार ने कानून को दरकिनार कर दिया है। कानून का शासन नहीं है तो बुलडोजर चलाने वाला अपराधी कैसे नहीं है? भारत दुनिया का एक महान और सबसे बड़ा लोकतंत्र रहा है। आज वह सबसे निकृष्ट देश बनने की ओर अग्रसर है। इस ‘बुलडोजर न्याय’ का विरोध कीजिए, वरना चौपट राजाओं की इस अंधेर नगरी में कल गुप्ता जी की जगह आप होंगे।
(लेखक पत्रकार एंव कथाकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)