वॉट्सएप विष-विद्यालय में गांधी को भगत सिंह के खिलाफ, नेहरू को पटेल के खिलाफ क्यों खड़ा किया जाता है? इसलिए कि आप किसी के समर्थक बनें और किसी के विरोधी। जब आप अपनी आजादी की विरासत पर उलझ जाएंगे, अपने महापुरुषों को लेकर बंट जाएंगे, तब आपसे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की विरासत आसानी से छीनी जा सकेगी। इसका असली मकसद वह है जो हरिद्वार, हरियाणा और दिल्ली में किया जा रहा है।
सरदार पटेल ने कहा था, “हमारा एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है. यहां हर एक मुसलमान को यह महसूस करना चाहिए कि वह भारत का नागरिक है और भारतीय होने के नाते उसका समान अधिकार है. यदि हम उसे ऐसा महसूस नहीं करा सकते तो हम अपनी विरासत और अपने देश के लायक नहीं हैं.” यह बात उन्होंने 1950 में एक सभा को संबोधित करते हुए कही थी। आज सरदार पटेल की एक बहुत बड़ी मूर्ति बनवा कर उनके इस सपने की हत्या कर दी गई है।
आज खुलेआम मुसलमानों के प्रति नफरत फैलाई जा रही है और कानून व्यवस्था को पंगु बना दिया गया है। क्या यह देश गांधी, नेहरू और पटेल के सपनों से गद्दारी करके महान बनने का सपना देख रहा है?
आज़ादी के बाद जवाहरलाल नेहरू बार-बार दोहरा रहे थे कि “सांप्रदायिकता को यदि खुलकर खेलने दिया गया, तो यह भारत को तोड़ डालेगी.” वे ऐसा क्यों कह रहे थे? क्योंकि वे जानते थे कि सांप्रदायिकता एक बार भारत को तोड़ चुकी है। यह ऐसा जहर है जो मनुष्य को पागल बना देता है। वह मनुष्य को भीड़ में बदल देता है। सांप्रदायिकता मनुष्य को एक हिंसक पशु से भी बुरा जंतु बना देती है। हमारे नेताओं ने इसे देखा था। इसीलिए नेहरू किसी भी कीमत पर सांप्रदायिकता को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं थे।
स्वतंत्रता संग्राम से लेकर अपनी मौत तक नेहरू ने बार-बार दोहराया कि ‘धर्मनिरपेक्ष राज्य के अतिरिक्त अन्य कोई राज्य सभ्य नहीं हो सकता।’ उन्होंने कहा, “यदि कोई भी व्यक्ति धर्म के नाम पर किसी अन्य व्यक्ति पर प्रहार करने के लिए हाथ उठाने की कोशिश भी करेगा, तो मैं उससे अपनी जिंदगी की आखिरी सांस तक सरकार के प्रमुख और उससे बाहर दोनों ही हैसियतों से लडूंगा।”
जब कांग्रेस के अंदर कुछ हिंदूवादी तत्व सिर उठाने लगे तो यह कहने साहस नेहरू में था कि “यदि आप बिना शर्त मेरे पीछे चलने को तैयार हैं तो चलिए, वरना साफ कह दीजिए। मैं प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दूंगा लेकिन कांग्रेस के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों से समझौता नहीं करूंगा। मैं अपनी हैसियत से इसके लिए लड़ूंगा।”
ऐसा कहने वाले नेहरू अकेले नहीं थे। हिंदू राष्ट्र का नारा लगाने वालों को आड़े हाथ लेते हुए सरदार पटेल ने कहा था, ‘हिंदू राज की बात करना पागलपन है।’ यह पागलपन आज अपनी सीमा पार कर रहा है और इसे सरकारी संरक्षण हासिल है।
सांप्रदायिकता कितनी खतरनाक है, इसकी झलक आप गांधी की बेबसी में, स्वतंत्रता आंदोलन के बंटवारे की असफलता में, मंटो, भीष्म साहनी जैसे लेखकों की किताबों में देख सकते हैं। जो लोग गांधी, नेहरू, भगत सिंह, आज़ाद, बिस्मिल, अशफाक और लाखों कुर्बानियों के कर्जदार हैं और उस बलिदान का अर्थ समझते हैं, उन्हें यह ज़रूर समझना चाहिए कि अपनी विरासत से कृतघ्नता और गद्दारी बहुत महंगी पड़ेगी।
भारतीय संविधान का आदर्श दुनिया की सबसे खतरनाक कीमत चुका कर हासिल किया गया है। इसका अपमान आपको कहीं का नहीं छोड़ेगा। हमारे युवाओं को आज अपने इतिहास के प्रति ईमानदार होने की जरूरत है। इतिहास का सबसे बड़ा काम है भविष्य के लिए सबक सीखना। हमें अपने स्वतंत्रता आंदोलन, उसके आदर्शों और अपने शहीदों के आदर्शों के साथ गद्दारी नहीं करनी चाहिए।
हमें नेहरू और पटेल की उस वचनबद्धता का साथ देना चाहिए कि ‘धर्मनिरपेक्ष राज्य के अतिरिक्त अन्य कोई राज्य सभ्य नहीं हो सकता।’ उन्होंने इस देश से वादा किया था कि यहां पर रहने वाला हर व्यक्ति सुरक्षित है। क्या हम इस वादे से गद्दारी करेंगे?
हमारी आज़ादी और लोकतंत्र की विरासत बहुत कीमती है, आज जिसपर संगठित हमले हो रहे हैं। यह लोकतंत्र आपका है। इसे बचाना आपकी जिम्मेदारी, आपका फर्ज है। यह आपको तय करना है कि आप इसे बर्बाद होने देंगे या फिर आप एक ऐसा हिंदू बनेंगे जो नेहरू की तरह खुलकर कहे कि यदि किसी मुसलमान पर कोई हाथ उठेगा तो मैं उससे अपनी अंतिम सांस तक लडूंगा।
गांधी, नेहरू और पटेल ने यह मुसलमानों के लिए नहीं किया था। उन्होंने एक सभ्य धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के लिए किया था। हमें या आपको भी यह मुसलमानों, सिखों, इसाइयों या किसी अन्य के लिए नहीं करना है। हमें यह अपने लिए करना है कि हम एक निकृष्ट देश नहीं चाहते, हम एक सभ्य और उदार लोकतंत्र चाहते हैं। फैसला आपका है। जय हिंद!
(लेखक युवा पत्रकार एंव कथाकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)