पहले आतंकवादी अब नया साथी । जिस देश में बात बात पर हर किसी को तालिबान से जोड़ दिया जाता है उस देश में तालिबान की बात दबे पाँव हो रही है। हिन्दी प्रदेश के नौजवानों का क्या होगा ? नौकरी तो मिली नहीं, पढ़ाई का हाल उन्हें पता ही है। ख़ैर अभी कश्मीर का टॉपिक है। इसकी चर्चा में दस बीस साल और निकल ही जाएँगे ये ख़बर काफ़ी प्रमुखता से छपी होगी ? कोई इसे सही नहीं बता रहा है?
किसान आंदोलन क्यों हो रहा है, इसे छोड़ कर कब तक चलेगा पर बहस लाई जा रही है
ताकि लोगों में चिढ़ पैदा हो। जहां पर किसानों का धरना है कभी जाकर उसके आस-पास के रास्तों को देखिए। वैकल्पिक रास्ते हैं मगर बैरिकेड लगाकर उन रास्तों को बंद किया गया है। यह इसलिए कि लोग किसान आंदोलन के बारे में अनाप शनाप कहा शुरू कर दें। लोग कहते भी है कि धरना कब तक चलेगा। इस तरह जो सवाल सरकार से पूछा जाना चाहिए लोग भूल जाते हैं और आंदोलन पर ही ग़ुस्सा निकालना शुरू कर देते हैं।
आंदोलन शुरू नहीं होता है कि पहले दिन से दंगाई और आतंकवादी का तमग़ा चिपका दिया जाता है। आंदोलन को उकसाने के लिए भीड़ भेजी जाती है और गोली मारो के नारे लगवाए जाते हैं। इस उकसावे पर किसी का ध्यान नहीं जाता है। फिर सवाल खड़ा किया जाता है कि कब तक चलेगा आंदोलन। फिर कोर्ट में ले जाकर मामले को अटकाया जाता है और तरह तरह के सवालों से धरना प्रदर्शन को बदनाम किया जाता है। इससे लोगों में लोकतांत्रिक आंदोलनों के ख़िलाफ़ धारणा फैलती जाती है। इसका नतीजा यह है कि लोग ख़ुशी ख़ुशी 114 रुपया लीटर पेट्रोल भरा रहे हैं। डर है कि बोलेंगे तो कुछ हो जाएगा।