अपनी ज़िम्मेदारियों से पीछा छुड़ाने की जल्दी में मोदी सरकार अब कोरोना के मामले हाथ खड़े करती नज़र आ रही है?

गिरीश मालवीय

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बीते रोज़ कोरोना को लेकर जो खबर आई हैं वह बहुत ही खतरनाक है. अब स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोना संक्रमित मरीजों को अस्पताल से डिस्चार्ज किए जाने को लेकर नई नीति तैयार की है। इसके मुताबिक, अब कोरोना के हल्के या मध्यम लक्षण वाले मरीजों को ठीक होने के बाद बिना टेस्टिंग के भी डिस्चार्ज किया जा सकता है, इसके लिए शर्त यह है कि मरीजों को ऑक्सीजन की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए और उनमें लगातार तीन दिन तक बुखार नहीं होना चाहिए। हालांकि, डिस्चार्ज के बाद भी उन्हें 7 दिन के लिए घर पर ही आइसोलेशन में रहना अनिवार्य होगा।

कुल मिलाकर ऐसे मरीज को घर भेजा जा रहा है जो कोरोना का कैरियर हो सकते हैं इस बात की बिना पुष्टि किये कि उन्हें कोरोना नही है, घर भेजा जा रहा है, यह ओर खतरनाक हो सकता है. अब ठीक हो चुके मरीज को भी लोग शक की नजरों से देखेंगे कि उसे कोरोना तो नही है, साफ दिख रहा है कि यह जल्दी जल्दी हॉस्पिटल खाली कराने की कवायद है ताकि देश मे कोरोना के आंकड़े कम कर के दिखलाए जा सके, इंदौर जैसे शहरों में यह काम प्रशासन ने पहले से ही शुरू कर दिया है.

आपको यदि याद हो तो लगभग एक हफ्ते पहले क्वारैंटाइन की गाइडलाइन में बड़ा बदलाव किया था तब यह नई पॉलिसी लागू की गयी थी कि पॉजिटिव मरीज के घर वाले यानी कोरोना संदिग्ध दो पड़ोसियों की गारंटी देकर अपने ही घर में होम क्वारेंटाइन हो सकेंगे। यह कदम तब उठाया गया था जब सोशल मीडिया में क्वारैंटाइन सेंटर की अव्यवस्थाओं को लेकर सैकड़ों वीडियो एंव शिकायतें सामने आई थीं। इसके बाद वहां संदिग्ध लोगों को रखना बंद कर दिया गया।

और अब यह नया कदम उठाया जा रहा है. साफ है कि मोदी सरकार अब अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला छुड़ाने की जल्दबाजी में है, ध्यान दीजिएगा “बिना टेस्टिंग के मरीजो को डिस्चार्ज’ के कदम तब उठाए जा रहे है. जब देश के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान एम्स के निदेशक गुलेरिया बोल चुके हैं कोरोना जून जुलाई में पीक पर होगा.

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार है)