भड़काऊ भाषण और सरकार के दोहरे मापदंड

दोगला रवैय्या प्रधानमंत्री मोदी के उस कथन का भी मज़ाक उड़ा रहा है जिसमें उन्होंने सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास का दावा किया था।

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अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में विवादित नागरिकता क़ानून के विरोध में दिया गया डॉक्टर कफ़ील ख़ान का भाषण इलाहाबाद हाई कोर्ट में राष्ट्रविरोधी नहीं बल्कि राष्ट्रीय एकता का संदेश देने वाला सिद्ध हुआ था। हालांकि डॉक्टर कफ़ील ख़ान पर इसी भाषण की वजह से यूपी सरकार द्वारा एनएसए लगाया गया था। लेकिन कई महीने जेल में बिताने के बाद अदालत ने रासुका को हटा दिया, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि कफील खान का भाषण सरकार की नीतियों का विरोध था। उनका बयान नफरत या हिंसा को बढ़ावा देने वाला नहीं बल्कि राष्ट्रीय एकता और अखंडता का संदेश देने वाला था। इस निष्कर्ष पर पहुंचते हुए कोर्ट ने कफील खान को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया था। यानी कि यूपी सरकार ने जिस भाषण के आधार पर डॉक्टर कफ़ील ख़ान को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये ख़तरा मानते हुए उन पर रासुका लगाई थी, वही भाषण इलाहाबाद हाई कोर्ट में राष्ट्रीय एकता का संदेश देने वाला सिद्ध हो जाता है। अब यहां पर सिर्फ इसी वर्ष घटित घटनाओं भड़काऊ एंव नफरत फैलाने वाले वक्तव्य का संक्षिप्त विवरण दिया जाना जरूरी हो गया है जिनके आरोपियों के ख़िलाफ कोई कार्रावाई नहीं हुई।

जनवरी 2021 में मेरठ स्थित चौधरी चरण सिंह विश्विद्यालय में ‘हिंदू पंचायत’ का आयोजन किया गया, जिसमें स्वामी आनन्द स्वरूप ने क़ुरान, मुसलमानों और ईसाईयों के ख़िलाफ ज़हर उगला। क़ुरान और मुसलमानों पर अभद्र टिप्पणी की, उनके बहिष्कार का आह्वान करते हुए कहा गया कि “हिन्दुओ को स्वंयसेवक नही बल्कि स्वंयसेना बनाने के साथ साथ मुसलमानों का सामाजिक आर्थिक बहिष्कार करना होगा”। स्वामी आनन्द स्वरूप की वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुई, पुलिस ने सोशल मीडिया पर ही जवाब दे दिया। उसके बाद न तो स्वामी आनन्द स्वरूप पर होने वाली किसी कार्रावाई की ख़बर आई, और न ही चौधरी चरण सिंह विश्विद्यालय में ‘हिंदू पंचायत’ के आयोजकों पर कोई कार्रावाई हुई। हालांकि इसी दौरान आगरा की चार दशकों से स्थापित ठाकुर फुटवियर कंपनी का जूता बेचने वाले नासिर को धार्मिक भावनाएं भड़काने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। बुलंदशहर में फुटपाथ पर जूता बेच रहे नासिर की दुकान पर विशाल चौहान नाम का शख्स जूता ख़रीदने आया, लेकिन जूते पर ठाकुर लिखा देखकर वह भड़क गया, उसने इसकी शिकायत की, पुलिस ने नासिर को गिरफ्तार कर लिया। और उस पर धार्मिक भावनाएं भड़काने जैसी गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया।

 

गाज़ियाबाद से सटे डासना स्थित मंदिर के स्वयंभू महंत यति नरसिंहानंद सरस्वती की सांप्रदायिक एंव ज़हरीली वाणी को कौन नहीं जानता। मंदिर के नल से पानी पीने के ‘जुर्म’ में एक बच्चों को जानवरों की तरह पीटने वाले शख्स के बचाव एंव पैरोकारी से लेकर मुसलमानों और उनके धर्म पर अभद्र टिप्पणियों से यति नरसिंहानंद का लंबा नाता रहा है। इस स्वयंभू महंत द्वारा मुसलमानों और इस्लाम के ख़िलाफ अभद्र भाषा में अपमानजनक टिप्पणियां की जातीं रही हैं। इतना ही नहीं इस शख्स के द्वारा दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में प्रेस कांफ्रेंस करके पैगंबर-ए-इस्लाम पर अमर्यादित टिप्पणी की गई। लेकिन पुलिस प्रशासन और सरकार स्वयंभू महंत नरसिंहानंद को गिरफ्तार करने की हिम्मत तक आज तक नहीं दिखा पाईं।

गाज़ियाबाद में ही पिंकी चौधरी नाम का एक शख्स आए दिन मुसलमानों के ख़िलाफ अभद्र भाषा में टिप्पणी करता रहता है लेकिन उस शख्स को आज तक जेल नहीं भेजा गया। आठ अगस्त को दिल्ली के जंतर मंतर पर लगने वाले मुस्लिम विरोधी नारों के बाद हुई गिरफ्तारी पर 10 अगस्त को पिंकी चौधरी ने एबीपी न्यूज़ चैनल पर इस्लाम, पैगंबर-ए-इस्लाम और मुसलमानों के ख़िलाफ अभद्र भाषा का प्रयोग करते हुए टिप्पणी की लेकिन अभी तक उसके ख़िलाफ मामला दर्ज नहीं किया गया है, गिरफ्तारी और देशद्रोह जैसी धाराएं तो दूर की बात हैं।

सवाल यहीं से पैदा होता है, और यह सवाल पुलिस प्रशासन और सरकार के दोहरे रवैय्ये की पोल खोल रहा है। डॉक्टर कफ़ील को यूपी सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये ख़तरा मानते हुए उन पर रासुका लगाई, जबकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उनका भाषण राष्ट्रीय एकता का संदेश देने वाला माना। लेकिन वही सरकार और प्रशासन उन लोगों को ख़िलाफ कार्रावाई नहीं कर रहा है जो लोग समाज में विघटनकारी ऐजेंडा चलाकर नफरत फैला रहे हैं।

सवाल है कि आनंद स्वरूप सरस्वी से लेकर यति नरसिंहानंद और पिंकी चौधरी जैसे ‘ज़हरजीवियों’ के लिये क्या भारतीय दंड सहिंता में कोई धारा नहीं है? यह दोगला रवैय्या प्रधानमंत्री मोदी के उस कथन का भी मज़ाक उड़ा रहा है जिसमें उन्होंने सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास का दावा किया था। क्या देश में दो संविधान हैं? जिसमें एक संविधान के तहत कफ़ील ख़ान, नासिर ख़ान जैसे निर्दोष नागरिकों पर गंभीर धाराएं लगाई जातीं हैं, लेकिन दर्जनों वीडियो साक्ष्य  होते हुए भी स्वामी नरसिंहानंद जैसे तथाकथित महंत पुलिस प्रशासन को नज़र नहीं आते।

(लेखक हिंद न्यूज़ हिंदी के संपादक हैं)