अलीगढ़ः मंगलवार 9 मार्च,2021 को तीन दिवसीय ‘अलीगढ़ साहित्य सम्मेलन'(अ.सा.स.) का औपचारिक अधिष्ठापन आभासी मंच से किया गया। कार्यक्रम का आयोजन स्टूडेंट्स इस्लामिक ऑर्गनाइजेशन,अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय क्षेत्र (एस.आई.ओ.) द्वारा राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (सी.ई.आर.टी.) की सहभागिता से हुआ। प्रथम दिवसीय कार्यक्रम का संचालन दो चरणों में विभाजित रहा। प्रथम चरण (प्रातः 11- अपराह्न 2 बजे तक) के अन्तर्गत उद्घाटन सत्र के साथ-साथ तीन संगोष्ठियों भी आयोजित की गईं।
अधिष्ठापन कार्यक्रम की शुरुआत एस.आई.ओ. के राष्ट्रीय सचिव, सैयद अहमद मुजक्किर व सी.ई.आर.टी. के निर्देशक फ़वाज़ शाहीन के व्याख्यानों के साथ हुई इसके उपरांत ‘माइनॉरिटी स्टेटस : AMU व JMI’ पुस्तक का विमोचन किया गया। मुजक्किर ने कहा कि अ.सा.स. ने अलीगढ़ की बहस-मुबहिसा, सक्रियतावाद व संवाद स्थापित करने की विरासत को अविरल बनाए रखने की ओर कार्य किया है। शाहीन ने वर्तमान समय के अन्य साहित्यिक सम्मेलनों पर टिप्पणी करते हुए उनकी संवेदनशील मुद्दे से दूरी बनाए रखने की प्रवृत्ति की ओर ध्यान आकृष्ट किया और लगभग हाशिए पर धकेले जा चुके विषयों पर अभिव्यक्ति मंच उपलब्ध कराने के लिए अ.सा.स. की सराहना की। उन्होंने अ.सा.स. द्वारा ऐसे उत्तेजक विषयों को मुख्यधारा के विमर्श से जोड़ने की संभावना की ओर भी संकेत किया जो वर्तमान में चल रहे विमर्श, मुख्यत: पहचान पर आधारित विचार-विमर्श की पूर्वनिर्धारित सीमाओं को लांघती दिखाई दे सकती है।
उद्घाटन सत्र के उपरांत कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, चैपल हिल के प्रोफेसर सेमिल आएडिन की पुस्तक ‘द आईडिया ऑफ द मुस्लिम वर्ल्ड’ पर विचार-विमर्श किया गया। चर्चा का संचालन डॉ उमर अनस ने किया। डॉ अनस ने पुस्तक की संकल्पना “पैन-इस्लामिज्म धर्म या वैचारिक संस्थाओं की अपेक्षा भौगोलिक राजनीति से अधिक संभद्ध है” से आरंभ करते हुए चर्चा को गति दी। प्रो. आएडिन अपने पुस्तक में निहित तर्कों को आधार बनाते हुए पैन-इस्लामिज्म को औपनिवेशिकता का परिणाम कहा। प्रसिद्ध टेलीविज़न श्रृंखला दिरिलिस : अर्तुगुल से संदर्भ प्रस्तुत करके प्रो. आएडिन ने मुस्लिम बौद्धिक इतिहास को औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त कराने पर ज़ोर देते हुए चर्चा का समापन किया।
इसके पश्चात “पॉपुलर कल्चर : इट्स इमरजेंस एंड चेंजिंग नेचर” विषय पर डॉ सलमान अब्बास, डॉ अरुणिमा चन्दा व ऋत्विक भट्टाचार्जी द्वारा संयुक्त पैनल के रूप में व्याख्यान प्रस्तुत किए गए। बिरसा मुंडा कॉलेज, उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय के अंग्रेज़ी विभाग की सहायक प्रोफ़ेसर डॉ चन्दा ने अपनी रचनाओं पर विचार करते हुए, पश्चिम व भारतीय परिप्रेक्ष्य में बचपन को लेकर वैचारिक विविधताओं को रेखांकित किया व मुख्यधारा के साहित्य में बालश्रम जैसे सामाजिक कलंक पर मौजूद संकीर्णता को उजागर किया। वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफ़ेसर ने अपनी प्रथम पुस्तक “ह्युमेनिटी’ज़ स्ट्रिंग्स : बींग, पेसिमिज्म एंड फैंटेसी ” पर वैचारिक आदान प्रदान किया और साथ ही पहली व तीसरी दुनिया के देशों के मध्य अनुभूतिगत विभिन्नताओं की भयावह स्थिति को भी चर्चा की परिधि में रखते हुए कार्यक्रम को गति प्रदान की।
अंतिम पैनल चर्चा का विषय विख्यात पत्रकार परंजोय गुहा ठाकुरता और फवाज़ शाहीन के मध्य रहा। ठाकुरता ने “विनिवेश” व “सहचर पूंजीवाद” जैसे विषयों की पेचीदगी को व्याख्यायित किया व “भाई-भतीजावाद” जैसे संबंधित मुद्दों से समानता पर प्रकाश भी डाला। सहचर पूंजीवाद के कारणों पर बात करते हुए ठाकुरता ने कहा, “सहचर पूंजीवाद राजनीतिक निधिकरण से आंतरिक रूप से संबद्ध है।” 1992 से पूर्व भारत के समाजवादी राष्ट्र के रूप में पहचाने जाने को लेकर शाहीन के प्रश्न के प्रत्युत्तर में ठाकुरता ने 1947 की स्वतंत्रता से पूर्व भी कांग्रेस पार्टी के सहचर पूंजीवाद से घनिष्ठ संबंधों को उजागर किया। ठाकुरता द्वारा “मैजोरिटेरियन स्टेट : हाउ हिंदू नेशनलिज़्म इज़ चेंजिंग इंडिया” पुस्तक में लिखित व्याख्यान “कोंटर्स ऑफ क्रोनी कैपिटलिज़्म इन द मोदी राज” पर संक्षिप्त विमर्श के साथ प्रथम दिवस के कार्यक्रम का समापन किया गया।